वीआरएस की अर्जी सौंपने के बाद सीएम योगी आदित्यनाथ से मिले असीम अरुण, जानें क्यों रहे चर्चा में
कानपुर के पुलिस कमिश्नर असीम अरुण ने आइजी एटीएस के पद पर तैनात रहने के दौरान लखनऊ की हाजी कालोनी में मार्च 2017 में आतंकी सैफुल्लाह को मुठभेड़ में मार गिराने वाली टीम का नेतृत्व किया था और काफी सुर्खियां बटोरी थीं।
लखनऊ, राज्य ब्यूरो। उत्तर प्रदेश में खाकी का दामन छोड़कर राजनीति में किस्तम आजमाने वालों में एक और पुलिस अधिकारी असीम अरुण का नाम भी जुड़ गया है। 1994 बैच के आइपीएस अधिकारी असीम अरुण ने शनिवार को डीजीपी मुकुल गोयल को स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति योजना (वीआरएस) के तहत अपनी अर्जी सौंपी और उसके बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से भेंट भी की। माना जा रहा है कि मूलरूप से ग्राम खैर नगर, ठठिया, कन्नौज के निवासी असीम अरुण अपने गृह जनपद की ही सदर सीट से भाजपा प्रत्याशी के तौर पर विधानसभा चुनाव के मैदान में उतरेंगे।
असीम अरुण ने उन्हें 15 जनवरी,2022 से वीआरएस प्रदान किये जाने की मांग की है। बीते दिनों प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) लखनऊ के संयुक्त निदेशक राजेश्वर सिंह भी कुछ इसी तरह सुर्खियों में आये थे। राजेश्वर ने भी वीआरएस के तहत आवेदन किया था और उनके भी भारतीय जनता पार्टी का दामन थामने की चर्चाएं तेज हो गई थीं। प्रांतीय पुलिस सेवा (पीपीएस) के 1994 बैच के अधिकारी राजेश्वर सिंह वर्ष 2009 में प्रतिनियुक्ति पर ईडी में गए थे।
कानपुर के पुलिस कमिश्नर असीम अरुण ने आइजी एटीएस के पद पर तैनात रहने के दौरान लखनऊ की हाजी कालोनी में मार्च, 2017 में आतंकी सैफुल्लाह को मुठभेड़ में मार गिराने वाली टीम का नेतृत्व किया था और काफी सुर्खियां बटोरी थीं। इसके बाद एडीजी 112 के पद पर तैनात रहने के दौरान कोरोना काल में उन्होंने सराहनीय कार्य किया था। 112 की पीआरवी के जरिये पुलिस ने जिस तरह संक्रमण के काल में जरूरतमंदों की मदद की थी, उससे खाकी की नई छवि सामने आई थी। बतौर पुलिस अधिकारी अपनी विशिष्ट कार्यशैली के लिए चर्चाओं में रहने वाले असीम अरुण ने अब विधानसभा चुनाव का बिगुल बजने के साथ ही राजनीतिक गलियारे में हलचल बढ़ा दी है। असीम अरुण का अभी लगभग नौ वर्ष का कार्यकाल शेष है। ऐसे में पुलिस महकमे में उनके इस कदम को लेकर तरह-तरह की चर्चाएं भी हो रही हैं। असीम अरुण के पिता पूर्व डीजीपी श्रीराम अरुण भी बेहद प्रभावशाली अधिकारी थे। अपनी साफ-सुधरी छवि के लिए अलग पहचान रखने वाले श्रीराम अरुण सेवानिवृत्त होने के बाद दो बार उप्र अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति के दो बार अध्यक्ष भी रहे थे।
पूर्व में एडीजी दावा शेरपा ने भी वीआरएस की पेशकश कर राजनीति में कदम बढ़ाये थे, लेकिन वह सफल नहीं हो सके थे और वापस खाकी का दामन थाम लिया था। वहीं पीपीएस अधिकारी शैलेंद्र कुमार सिंह ने वर्ष 2004 में खाकी का दामन छोड़कर वाराणसी से लोकसभा चुनाव में किस्मत आजमाई थी। बीते दिनों पूर्व डीजी सूर्य कुमार शुक्ला ने भी भाजपा का दामन थामकर राजनीतिक पारी की शुरुआत करने का प्रयास किया था। वहीं पूर्व डीजीपी बृजलाल सेवाकाल पूरा करने के बाद राजनीति की राह पर चले और अब राज्यसभा सांसद हैं। पूर्व आइपीएस अधिकारी अहमद हसन भी दूसरी पारी में सफल राजनेता बने।