EXCLUSIVE: टॉप लेवल के बाद अब नीचे तक का भ्रष्टाचार खत्म होगा : योगी आदित्यनाथ
योगी आदित्यनाथ पूरे दावे के साथ कहते हैैं कि टॉप स्तर पर भ्रष्टाचार खत्म हुआ है जिसका संदेश नीचे तक जाएगा और निचले स्तर का भ्रष्टाचार भी खत्म होगा।
लखनऊ (जेएनएन)। यह संयोग ही था कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जिस दिन अपनी सरकार का एक साल पूरा किया, वह चैत्र प्रतिपदा नवसंवत्सर का पहला दिन भी था। अपने पांच कालिदास स्थित आवास पर दैनिक जागरण के संपादक मंडल से मुलाकात में योगी ने सवालों के जवाब सिलसिलेवार और खुशगवार अंदाज में दिए। वह चाहे उप चुनाव में भाजपा की हार से जुड़ा रहा हो या फिर निचले स्तर के भ्रष्टाचार का।
उन्हें यह कहने में कोई संकोच नहीं था कि हिंदू से अधिक सेक्युलर कोई नहीं और यह स्वीकारने में कोई हिचक नहीं थी कि आस्था के नाम पर वह आडंबर नहीं कर सकते। साफगोई से माना कि उप चुनाव की हार एक सबक है, लेकिन इसे जनादेश मानने से भी इन्कार किया। योगी इस बात पर जोर देते हैैं कि एक साल में उनकी सरकार ने उत्तर प्रदेश के प्रति धारणाएं बदली हैैं। पहले जहां लोगों का पलायन हो रहा था, वहीं अब उद्यमी यहां निवेश के लिए आना चाहते हैैं। टॉप स्तर पर भ्रष्टाचार खत्म हुआ है और दावा किया कि निचले स्तर पर भी नहीं रहेगा। इस दौरान उनके आवास पर केंद्रीय रेल मंत्री पीयूष गोयल भी आ जाते हैैं लेकिन योगी बातचीत के सिलसिले को जारी रखते हैैं।
- इन उपचुनावों में भाजपा की हार हुई, इसकी जिम्मेदारी केंद्र की है या राज्य सरकार के एक साल के कार्यकाल की?
उप चुनाव न राष्ट्रीय मुद्दे पर होते हैैं और राज्य स्तरीय बल्कि इनमें पूरी तरह स्थानीय मुद्दे हावी होते हैैं। पंचायत चुनाव में मतदान का स्तर इसीलिए बहुत अधिक होता हैै। वहां का प्रतिनिधि बाहर से मतदाताओं को बुलाकर मतदान कराता है। जो पार्टी या उम्मीदवार जितना अधिक मतदान करा ले जाती है जीत उसी की होती है। लोग बाहर से मतदाताओं को बुला लेते हैैं। स्पेशल ट्रेनें चला दी जाती हैैं। मतदान प्रतिशत अधिक कराने वाली पार्टी बाजी मारती है।
- एक तरफ गठबंधन धर्म है और दूसरी तरफ केंद्र से शिववसेना, टीडीपी समेत कई पार्टियां राजग को आंख दिखा रही हैैं। आपको लगता नहीं कुछ चीजें बिखर रही हैैं?
देखिए, ऐसी बात नहीं है। उत्तर प्रदेश में सपा-बसपा का गठबंधन नहीं था। यह सौदेबाजी थी। मायावती ने भी कहा था कि सपा से उनका कोई गठबंधन नहीं है। सच मानिए, देश में भाजपा का कोई विकल्प नहीं है। 2014 हमने जीता और 2019 भी जीतेंगे। कार्यकर्ता से संवाद की स्थिति है और कहीं अहंकार नहीं है। यह सही है कि कार्यकर्ता तब मोबिलाइज होता हैं, जब उसे प्रेरित किया जाए।
- यानी गुरूर की स्थिति नहीं है?
अगर किसी को गलतफहमी हो तो क्या किया जा सकता है।
- गोरखपुर और फूलपुर की हार को लेकर सबसे बड़ा सवाल है कि क्या दूसरे राज्यों में जीत से उत्साहित भाजपा ने उप्र में जनता से संपर्क तोड़ लिया और इसलिए जनता ने भाजपा पर विश्वास छोड़ दिया?
गोरखपुर और फूलपुर की हार अप्रत्याशित है। अति आत्मविश्वास का एक सबक भी है। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में मैं गोरखपुर में सवा तीन लाख मतों से जीता और 2017 में पांच विधानसभा क्षेत्रों में हमारे विधायक चुने गए। उपचुनाव में गोरखपुर की दो विधानसभा क्षेत्रों में हमारी पार्टी को 2017 से ज्यादा वोट मिले, लेकिन अति आत्मविश्वास के कारण तीन क्षेत्रों में मत घटे। जहां भी मैं जाता था लोग उत्साहित थे और संगठन से भी अच्छी रिपोर्ट मिली थी, लेकिन दुर्भाग्य उसी दौरान हमारा उम्मीदवार बीमार पड़ गया। 25 फरवरी से पांच मार्च तक वह लखनऊ में एसजीपीजीआई में भर्ती थे और क्षेत्र में नहीं जा सके। दरअसल, कार्यकर्ताओं को आत्मविश्वास था कि सीएम, डिप्टी सीएम की सीट है तो हारेंगे नहीं।
- लेकिन सपा-बसपा को इसका श्रेय कितना देंगे?
चुनाव के बीच में सपा-बसपा की सौदेबाजी शुरू हुई। सिकंदरा उपचुनाव में हम लोगों ने सावधानी बरती थी, लेकिन गोरखपुर और फूलपुर में अति उत्साह ने भी इन्हें मौका दे दिया। हालांकि हमें पहले से आशंका थी कि दोनों में गठबंधन हो सकता है।
- सपा, बसपा और कांग्रेस के गठबंधन को आप एक साथ चुनौती दे रहे हैं। पिछले चुनाव में इन तीनों के मतों को जोड़ दें तो करीब 50 संसदीय सीटों पर इनको भाजपा से अधिक मत मिले थे। इसकी काट के लिए क्या करेंगे?
गठबंधन में कोई भी दल अपने सौ फीसद मतों को दूसरे दल में ट्रांसफर नहीं करा सकता है। फिर जिस संभावित गठबंधन की बात हो रही है उसका तो अभी नेता ही तय नहीं है। विधानसभा चुनाव में सायकिल पर बैठने वाले राहुल गांधी क्या अब हाथी पर बैठेंगे? गठबंधन हो भी गया तो टिकट बंटवारे का आधार क्या होगा? क्या पिछले चुनाव में जीती हुई सीटें इसका आधार होंगी। तब तो बसपा को एक भी सीट नहीं मिली थी। टिकट भी बंट गया तो जिनके टिकट कटेंगें क्या वे खामोश बैठेंगे? हम मतदान बढ़ाकर इसकी काट कर सकते हैं। किसी भी चुनाव में जितने फीसद मत बढ़ते हैं उसका उतना ही लाभ भाजपा को होता है।
- क्या यह माना जाए कि गोरखपुर में मठ की ताकत के बिना कोई चुनाव नहीं जीता जा सकता?
यह जरूर है कि जनभावनाएं मठ से जुड़ी हैं। मठ का नाम आता है तो लोग जातीयता से ऊपर उठ जाते हैं, लेकिन यह कार्यकर्ता की भी जिम्मेदारी है कि वह मतदाताओं को जोड़े।
- 2019 के लिए आप गोरखपुर से अपना उत्तराधिकारी घोषित करेंगे। क्या वह मठ से होगा?
(बात टालते हुए) गोरखपुर सीट हमारी हैं। हम 2019 में वहां फिर जीतेंगे पर इतना जरूर है यह परिणाम कार्यकर्ताओं के लिए सबक है कि वह जमीनी हकीकत से दूर न रहें। उन्हें पब्लिक से जुड़कर काम करना होगा। हर मतदाता के पास एक मत है। उसे बूथ तक पहुंचाने की जिम्मेदारी निभानी होगी। भाजपा का उम्मीदवार ही हमारे मठ का भी उम्मीदवार है।
- भविष्य में सपा-बसपा के साथ कांग्रेस के जुडऩे के भी संकेत हैं?
गोरखपुर में सपा-बसपा और कांग्रेस सभी जुड़ जाएं तो भी जीत नहीं सकते हैं, लेकिन कार्यकर्ताओं को मतदाताओं को प्रेरित कर मतदान का प्रतिशत बढ़ाना होगा।
- आप मुख्यमंत्री बनने के बाद कई राज्यों में स्टार प्रचारक बनकर गये और सफलता मिली, लेकिन उपचुनाव की हार के बाद क्या उन राज्यों में जाएंगे जहां चुनाव होने हैं?
कार्यकर्ता के रूप में पार्टी मुझे जहां भेजेगी, वहां जाऊंगा और अपनी सेवा दूंगा। उपचुनाव के नतीजे जनादेश नहीं हैं। यह तात्कालिक घटना है। यह हमारे लिए एक सबक है।