Move to Jagran APP

सेप्टीसीमिया, न्यूमोनिया और लंग इंफेक्शन से ग्रसित मरीजों में एक्यूट किडनी इंजरी अधिक

रहें सतर्क : हॉस्पिटल स्टे और संक्रमण की गंभीरता खराब कर रही मरीजों की किडनी। केजीएमयू के मेडिसिन विभाग में चल रहे शोध में मिली जानकारी।

By Anurag GuptaEdited By: Published: Mon, 17 Dec 2018 09:51 AM (IST)Updated: Mon, 17 Dec 2018 09:51 AM (IST)
सेप्टीसीमिया, न्यूमोनिया और लंग इंफेक्शन से ग्रसित मरीजों में एक्यूट किडनी इंजरी अधिक
सेप्टीसीमिया, न्यूमोनिया और लंग इंफेक्शन से ग्रसित मरीजों में एक्यूट किडनी इंजरी अधिक

लखनऊ, (राफिया नाज)। सेप्टीसीमिया, न्यूमोनिया और लंग इंफेक्शन जैसे गंभीर संक्रमण से ग्रसित मरीजों में हॉस्पिटल स्टे के दौरान एक्यूट किडनी इंजरी (एकेआइ) की आशंका बढ़ जाती है। बीमारी के संक्रमण और मरीजों को दी जाने वाली दवाओं के असर की वजह से इन मरीजों की किडनी डैमेज होने लगती है। लगभग 25 फीसद आइसीयू मरीजों में 40 से 45 फीसद की मौत का कारण एकेआइ है। केजीएमयू के मेडिसिन विभाग में भर्ती ऐसे मरीजों का अध्ययन किया गया। इसमें मरीजों में एकेआइ का पता लगाया गया और बचाव के लिए कंट्रोल ट्रीटमेंट भी फॉलो किया गया।

loksabha election banner

रिसर्च के हेड एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. एम पटेल ने बताया कि सेप्टीसीमिया, न्यूमोनिया, लंग इंफेक्शन, पेट में इंफेक्शन, सैल्यूलाइटिस, फालिज और स्ट्रोक से पीडि़त मरीजों में हॉस्पिटल स्टे के दौरान किडनी इंजरी के तीन प्रमुख कारण हैं, इंफेक्शन से बचाने वाली दवाओं का असर, बीमारी का संक्रमण, कई बार मरीज के कोमा में होने की वजह से पानी की कमी होना।

किडनी फंक्शन टेस्ट में नहीं आती है गड़बड़ी

ऐसे मरीजों की किडनी हॉस्पिटल आने से पहले सामान्य होती है। केएफटी और सीरम क्रेटेनिन की रिपोर्ट भी सामान्य आती है। इनमें न्यूट्रोफिल जिलेटिनेज एसोसिएटेड लाइपोकेलिएनेज (एनजीएएल), एक्यूआइ मार्कर के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। इससे किडनी इंजरी का पता चलता है।

12, 24 और 48 घंटे होते हैं गंभीर

संक्रमित मरीजों में हॉस्पिटल में भर्ती होने के बाद के 12, 24 और 48 घंटे काफी नाजुक होते हैं। जिन मरीजों के गुर्दों में दिक्कत थी, 12 घंटे में एनएजीएएल लेवल दोगुना हो गया। वहीं, 24 घंटों में इन मरीजों का एनएजीएएल लेवल दोगुने से पांच गुना हो गया और 48 घंटे में इसकी मात्रा 10 गुना तक बढ़ गई। वहीं, इसके बाद भी इन मरीजों में सीरम क्रेटेनिन लेवल सामान्य ही था। रिसर्च में निकले आंकड़ों में पता चला कि सौ में से 90 मरीजों की किडनी डैमेज हो रही है।

दस से 20 फीसद डैमेज को बचाया गया

डॉ. पटेल ने बताया कि रिसर्च में रेजिडेंट डॉक्टरों को प्रॉपर गाइडलाइन और ट्रीटमेंट फॉलो करने को कहा गया। इससे लगभग 20 फीसद मरीजों की किडनी डैमेज को बचाया गया। मरीजों को कम से कम नेफ्रोटॉक्सिक ड्रग दी गईं। शॉक में जाने वाले मरीजों के इलाज का समयानुसार प्रबंधन किया गया। सेप्टीसीमिया के मरीजों में आइवी के जरिये एंटीबायोटिक्स दी गईं। 


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.