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हॉफमैन बुश LHB कोच की मरम्मत का भारतीय रेलवे ने ढूंढा फार्मूला, बचाया डीजल और रुपया

गोरखपुर में रेलवे ने एलएचबी रैक की मेंटिनेंस जनरेटर की जगह ट्रांसफॉर्मर से शुरू की अब लखनऊ समेत चार कोचिंग डिपो में इसे लागू करने की तैयारी।

By Anurag GuptaEdited By: Published: Thu, 20 Aug 2020 07:05 AM (IST)Updated: Thu, 20 Aug 2020 07:05 AM (IST)
हॉफमैन बुश LHB  कोच की मरम्मत का भारतीय रेलवे ने ढूंढा फार्मूला, बचाया डीजल और रुपया
हॉफमैन बुश LHB कोच की मरम्मत का भारतीय रेलवे ने ढूंढा फार्मूला, बचाया डीजल और रुपया

लखनऊ [निशांत यादव]। तेज रफ्तार से दौडऩे वाली जर्मन तकनीक वाले लिंक हॉफमैन बुश (एलएचबी) कोच की मरम्मत के लिए रेलवे ने भारतीय फॉर्मूला ढूंढ निकाला है। रेलवे ने ट्रांसफॉर्मर का करंट एलएचबी बोगियों में दौड़ा दिया है। इससे जहां रेलवे ने छह घंटे में एलएचबी रैक की मरम्मत के लिए जनरेटर से बिजली आपूर्ति पर खर्च होने वाला हजारों रुपये का डीजल बचाया, वहीं डीजल से उठते धुएं के कारण पर्यावरण को हो रहे नुकसान को भी रोका। अब इस प्रयोग को पूर्वोत्तर रेलवे लखनऊ समेत अन्य चारों कोचिंग डिपो में भी लागू करने की तैयारी कर रहा है।

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देश में स्वर्ण शताब्दी एक्सप्रेस में एलएचबी कोच की शुरुआत हुई थी। जर्मनी से इसी तकनीक भी हस्तांतरित हुई थी। अब राजधानी, तेजस के साथ ही लखनऊ मेल व एसी एक्सप्रेस जैसी ट्रेनों में भी यह कोच लगे हैं। इन रैक में इंजन के पास और अंत में जनरेटर कार लगा होता है। चलती हुई ट्रेन से तो इलेक्ट्रिक इंजन में लगे हेडऑन जनरेशन से तो बिजली बन जाती है, लेकिन यात्रा समाप्त होने के बाद उसे मरम्मत के लिए डीजल इंजन से भेजा जाता है। कोचिंग डिपो में मरम्मत में करीब छह घंटे लगते हैं। एसी सहित कई बिजली उपकरणों की जांच के लिए जनरेटर चलाकर चेक किया जाता है।

यह निकाला रास्ता

पूर्वोत्तर रेलवे गोरखपुर में तैनात डिप्टी चीफ इलेक्ट्रिक इंजीनियर निपुण पांडेय की टीम ने एलएचबी रैक के पिट को 500 केवीए के ट्रांसफॉर्मर से जोड़ा। ट्रांसफॉर्मर से मिलने वाली बिजली पहले पिट के सॉकेट, फिर बोगियों में लगने वाली इंटर वाइकलर कपलर (आइवीसी) को आपूर्ति की जाती है। आइवीसी के जरिए एलएचबी बोगियों में लगी एसी यूनिट, पंखे और बिजली में करंट दौडऩे लगता है।

अब यहां लागू करने की तैयारी

पूर्वोत्तर रेलवे की 25 टे्रनें इस समय एलएचबी रैक से दौड़ रही हैं। गोरखपुर के बाद लखनऊ, मडुवाडीह और छपरा कोचिंग डिपो में नई तकनीक से कोच मेंटिनेंस की तैयारी है। ट्रांसफॉर्मर की उपलब्धता के साथ कर्मचारियों का प्रशिक्षण कराया जाएगा।

इतना खर्च होता है डीजल

हर एलएचबी रैक में लगे दो पावर कार में चार डीजी सेट होते हैं। मरम्मत में एक सेट चलता है। हर घंटे 60 लीटर डीजल खर्च होता है। छह से साढ़े छह घंटे तक मरम्मत के दौरान लगभग 400 लीटर हाईस्पीड डीजल खर्च हो जाता है, जिसकी लागत करीब तीस हजार रुपये होती है। पावर कार के इस्तेमाल के लिए चार कर्मचारी लगते हैं। अब ट्रांसफॉर्मर के उपयोग से दो ही कर्मचारी काम करते हैं।

पूर्वोत्तर रेलवे मुख्यालय के मुख्य जनसंपर्क अधिकारी पंकज सिंह ने बताया कि गोरखपुर में एलएचबी रैक को ट्रांसफॉर्मर से करंट देकर मरम्मत का पायलट प्रोजेक्ट सफल रहा है। अब इसे लखनऊ, मड़ुवाडीह और छपरा कोचिंग डिपो में भी लागू करने की तैयारी है। इससे रोजाना करीब 10 हजार लीटर डीजल बचेगा। साथ ही डीजल पर निर्भरता भी कम होगी।


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