डिलीवरी व इमरजेंसी में अब कोविड रिपोर्ट का इंतजार जरूरी नहीं, ICMR ने जारी की नई गाइडलाइन
आइसीएमआर ने इमरजेंसी में इलाज में विलंब न करने का फरमान दिया राजधानी के कई मरीजों को पहले कोविड जांच के नाम पर नहीं मिला इलाज।
लखनऊ [धर्मेन्द्र मिश्रा]। राजधानी समेत देश में लॉकडाउन के दौरान ऐसे कई मौके आए जब कोविड-जांच के बगैर गंभीर इमरजेंसी के मरीजों को भी समय पर इलाज नहीं मिल सका। इसके चलते उन्हें अपनी जान गंवानी पड़ी। इसलिए अब इमरजेंसी व डिलीवरी के मामलों में इंडियन काउंसिल फॉर मेडिकल रिसर्च(आइसीएमआर) ने इलाज में विलंब नहीं करने का निर्देश दिया है। आइसीएमआर ने साफ कहा है कि आपातकालीन सेवाओं को कोरोना जांच तुरंत नहीं हो पाने के अभाव में विलंब नहीं किया जाना चाहिए। बल्कि संदिग्ध है तो उसका नमूना जांच के लिए भेजकर इलाज शुरू कर देना चाहिए। इस निर्देश के बाद उम्मीद की जा रही है कि आपातकालीन चिकित्सा सेवाओं में अब कोरोना रिपोर्ट नहीं आने के बहाने किसी भी मरीज की जान नहीं जाएगी। राजधानी समेत देश के विभिन्न जगहों से कोरोना जांच रिपोर्ट तुरंत नहीं मिलने के चलते इमरजेंसी व डिलीवरी तक के मामलों में इलाज में देरी किए जाने का मामला संज्ञान में आने के बाद 18 मई को यह निर्देश जारी किया गया है।
जांच रिपोर्ट का इंतजार किए बगैर ऐसे कर सकते हैं इलाज
लोहिया संस्थान में गायनी की विभागाध्यक्ष व प्रो. डॉ. यशोधरा प्रदीप ने बताया कि मरीज के इलाज में देरी न हो इसके लिए ग्रीन जोन, अॉरेंज जोन व रेड जोन का फॉर्म्यूला बनाया गया है। हालांकि यह अभी सभी जगह नहीं है। इसमें जिन मरीजों की कोरोना रिपोर्ट निगेटिव होती है, उनका ग्रीन जोन में इलाज करते हैं। जो संदिग्ध होते हैं, उन्हें अॉरेंज जोन के होल्डिंग एरिया में रखा जाता है। संदिग्ध गर्भवतियों के लिए अलग लेबर कोविड रूम होता है, जहां पीपीई किट, मास्क व अन्य प्रोटेक्शन के साथ कोविड-रिपोर्ट का इंतजार किए बगैर उसका अॉपरेशन सुरक्षित तरीके से किया जा सकता है। जिनकी रिपोर्ट पॉजिटिव होती है या जिनमें पूरे लक्षण होते हैं, उन्हें रेड जोन में रखा जाता है। उनका भी एन-95 मास्क, फेस शील्ड, ग्लव्स, शूकवर व पीपीई किट इत्यादि के साथ अॉपरेशन व इलाज किया जा सकता है।
समय पर इलाज नहीं मिलने से जा चुकी कई जान
विभिन्न अस्पतालों में कोविड-जांच पहले कराने व रिपोर्ट का इंतजार करने के चक्कर में समय पर इलाज नहीं मिलने से अब तक कई मरीजों की जान जा चुकी है।
केस1-राजधानी के नदवा मोड़ पर 16 मई को चेकिंग करते वक्त कार की टक्कर से दारोगा का पैर टूट गया। आरोप है कि केजीएमयू ने टूटे पैर का एक्सरे कोरोना रिपोर्ट निगेटिव आने तक नहीं किया। इसके बाद राज्यमानवाधिकार आयोग ने स्वत: संज्ञान लेकर कुलपति से जवाब मांगा है।
केस-2: फैजुल्लागंज के गायत्री नगर निवासी नरेंद्र वर्मा की पत्नी प्रियंका ने 14 मई को घर पर ही एक बच्चे को जन्म दिया। बच्ची की तबीयत बिगड़ने पर उसे पास के दो निजी अस्पताल ले गए, जहां पहले कोविड-जांच कराकर आने को कहा। केजीएमयू ले जाते रास्ते में ही नवजात की मौत हो गई।
केस-3- 14 मई को ही त्रिवेणी नगर निवासी 38 वर्षीय विवेक वाजपेई की तबीयत अचानक बिगड़ गई। निजी अस्पताल ने गेट से ही वापस कर दिया। दूसरे अस्पताल ले जाने पर बिना कोरोना जांच भर्ती करने से मना कर दिया। केजीएमयू पहुंचने पर डॉक्टरों ने मृत घोषित कर दिया।
केस-4-गर्भवती ने तोड़ा दम: डालीगंज क्रासिंग के पास रहने वाले गुफरान की गर्भवती पत्नी शबाना (25) को प्रसव के लिए 17 अप्रैल को बीएमसी अलीगंज से मड़ियांव के एक निजी अस्पताल ले गए। डॉक्टरों ने कोरोना की जांच कराकर आने को कह दिया। इलाज में देरी से उसकी मौत हो गई।