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गंगा पर पर्यावरण मंत्रालय की रिपोर्ट से अनजान पीएमओ

रूमा सिन्हा, लखनऊ। गंगा प्रदूषण की सच्चाई जानने के लिए प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) को किसी मशक्

By Edited By: Published: Sat, 11 Jan 2014 10:15 AM (IST)Updated: Sat, 11 Jan 2014 05:12 PM (IST)
गंगा पर पर्यावरण मंत्रालय की रिपोर्ट से अनजान पीएमओ

रूमा सिन्हा, लखनऊ। गंगा प्रदूषण की सच्चाई जानने के लिए प्रधानमंत्री कार्यालय को किसी मशक्कत की जरूरत नहीं। पीएमओ को बस पर्यावरण मंत्रालय द्वारा तैयार कराई गई परफार्मेंस इवेल्यूएशन ऑफ एसटीपी रिपोर्ट को पलटना होगा। गंगा को प्रदूषण मुक्त करने के लिए की जा रही कवायद की सारी सच्चाई खुद-ब-खुद सामने आ जाएगी।

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मूल्यांकन रिपोर्ट के निष्कर्ष दर्शाते हैं कि नदियों को सीवेज प्रदूषण से मुक्ति दिलाने के लिए स्थापित किए गए तमाम सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) नाकाम रहे हैं। उत्तर प्रदेश में गंगा, यमुना व गोमती पर अभी तक लगाए गए 34 एसटीपी में अधिकांश या तो बंद पड़े हैं या फिर सीवेज प्रदूषण को राष्ट्रीय नदी संरक्षण निदेशालय के मानकों के मुताबिक उपचारित करने में विफल हैं। दावों से इतर पड़ताल में पाया गया कि कानपुर, आगरा, वृंदावन, गाजियाबाद, नोएडा, वाराणसी, मिर्जापुर, लखनऊ में गंगा, यमुना व गोमती नदियों पर लगी शोधन संयंत्रों से सीवेज उपचार के बाद भी 30 बीओडी (बायोलॉजिकल आक्सीजन डिमांड) के मानक स्तर से ज्यादा प्रदूषित उत्प्रवाह रोजाना वापस नदियों में पहुंच रहा है। अधिकतर एसटीपी की बदहाली का अंदाजा इसी से लगता है कि उपचारित उत्प्रवाह में भी फीकल व अन्य खतरनाक जीवाणु भारी तादाद में मौजूद हैं।

रिपोर्ट के अनुसार प्रदेश के 61 बड़े शहरों से लगभग 3600 मिलियन लीटर सीवेज रोजाना निकलता है। इसमें से 34 एसटीपी द्वारा 1270 एमएलडी सीवेज को ही उपचारित करने की क्षमता विकसित हो पाई है। विडंबना यह है कि ये संयंत्र भी बमुश्किल 20 फीसद सीवेज ही शोधित कर पा रहे हैं। साफ है कि वर्ष 2020 तक गंगा को निर्मल बनाने के केंद्र सरकार के मंसूबों पर पानी फिरना तय है। कारण यह है कि प्रदूषण मुक्त करने के लिए जो योजनाएं बनाई जा रही हैं वह मुख्यत: एसटीपी पर ही आधारित हैं। यही नहीं 34 एसटीपी में अपनाई गई शोधन तकनीक भी सवालों के घेरे में है। चूंकि एक भी एसटीपी मानक के अनुसार शोधन नहीं कर पा रहा है।

पर्यावरण मंत्रालय की रिपोर्ट

संसदीय स्थाई समिति के निर्देश पर पर्यावरण मंत्रालय द्वारा केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से प्रमुख नदियों पर लगे एसटीपी का मूल्यांकन कराया गया, जिसके निष्कर्ष खासे चिंताजनक हैं-

-प्रदेश में यूएएस तकनीक पर लगे एसटीपी मानकों के अनुरूप शोधन नहीं कर रहे हैं।

-जाजमऊ एसटीपी से उपचार के बाद निकलने वाले उत्प्रवाह में बीओडी मानक से दोगुना अधिक।

- वाराणसी, आगरा, वृंदावन, मथुरा, गाजियाबाद, मिर्जापुर, नोएडा, लखनऊ में स्थापित संयत्र भी प्रदूषित उत्प्रवाह उगल रहे हैं।

-पागल बाबा, मथुरा स्थित संयंत्र जंगल में तब्दील हो चुका है।

-आगरा के नगला में बना आक्सीडेशन पांड क्षतिग्रस्त जबकि धंधुपुरा के एसटीपी से सीवेज सीधे यमुना में पहुंच रहा है

-भगवानपुर, वाराणसी के संयंत्र के उत्प्रवाह में भारी संख्या में फीकल कॉलीफार्म जीवाणु मौजूद हैं।

-सलोरी, इलाहाबाद व नोएडा संयंत्र में भी भारी तादाद में जीवाणु हैं।

प्रमुख नदियां प्रदूषण की गिरफ्त में

प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की नवंबर, 2013 की जल गुणवत्ता रिपोर्ट के अनुसार कानपुर, रायबरेली, मिर्जापुर, प्रतापगढ़, वाराणसी में बीओडी का स्तर 3 मिग्रा. प्रति ली. के मानक से कई गुना अधिक और जीवाणु भी भारी संख्या में मौजूद हैं।

-वाराणसी में वरुणा नदी, मेरठ में काली व हिंडन, नोएडा में हिंडन, लखनऊ में गोमती, मथुरा व वृंदावन में यमुना प्रदूषण का बुरा हाल है।

974 करोड़ की डीपीआर स्वीकृत

केंद्र द्वारा बीते माह वाराणसी, इलाहाबाद, कानपुर व बिठूर के लिए 974 करोड़ की पांच परियोजनाओं को हरी झंडी दी है। वाराणसी में भी जापान इंटरनेशनल कोऑपरेशन द्वारा 496 करोड़ के कार्य कराए जा रहे हैं। राष्ट्रीय नदी संरक्षण निदेशालय द्वारा स्वीकृत 1300 करोड़ के प्रोजेक्ट पर भी काम चल रहा है।

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