Independence Day Special: हर-हर महादेव संग गूंजे अल्लाह हो अकबर के नारे Lucknow News
क्रांति का बिगुल बजते ही चल पड़ी थी स्वाधीनता की आंधी। तहजीब के शहर से उठ रहीं थीं फिरंगियों के विरुद्ध आवाज।
लखनऊ, जेएनएन। अवध में क्रांति के बिगुल बजते ही मानो पूरे शहर में स्वाधीनता की आंधी चल पड़ी थी। हिंदू हर-हर महादेव और मुसलमान अल्लाह हो अकबर के नारे के साथ अवध की क्रांति में कूद पड़े थे। हर ओर भारत माता को अंग्रेजों के चंगुल से छुड़ाने के लिए स्वतंत्रता संग्राम सेनानी टोलियां बनाकर आगे की रणनीति पर चर्चा कर रहे थे। तहजीब के शहर में पहली बार यह नजारा दिखा, जब हर ओर फिरंगियों के विरुद्ध आवाज बुलंद हो रही थी।
शहर के आलमबाग, कैसरबाग व मडिय़ावं छावनी सहित अन्य इलाकों में भड़की आजादी की ज्वाला सिकंदरबाग तक पहुंच चुकी थी। सिकंदरबाग की जर्जर दीवारें भी अंग्रेजों से दो-दो हाथ करने के लिए मजबूती से खड़ी थीं। अंबाला के मुबारक खां के नेतृत्व में विद्रोहियों ने फिरंगियों से यहीं पर लोहा लिया था। इस युद्ध में दो वीरांगनाओं ने अंग्रेजी फौजों के छक्के छुड़ाए थे। अवध का मुक्ति संग्राम पुस्तक में इसका उल्लेख भी मिलता है। इन वीरांगनाओं ने दर्जनों अंग्रेजों को मार गिराया। अंग्रेज इतिहासकार फारेस्ट ने भी इस युद्ध के बारे में लिखा है कि भारतीय जान हथेली पर लेकर धार्मिक निष्ठा से लड़ रहे थे। आलमबाग से बेलीगारद तक की लड़ाई में हर-हर महादेव, दीन-दीन, जय काली माई, अल्लाह हो अकबर के नारे गूंज रहे थे। युद्ध में करीब तीन हजार भारतीयों ने प्राणों की आहूति दी थी। इन क्रांतिकारियों के बलिदान के निशां आज भी शहर में मौजूद हैं।
अकेले वीरांगना ऊदादेवी ने लिया था अंग्रेजों से मोर्चा
16 नंबर को दिलकुशा की ओर से अंग्रेजी फौजों ने रेजीडेंसी में शरण ले रखी थी। सिकंदरबाग में करीब तीन हजार भारतीयों का डेरा था, जिनपर अंग्रेजों ने हमला कर दिया। हमले में भारतीय मारे जा रहे थे। इसी बीच ऊंचाई से गोलियों की बौछार होने लगी, जिसके बाद युद्ध का नक्शा ही बदल गया। ऊंचाई पर एक महिला सिपाही अकेले अंग्रेजों से मोर्चा लिए थी। यह कोई ओर नहीं, बल्कि वीरांगना ऊदादेवी थीं। ऊदादेवी ने अपनी गोलियों से कई अंग्रेजों को मार गिराया। जब तक हाथ में गोला-बारुद था, वह लड़ती रहीं। अपनी पूरी ताकत लगाने के बाद भी अंग्रेजी फौज सिकंदरबाग में प्रवेश नहीं कर सके। बाद में गोला-बारुद खत्म हो गया। उसके बाद अंग्रेजों ने ऊदादेवी को छलनी कर दिया, लेकिन तब तक वह इतिहास के पन्नों में अमर हो चुकी थीं।