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पाकिस्तान के आए हिंदू निर्वासितों को नागरिकता के लिए करना होगा इंतजार

राजधानी में करीब 238 निर्वासित हैं जो दशकों पहले पाकिस्तान छोड़कर यहां नागरिकता के इंतजार में भाग-दौड़ कर रहे हैं।

By amal chowdhuryEdited By: Published: Thu, 03 Aug 2017 09:44 AM (IST)Updated: Thu, 03 Aug 2017 09:44 AM (IST)
पाकिस्तान के आए हिंदू निर्वासितों को नागरिकता के लिए करना होगा इंतजार
पाकिस्तान के आए हिंदू निर्वासितों को नागरिकता के लिए करना होगा इंतजार

लखनऊ (जागरण संवाददाता)। पाकिस्तान से आए हिंदू निर्वासितों को नागरिकता प्रमाणपत्र के लिए अभी और इंतजार करना पड़ेगा। गृह मंत्रलय द्वारा जिला मजिस्ट्रेट को नागरिकता प्रदान करने का अधिकार देने के बाद फाइलों के जल्द निस्तारण की उम्मीद जगी थी लेकिन लॉन्ग टर्म वीजा की मियाद खत्म होने से वैधानिक संकट आ खड़ा हुआ है। ऐसे में प्रशासन अब गृह मंत्रलय के दिशा-निर्देशों के इंतजार में है।

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राजधानी में करीब 238 निर्वासित हैं जो दशकों पहले पाकिस्तान छोड़कर यहां नागरिकता के इंतजार में भाग-दौड़ कर रहे हैं। सरकार की ओर से इनको लॉन्ग टर्म वीजा मिला है जिसका समय-समय पर नवीनीकरण होता रहता है। केंद्र में भाजपा सरकार बनने के बाद केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने विशेष प्रयास करते हुए ऐसे हिंदू निर्वासितों के नागरिकता के मामले जल्द से जल्द निपटाने के निर्देश दिए गए थे।

गृहमंत्री के निर्देश पर पूर्व में गृह मंत्रलय की टीम राजधानी आकर बाकायदा कैंप लगाकर इन निर्वासितों की समस्याओं के बाबत सुनवाई कर चुकी है। वैधानिक प्रक्रिया के बाद पहले चरण में 59 निर्वासितों को नागरिकता प्रमाणपत्र जारी किया जाना था। इस मामले में और देरी न हो, इसकी खातिर गृह मंत्रालय ने बीते दिनों जिला मजिस्ट्रेट लखनऊ को नागरिकता प्रमाणपत्र देने के लिए नामित किया था।

गृह मंत्रलय के आदेश से निर्वासितों को नागरिकता की उम्मीद जगी थी लेकिन इनका लॉन्ग टर्म वीजा की मियाद खत्म होने से वैधानिक संकट आ खड़ा हुआ है। बिना वीजा के निर्वासितों को नागरिकता प्रमाणपत्र कैसे दिया जाए, इसको लेकर जिला प्रशासन ने सचिव गृह मंत्रलय को पत्र भेजकर दिशा-निर्देश मांगा है। अब जब तक गृह मंत्रलय की ओर से इस बाबत नए दिशा-निर्देश नहीं लि जाते तब तक नागरिकता के लिए इंतजार करना पड़ेगा।

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अपने ही देश में बेगाने: राजधानी में कई ऐसे निर्वासित हैं जो यहां पर चार-पांच दशक से रह रहे हैं लेकिन अब तक उनको नागरिकता नहीं मिली है। ऐसे में उनको किसी तरह की सरकारी सुविधा नहीं मिलती है। पाकिस्तान के सिंध प्रांत से आए मुकेश ने करीब 15 साल पहले नागरिकता के लिए आवेदन किया था। इसी तरह संतोष हरवानी ने 14 साल पहले नागरिकता के लिए आवेदन किया था।

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