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हिंदी भारत की मौलिक प्यार, प्रार्थना और संस्कार की भाषा

विधानसभा अध्यक्ष हृदय नारायण दीक्षित ने कहा कि हिन्दी भारत की मौलिक भाषा है। यह प्यार, प्रार्थना एवं संस्कार की भाषा है।

By Nawal MishraEdited By: Published: Sat, 03 Feb 2018 07:36 PM (IST)Updated: Sat, 03 Feb 2018 08:54 PM (IST)
हिंदी भारत की मौलिक प्यार, प्रार्थना और संस्कार की भाषा
हिंदी भारत की मौलिक प्यार, प्रार्थना और संस्कार की भाषा

गोरखपुर (जेएनएन)। हिन्दी भारत की मौलिक भाषा है। यह प्यार, प्रार्थना एवं संस्कार की भाषा है। संस्कृत से निकली होने के कारण यह समृद्ध भाषा है। हिन्दी में भाव-जगत के जो शब्द है, वह अंग्रेजी में मिल ही नहीं सकते। इसीलिए भारत के स्वाधीनता संग्राम की भाषा हिन्दी ही बनी। हिन्दी का विस्तार हो रहा है। वैश्विक क्षितिज पर हिन्दी का प्रसार जारी है। दुनिया के अनेक भागों में अब हिन्दी बोली जा रही है। हम हिन्दी भाषी लोगों के मन में हिन्दी के साथ हीनता की जो ग्रन्थि बनी है, उसे तोड़ने की जरूरत है।

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गोरखपुर में उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान लखनऊ के सहयोग से स्वतन्त्र भारत में हिन्दी की विकास यात्रा विषय पर कार्यशाला के उद्घाटन में मुख्य अतिथि उत्तर प्रदेश के विधानसभा अध्यक्ष हृदय नारायण दीक्षित ने कहा कि महात्मा गाँधी, जवाहर लाल नेहरू, बाबा साहेब भीमराव आम्बेडकर, डॉ राजेन्द्र प्रसाद सभी हिन्दी के हिमायती थे। संविधान सभा  में जवाहर लाल नेहरू भी हिन्दी के पक्ष में बोले किन्तु संविधान में हिन्दी को वह स्थान नहीं मिल सका जिसका वह हकदार थी। संविधान में किन्तु-परन्तु के साथ हिन्दी राजभाषाहै किन्तु वास्तविक रूप में भारत की जनता के बीच वह राष्ट्रभाषा के रूप में ही प्रचलितहै। आज केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक, आन्ध्रप्रदेश, महाराष्ट्र इत्यादि सभी दक्षिणी भारत के प्रदेशों में हिन्दी का विस्तार हो रहा है। हिन्दी हर जगह बोली जा रही है। हिन्दी  ने अपना वैश्विक विस्तार का दायरा बढ़ाया हैं। हम हिन्दी भाषी हिन्दी के शुद्ध उपयोग के प्रति सचेत हों।

उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान के कार्यकारी अध्यक्ष प्रो सदानन्द  प्रसाद  गुप्त ने कहा कि  उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान का कार्य हिन्दी का प्रचार-प्रसार करना है। यह संस्थान देश ही नहीं विदेशों में भी हिन्दी के प्रचार-प्रसार हेतु कटिबद्ध है। हिन्दी आज अपने बल पर तेजी से आगे बढ़ रहीहै।कोई भी सरकार अब हिन्दी की विकास-यात्रा में अवरोधी नहीं हो सकती, किन्तु हिन्दी को अपने विकास के आयाम बढ़ाने हैं। उसे भारत के जन-जन की भाषा बनानी होगी। विशिष्ट अतिथि उत्तर प्रदेश भाषा संस्थान के पूर्व अध्यक्ष डॉ कन्हैया सिंह ने कहा कि हिन्दी के आदि कवि महायोगी गोरखनाथ हैं। ऐसे में गोरक्षपीठ के इस महाविद्यालय में हिन्दी की विकास यात्रा पर आयोजित यह विमर्श और प्रासंगिक हो जाता है।
इससे पहले प्रस्ताविकी प्रस्तुत करते हुए प्राचार्य डॉ प्रदीप कुमार राव ने कहा कि हिन्दी की विकास-यात्रा में इस महाविद्यालय की भी उल्लेखनीय भूमिका है। हमने नैक कराने हेतु स्व-अध्ययन रिपोर्टनहिन्दी में भेजा।नैक द्वारा भाषा के आधार पर अस्वीकृत किए जाने पर तीन वर्ष की लड़ाई के बाद नैक को हिन्दी में स्व-अध्ययन रिपोर्ट स्वीकार करनी पड़ी। यह महाविद्यालय देश का पहला महाविद्यालय है जिसका नैक मूल्यांकन हिन्दी में किया गया। हमने नैक में हिन्दी को प्रतिष्ठा दिलायी है।

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