Lucknow High Court: अच्छी सड़क, सीवेज और जल निकासी तंत्र राज्य सरकार की जिम्मेदारी, छह माह में पूरा करें नादरगंज का विकास कार्य
इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने शहर के नादरगंज इलाके के विकास की बुरी हालत पर कहा है कि अच्छी सड़क सीवेज और जल निकासी तंत्र जैसी आधारभूत सुविधाओं को मुहैया कराना राज्य सरकार की जिम्मेदारी है। कौन सा प्राधिकरण इन सुविधाओं को प्रदान करने के लिए जिम्मेदार है।
लखनऊ, विधि संवाददाता। इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने शहर के नादरगंज इलाके के विकास की बुरी हालत पर कहा है कि अच्छी सड़क, सीवेज और जल निकासी तंत्र जैसी आधारभूत सुविधाओं को मुहैया कराना राज्य सरकार की जिम्मेदारी है। कौन सा प्राधिकरण इन सुविधाओं को प्रदान करने के लिए जिम्मेदार है, इसका पता न होना लोगों को इन सुविधाओं से वंचित रखने का आधार नहीं हो सकता। कोर्ट ने डिवीजनल कमिश्नर को आदेश दिया कि नादरगंज इंडस्ट्रियल एरिया व इससे लगी हुई सड़कों के पुर्ननिर्माण, सीवेज व नालों के निर्माण तथा आधारभूत सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए इंड्रस्ट्रियल डेवलपमेंट अथारिटी, नगर निगम, एलडीए व पीडब्ल्यूडी के अधिकारियों की मीटिंग बुलाकर एक माह में तय करें कि कौन सी एजेंसी इस क्षेत्र का विकास करने के लिए जिम्मेदार है।
जब जिम्मेदारी तय हो जाए तो संबंधित एजेंसी छह माह के अंदर क्षेत्र में मूलभूत विकास करना सुनिश्चित करे। जस्टिस देवेंद्र कुमार उपाध्याय और जस्टिस अजय कुमार श्रीवास्तव, प्रथम की पीठ ने यह आदेश शरद कुमार श्रीवास्तव की याचिका पर सुनवायी करते हुए पारित किया। याचिका के साथ प्रस्तुत इलाके की तस्वीरें देखकर कोर्ट ने कहा कि सड़कें पानी से भरी हुई हैं। अधिकारियों को इस स्थिति की जानकारी भी दी जा चुकी है, लेकिन सड़कों व नालों का पुनर्निर्माण व मरम्मत इसलिए नहीं हो सका, क्योंकि इसके लिए सरकार की कौन सी अथारिटी जिम्मेदार है, इस पर विवाद है। कोर्ट ने कहा कि यह आम जनता का विषय नहीं है कि यहां मूलभूत सुविधाएं नगर निगम प्रदान करेगी या इंडस्ट्रियल अथारिटी या पीडब्ल्यूडी या एलडीए से लोगों यह सुविधाएं मिलेंगी।
सचिवालय में भॢतयों की जांच की मांग खारिजः इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ ख्ंाडपीठ ने सचिवालय में पिछले वर्ष की गई भर्तियों की जांच सीबीआई से कराए जाने की मांग वाली एक जनहित याचिका खारिज कर दी है। न्यायमूर्ति रितुराज अवस्थी व न्यायमूर्ति अब्दुल मोईन की पीठ ने यह आदेश नरेश कुमार आदि की ओर से दाखिल याचिका पर पारित किया। याचिका में विधान सभा के लिए सात दिसंबर, 2020 को जारी विज्ञापन और विधान परिषद के लिए 17 सितंबर, 2020 को जारी विज्ञापन के तहत हुई भॢतयों में भारी अनियमितता की बात कहते हुए सीबीआई से जांच की मांग की गई थी। हालांकि सुनवाई के दौरान कोर्ट ने पाया कि याचिका दाखिल करने वाले याचीगण इस चयन प्रक्रिया में स्वयं अभ्यर्थी थे। कोर्ट ने कहा, चूंकि याची इस चयन प्रक्रिया में स्वयं अभ्यर्थी थे, लिहाजा उनकी जनहित याचिका पर विचार नहीं किया जा सकता।
हाथरस कांड में पीडि़ता व गवाहों की स्कीम पेश करने का आदेश: इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ ख्ंाडपीठ ने हाथरस केस में राज्य सरकार से एससीएसटी एक्ट के तहत पीडि़ता व गवाहों के संबध में बनाई गई स्कीम के बारे में जानकारी मांगी है। कोर्ट ने सरकार से कहा है कि यदि स्कीम बनाई गई है तो उसे 22 अक्टूबर को पेश किया जाए। जस्टिस राजन राय व जस्टिस जसप्रीत सिंह की पीठ ने यह आदेश हाथरस केस में घटना के बाद स्वत: संज्ञान लेेकर दर्ज की गई जनहित याचिका पर पारित किया। इससे पहले सरकार ने पीडि़ता के परिवार को दी गईं सुविधाओं को लेकर हलफनामा दाखिल किया था। एससीएसटी एक्ट की धारा-15ए की उपधारा-11 के तहत पीडि़ता व उसके गवाहों की सुरक्षा तथा उनको दी जाने वाली सुविधाओं आदि को लेकर राज्य सरकार पर एक स्कीम बनाने की जिम्मेदारी दी गई है।