उत्तर प्रदेश के 47 जिलों में गहरा सकता है भूजल संकट, कमजोर मानसून ने खड़ी की मुश्किल
बीते दो दशकों में बारिश के आंकड़े देखें तो यह साफ हो जाता है कि भूजल के बेलगाम दोहन से जूझ रहे खासकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश के ज्यादातर जिले तो लगातार हो रही कम बारिश के चलते संतृप्त नहीं हो पा रहे हैं।
लखनऊ, [रूमा सिन्हा]। भूजल भंडारों से दिन-रात बेहिसाब पानी का दोहन जारी है। सोच यह है कि बारिश आएगी और यह भूजल भंडार पानी से लबालब हो जाएंगे, लेकिन बीते दो दशकों से मानसून की बेरुखी ने चिंताजनक हालात पैदा कर दिए हैं। वर्षा जल संचयन योजनाएं बगैर वर्षा जल के सफेद हाथी साबित हो रही हैं। न तो तालाब ही भर पाए और न ही चेक डैमों में पानी पहुंचा।
लखनऊ शहर को अति दोहित श्रेणी में रखा गया है। इस मानसून सीजन में यहां सामान्य के मुकाबले केवल 58 प्रतिशत बारिश हुई है। वहीं गौतमबुद्धनगर में मात्र 11, गाजियाबाद 29, बुलंदशहर में 38 और मथुरा में 35 फीसद ही बारिश हुई। भूजल संकट से जबरदस्त प्रभावित शामली, बागपत, आगरा में भी सामान्य बारिश के मुकाबले 50 प्रतिशत वर्षा ही रिकॉर्ड की गई। कुल मिलाकर लगभग 47 जिलों में बेहद कम बारिश हुई है। साफ है कि कम से कम इन जिलों में भूजल संकट गहराना तय है।
बीते दो दशकों में बारिश के आंकड़े देखें तो यह साफ हो जाता है कि भूजल के बेलगाम दोहन से जूझ रहे खासकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश के ज्यादातर जिले तो लगातार हो रही कम बारिश के चलते संतृप्त नहीं हो पा रहे हैं। पिछले 20 सालों में मात्र चार सालों को छोड़ दें तो प्रदेश में सामान्य के मुकाबले 20 फीसद से कम बारिश हुई है। बागपत, बुलंदशहर, आगरा, मथुरा, फिरोजाबाद, एटा, अलीगढ़, गौतमबुद्धनगर, गाजियाबाद, हापुड़, संभल, अमरोहा, शामली, मेरठ, रामपुर के अलावा पूर्वी उत्तर प्रदेश के कौशांबी में बारिश लगातार काफी कम रिकॉर्ड की गई है। विशेषज्ञों के मुताबिक विशेष रूप से वर्षा ऋतु में होने वाली बारिश भूजल भंडारों में होने वाले कुल वार्षिक रिचार्ज के लगभग 65 से 70 फीसद हिस्से के लिए जिम्मेदार होती है।
वहीं बुंदेलखंड-विंंध्य क्षेत्र के बांदा, महोबा, ललितपुर, झांसी, मीरजापुर व सोनभद्र के अलावा मध्य उत्तर प्रदेश के लखनऊ, कानपुर नगर में भी बारिश सामान्य के मुकाबले काफी कम रही, जिसका असर सूखते भूजल भंडारों पर पड़ना तय है। साथ ही, बीते दो दशकों में वर्षा जल संचयन व भूजल रीचार्ज के लिए चलाई गई तमाम भारी भरकम योजनाओं से लगभग डेढ़ लाख तालाबों का जीर्णोद्धार व नए तालाब का निर्माण करने के साथ करीब आठ हजार चेक डैम बनाए गए, लेकिन बारिश की भारी कमी के चलते इन तालाबों व चेक डैम में वर्षा जल का पर्याप्त संग्रहण नहीं हो सका, जिससे सीधे भूजल रीचार्ज प्रभावित हुआ। जो आंकड़ों में साफ दिखाई भी पड़ रहा है।
वर्तमान में 280 विकासखंड व 10 शहरी क्षेत्र अति दोहित, क्रिटिकल व सेमी क्रिटिकल श्रेणी में चिन्हित किए गए हैं। भूजल विशेषज्ञ बीबी त्रिवेदी का मानना है कि सूखते भूजल भंडारों को बारिश के पानी से लबालब करने की रणनीति के बजाय अन्य विकल्पों जैसे भूजल दोहन में चौतरफा कमी, खासकर कृषि क्षेत्र में नलकूप पर निर्भरता कम करने के साथ सिंंचाई के अन्य तरीकों को लागू करने के लिए विधिक व्यवस्था लाए जाने की जरूरत है।