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पाक मूल के लेखक तारिक फतेेह की मुस्‍ल‍िमों को सलाह, भारत की अस्मिता को चोट पहुंचाने के लिए मांगे माफी

केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान और पाकिस्तानी मूल के मशहूर लेखक-पत्रकार तारिक फतेेह ने ह‍िंदू-मुस्लिम संबंधों को नए सिरे से किया व्याख्यायित।

By Anurag GuptaEdited By: Published: Tue, 21 Jan 2020 04:28 PM (IST)Updated: Wed, 22 Jan 2020 08:17 AM (IST)
पाक मूल के लेखक तारिक फतेेह की मुस्‍ल‍िमों को सलाह, भारत की अस्मिता को चोट पहुंचाने के लिए मांगे माफी
पाक मूल के लेखक तारिक फतेेह की मुस्‍ल‍िमों को सलाह, भारत की अस्मिता को चोट पहुंचाने के लिए मांगे माफी

अयोध्या, जेएनएन। डॉ. राममनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय के कबीर सभागार में ह‍िंदू-मुस्लिम संबंधों को नए सिरे से व्याख्यायित किया गया। संगोष्ठी का विषय था, 'श्रीराम : वैश्विक सुशासन के प्रणेता' पर वक्ता के तौर पर मौजूद केरल के राज्यपाल और उदार विचारों के लिए प्रख्यात आरिफ मोहम्मद खान तथा पाकिस्तानी मूल के जाने-माने पत्रकार एवं आलोचक तारिक फतेेह ने प्रस्तावित विषय पर अपनी छवि के अनुरूप मौलिक छाप छोड़ी।

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तारिक ने कहा कि अयोध्या में राममंदिर निर्माण से ह‍िंदुओं और मुस्लिमों का तलाक खत्म होगा। इशारों में इतिहास के पुनर्लेखन की वकालत की। कहा, तमाम ऐसे राजा और शासक हुए, जिन्होंने आक्रमणकारियों को खदेड़ा, लेकिन उनके बारे में युवा नहीं जानते। उन्होंने भारतीयों की चिरपरिचित उदारता की कमजोरियों के साथ इसकी खूबियों का भी उल्लेख किया और कहा, इस देश के प्रति मुस्लिमों का जो सुलूक रहा है, उसके चलते उन्हें मतदान तक का अधिकार न मिलता, पर शुक्र है कि वे ह‍िंदुस्तान में हैं। तारिक ने इस्लामिक आक्रांताओं की बर्बरता और उसके बाद भारत की अस्मिता को चोट पहुंचाने के लिए मुस्लिमों को माफी मांगने की सलाह दी और कहा, उन्हें तभी इंसाफ मिलेगा जब तक वे अपने पूर्वजों के गुनाह न कुबूल कर लें। 

उन्होंने सीएए के खिलाफ विश्वविद्यालयों में हुए प्रदर्शन पर कहाकि धर्म के नाम पर विश्वविद्यालयों का नाम नहीं होना चाहिए। तारिक ने जामिया मिलिया यूनिवर्सिटी को पूरी तरह से सरकारी नियंत्रण में लेने की वकालत की। इससे पूर्व आरिफ मोहम्मद खान ने अपने उदबोधन में कहा, भारतीय पंरपरा, मूल्य और संस्कृति कभी थोपी नहीं गई थी। यहां 'एकं सद्विप्रा बहुधा वदंति' की परंपरा रही है। यानी सच्चाई एक है और जिन्होंने उस सच्चाई को जानने का प्रयास किया या उसे जाना, उन्होंने अपने-अपने ढंग से उसे कहा। उन्होंने याद दिलाया कि भारतीय संस्कृति में यदि जड़ों के प्रति अनुराग है तो आसमान की ऊंचाई छू लेने की उन्मुक्तता भी है।

आरिफ ने ज्ञान के प्रति भारतीयों की प्रतिबद्धता का उदाहरण देते हुए गुरु रवींद्रनाथ टैगोर की कविता उद्धत की, जिसमें टैगोर कह रहे हैं कि 'मैं भारत से इसलिए नहीं प्यार करता कि मुझे भारत की मूर्ति पूजा और भूगोल पूजा में विश्वास है। मेरे प्यार का यह भी कारण नहीं है कि मैं यहां पैदा हुआ, बल्कि मैं भारत से इसलिए प्यार करता हूं कि उसने उन शब्दों को विषमतम परिस्थितियों में भी संभालकर रखा, जो उसकी संतान की चैतन्य आत्मा से निकले थे'।

कट्टरपंथ और कुरीतियों पर तारिक ने साधा निशाना 

संगोष्ठी में तारिक ने एक ओर इस्लामिक कट्टरपंथ को निशाने पर रखा तो दूसरी ओर कुरीतियों पर भी जम कर प्रहार किया। रामराज्य की परिकल्पना को साकार करने के लिए जहां उन्होंने पंजाब-सि‍ंंध को भारत का हिस्सा बनाने, भेदभाव खत्म कर बराबरी की वकालत की तो दूसरी ओर जन्मभूमि पर राममंदिर के निर्माण को ह‍िंदू-मुस्लिम एकता के प्रतीक के तौर पर भी पेश किया, यह कहकर कि मंदिर बनने से ह‍िंदुओं और मुस्लिमों में तलाक की गुंजाइश हमेशा के लिए खत्म हो जाएगी। करकोटा साम्राज्य व राजा दाहिरसेन का जिक्र कर उन्होंने इतिहास के पुनर्लेखन की भी वकालत की। करीब 45 मिनट के संबोधन में उन्होंने रामराज्य, सीएए, पाकिस्तान और कट्टरपंथ का बखूबी विवेचन कर श्रोताओं की खूब तालियां भी बटोरी। 

संबोधन से पहले जयश्रीराम और भारत माता की जय के नारे से मंच पर तारिक की अगवानी हुई। तारिक ने भी संबोधन की शुरुआत संगोष्ठी के विषय से ही की, हालांकि सवालों के साथ। कहा, क्या बिना समाज में बराबरी आए रामराज्य हो सकता है, क्या पंजाब और स‍िंध के भारत का हिस्सा बने बगैर रामराज्य हो सकता है, जब तक हम करकोटा साम्राज्य और राजा दाहिरसेन से वाकिफ न हों क्या तब तक रामराज्य हो सकता है, क्या जब तक अलीगढ़ विवि में जिन्ना की तस्वीर है, तब तक रामराज्य हो सकता है? लोधी गार्डेन और बख्तियारपुर रेलवे स्टेशन का उदाहरण देते हुए कहा, जिन आक्रमणकारियों ने भारत पर हमला किया, उनके नाम पर यहां पार्क और सड़क बन गए।

राममंदिर पर आए फैसले को उन्होंने मुस्लिमों के लिए ऊपर वाले का निर्णय करार दिया। कहा, राममंदिर का फैसला मुस्लिमों के लिए यह संदेश है कि मंदिरों और गिरिजाघरों पर मस्जिद न बनें। उन्होंने कहाकि शियाओं के लिए दुनिया का सबसे सुरक्षित देश भारत है। उन्होंने कहाकि भारत प्राचीनतम सभ्यताओं में से एक रहा है, लेकिन विदेशी आक्रमणकारियों ने भारत की सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक ढांचे को तहस-नहस किया। ज्ञान के केंद्रों को जलाया। उन्होंने आक्रमणकारियों पर निशाना साधा तो दूसरी ओर नसीहतें भी दीं.... पर्दा प्रथा जैसी कुरीतियों को खत्म करने की, भेदभाव खत्म करने की और किसी के सामने न झुकने की। 

दैहिक, दैविक और भौतिक ताप से मुक्त था रामराज्य

इंडियन काउंसिल फॉर कल्चरल रिलेशन (आइसीसीआर) के निदेशक अखिलेश मिश्र ने विषय प्रवर्तन किया। उन्होंने कहाकि रामराज्य दैहिक, दैविक और भौतिक ताप से मुक्त था। कहाकि रामकथा हर क्षेत्र में और तमाम भाषाओं में प्रसारित है। रामकथा को किसी एक पंथ और धर्म की सीमा में नहीं बांधा जा सकता। उन्होंने कहाकि राम ने क‍िष्‍क‍िंंधा और लंका में सत्ता परिवर्तन तो किया, लेकिन राज्य का विलय नहीं किया।

विवि के कुलपति प्रो. मनोज दीक्षित ने कहाकि अयोध्या में वास्तु कला पर भी काफी कुछ किया जाना शेष है। उन्होंने केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान व तारिक फतेह के व्यक्तित्व पर भी प्रकाश डाला। भाजपा नेता राकेश त्रिपाठी ने कहा कि भगवान राम के जीवन का एक पहलू यह भी है कि समाज में किसी के साथ कोई भेदभाव नहीं हो। तकनीकी सत्र में इंडिया थि‍ंक कॉउंसिल के पदाधिकारी अशोक मेहता ने कहाकि जन्मभूमि पर राममंदिर के निर्माण से भारत रामराज्य की ओर बढ़ेगा।


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