UP: संपत्तियों से जुड़े विवाद तेजी से निपटाने पर सरकार का जोर, ब्योरे को ई-कोर्ट से लिंक करने पर फोकस
ईज ऑफ डूइंग बिजनेस को बढ़ावा देने और अदालतों में संपत्तियों से जुड़े विवादों को तेजी से निस्तारित करने के लिए केंद्र सरकार ने राज्यों से संपत्तियों के विवरण को डिजिटाइज कर उसे निबंधन विभाग से भी लिंक करने को कहा है।
लखनऊ [राजीव दीक्षित]। ईज ऑफ डूइंग बिजनेस को बढ़ावा देने और अदालतों में संपत्तियों से जुड़े विवादों को तेजी से निस्तारित करने के लिए केंद्र सरकार ने राज्यों से संपत्तियों के विवरण को डिजिटाइज कर उसे निबंधन विभाग से भी लिंक करने को कहा है, ताकि इसे न्यायालयों के लिए विकसित आनलाइन व्यवस्था (ई-कोर्ट) से जोड़ा जा सके। उद्देश्य यह है कि किसी भी कोर्ट में संपत्ति से जुड़ा कोई मुकदमा हो तो अदालत के पास उसका पूरा डिजिटल विवरण मौजूद हो।
संपत्तियों का रजिस्ट्रेशन विश्व बैंक की ओर से की जाने वाली ईज ऑफ डूइंग बिजनेस रैंकिंग का एक संकेतक है। इसके लिए चार मानकों पर गौर फरमाया जाता है। पहला, संपत्ति को ट्रांसफर करने में लगने वाला समय। दूसरा, संपत्ति को ट्रांसफर करने में आने वाला खर्च (संपत्ति के मूल्य के प्रतिशत के रूप में)। तीसरा, संपत्ति को ट्रांसफर करने में अपनायी जाने वाली चरणबद्ध प्रक्रिया और चौथा, लैंड एडमिनिस्ट्रेशन इंडेक्स की गुणवत्ता, जिसमें विश्वसनीयता, पारदर्शिता, भू-राजस्व प्रशासन की व्यापकता, भूमि विवादों से सुरक्षा और संपत्ति के अधिकार तक समान पहुंच शामिल हैं।
कृषि भूमि को लेकर नामांतरण, बंटवारे और उत्तराधिकार से जुड़े विवाद जहां राजस्व न्यायालय में वहीं संपत्तियों से जुड़े विवादों का निपटारा सिविल कोर्ट में होता है। केंद्र सरकार ने जिला न्यायालयों में भूमि विवादों को एक वर्ष के अंदर निस्तारित करने का लक्ष्य रखा है। केंद्र सरकार की मंशा है कि ई-कोर्ट को भूमि के दस्तावेजों और रजिस्ट्रेशन से भी लिंक किया जाए। केंद्रीय न्याय मंत्रालय ने इस सिलसिले में राजस्व विभाग से पत्राचार किया है।
प्रदेश में राजस्व न्यायालयों के लिए विकसित की गई रेवेन्यू कोर्ट कंप्यूटराइज्ड मैनेजमेंट सिस्टम (आरसीसीएमएस) को राजस्व परिषद के भूलेख पोर्टल से लिंक करने पर यह मालूम किया जा सकता है कि किस जमीन का मुकदमा किस न्यायालय में चल रहा है और उसकी ताजा स्थिति भी जानी जा सकती है। दिक्कत सिविल कोर्ट में है, जहां ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है। इसके लिए नगरीय क्षेत्रों की संपत्तियों की मैपिंग कर उन्हें आइडी नंबर देकर जियो टैग करने पर सहमति बनी है।
ये होंगे फायदे
- अदालत को संपत्ति से जुड़ी सही और प्रामाणिक जानकारी मिल सकेगी।
- न्यायालय इस जानकारी का इस्तेमाल विवादों को स्वीकार और निस्तारित करने में कर सकेंगे।
- संपत्ति में दिलचस्पी रखने वालों को उसकी कानूनी स्थिति और उसे खरीदने के जोखिम का अंदाज हो सकेगा।
- पक्षकार कोर्ट के चक्कर लगाने की बजाय केस की ताजा स्थिति को आनलाइन जान सकेंगे।