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सरकारी अस्पतालों में दवा पहुंचाने के लिए यूपी के सभी जिलों में खुलेंगे गोदाम, पासबुक से मिलेंगी दवाएं

सरकारी अस्पतालों में दवाओं की कमी और गड़बड़ी की आशंका खत्म करने के लिए उप्र मेडिकल सप्लाइज कारपोरेशन दवा आपूर्ति की प्रणाली में बड़ा बदलाव करने जा रहा है।

By Umesh TiwariEdited By: Published: Wed, 04 Sep 2019 10:06 AM (IST)Updated: Wed, 04 Sep 2019 10:06 AM (IST)
सरकारी अस्पतालों में दवा पहुंचाने के लिए यूपी के सभी जिलों में खुलेंगे गोदाम, पासबुक से मिलेंगी दवाएं
सरकारी अस्पतालों में दवा पहुंचाने के लिए यूपी के सभी जिलों में खुलेंगे गोदाम, पासबुक से मिलेंगी दवाएं

लखनऊ [अमित मिश्र]। सरकारी अस्पतालों में दवाओं की कमी और गड़बड़ी की आशंका खत्म करने के लिए उप्र मेडिकल सप्लाइज कारपोरेशन दवा आपूर्ति की प्रणाली में बड़ा बदलाव करने जा रहा है। अस्पतालों को कम समय में दवा पहुंचाने के लिए कारपोरेशन प्रदेश के सभी 75 जिलों में दवा गोदाम बनाने का काम शुरू कर दिया है। इन गोदामों से अस्पतालों को दवा उपलब्ध कराने के लिए बैंकों की तरह पासबुक प्रणाली भी शुरू की जा रही है।

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मेडिकल सप्लाइज कारपोरेशन की प्रबंध निदेशक श्रुति सिंह ने बताया कि सभी जिलों में दवा गोदाम बनाने से अस्पतालों को अपने जिले से ही कम समय में दवाएं मिल सकेंगी। साथ ही दवा की वापसी जैसी स्थितियां भी अब के मुकाबले आसान हो जाएंगी। गोदाम बनाने का काम अक्टूबर तक पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है। अब तक करीब 60 जिलों में गोदाम के लिए जगह किराये पर जगह चिन्हित कर ली गई है। इनमें से कुछ के लिए एग्रीमेंट भी हो गया है।

प्रबंध निदेशक ने बताया कि गोदाम शुरू होते ही अस्पतालों को पासबुक जारी कर दी जाएगी। पासबुक के जरिए ही अस्पतालों को दवाएं उपलब्ध कराई जाएंगी। कारपोरेशन के अधिकारियों ने बताया कि अस्पतालों का निर्धारित बजट पासबुक में क्रेडिट किया जाएगा। इसके सापेक्ष वर्ष भर में ली जाने वाली दवाएं डेबिट की जाएंगी। बजट खत्म होने पर अस्पताल को और रकम की मांग करनी होगी। आपात स्थितियों में अस्पतालों के लिए अलग से दवाओं का इंतजाम किया जाएगा।

अस्पतालों में नहीं पहुंच रहीं दवाएं

करीब डेढ़ साल पहले अस्तित्व में आया मेडिकल सप्लाइज कारपोरेशन इन दिनों सवालों के घेरे में है। राजधानी के बड़े अस्पतालों से लेकर पूर्वांचल में दूरदराज के स्वास्थ्य केंद्रों तक, दवाओं की कमी सभी जगह है। डॉक्टर जो दवाएं पर्चे पर लिख रहे हैैं, वह अस्पताल में मौजूद नहीं हैैं। मरीजों को मजबूरी में बाहर से दवाएं खरीदनी पड़ रही हैैं। स्वास्थ्य सेवा से जुड़े एक अधिकारी ने बताया कि राजधानी के सबसे वीआइपी समझे जाने वाले सिविल अस्पताल में ही मधुमेह की दवा नहीं है।

ब्लैकमेल कर रहे वेंडर

पीएमएस संवर्ग के डॉक्टरों के मुताबिक मेडिकल सप्लाइज कारपोरेशन अभी पूरी तरह न तो व्यवस्था बना सका है और न ही दवा आपूर्ति करने वाले वेंडरों को नियंत्रित कर सका है। इसी का नतीजा है कि अस्पतालों में जरूरत के मुकाबले जहां बेहद कम दवाएं पहुंच रही हैैं, वहीं वेंडर जरूरी दवाएं देने के लिए अन्य अतिरिक्त खरीद करने को भी मजबूर कर रहे हैैं। एक डॉक्टर बताते हैैं कि चर्म रोग के नाम पर अस्पतालों में सन बर्न लोशन के एक लीटर के जार भेज दिए गए हैैं, जबकि बाजार में यह दवा छोटी शीशियों में मौजूद है।

उतने ही बजट में दोगुनी खरीद का दावा

अस्पतालों में दवाओं का संकट देखते हुए प्रदेश में दवा खरीद के 950 करोड़ रुपये के सालाना बजट को भले ही कम मानकर डॉक्टर इसे 1500 करोड़ रुपये करने की मांग कर रहे हों लेकिन, मेडिकल सप्लाइज कारपोरेशन की प्रबंध निदेशक श्रुति सिंह का दावा है कि व्यवस्था सुधार के जरिए इतने ही बजट में वह पहले के मुकाबले दोगुनी दवा खरीद कर दिखाएंगी। उन्होंने बताया कि पहले कई स्तरों पर रेट कॉन्ट्रैक्ट होने के कारण दवाओं के दाम में बड़ा उतार-चढ़ाव था, जबकि अब केवल टेंडर की दरों पर दवाएं खरीदी जा रही हैैं, जिससे कीमतें खासी कम हो गई हैं।


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