International Tiger Day 2021: लखनऊ जू ने दिया चार अनाथ नन्हें टाइगर को मिला सहारा, किशन-रेनू की प्रेम कहानी है सबकी जबान पर
नवाब वाजिद अली शाह प्राणि उद्यान 29 नवंबर 1921 को स्थापित 29 हेक्टेयर में स्थापितहुआ था। इसकी अपनी अलग पहचान है। पांच साल पहले सफेद बाघ आर्यन और विशाखा ने दो नर बाघ जय-विजय को जन्म दिया तो पूरे चिडिय़ाघर में जश्न का मौहाल था।
लखनऊ [जितेंद्र उपाध्याय]। नवाब वाजिद अली शाह प्राणि उद्यान का हर वन्यजीव अपनी अलग दास्तां समेटे हुए है। 29 नवंबर 1921 को स्थापित 29 हेक्टेयर में स्थापित हुए चिडिय़ाघर की अपनी अलग पहचान है। पांच साल पहले सफेद बाघ आर्यन और विशाखा ने दो नर बाघ जय-विजय को जन्म दिया तो पूरे चिडिय़ाघर में जश्न का मौहाल था। लंबे इंतजार के बाद चिडिय़ाघर में आए नन्हें मेहमान के स्वागत में चिडिय़ाघर प्रशासन ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी। विशाखा भी अपने दोनों लाडलों को देख फूले नहीं समा रही थी। आर्यन की बीमारी से विशाखा परेशान जरूर थी, लेकिन उसे यह नहीं पता था कि इतने जल्दी वह उसे छोड़कर चले जाएंगे। चिकित्सक डा.उत्कर्ष शुक्ला और डा.अशोक कश्यप का प्रयास भी काम नहीं आया और 2017 में आर्यन का निधन हो गया। विशाखा ने कई दिनों तक खाना नहीं खाया तो नन्हें जय-विजय को बोतल से दूध पिलना पड़ा। बच्चों को बढ़ता देख विशाखा आर्यन की यादों को मिटाने की कोशिश में लगी रही।
जय-विजय में आर्यन की तस्वीर देख खुद को ढाढस बंधा रही विशाखा अब बच्चों के साथ मग्न है। बचपन में ही पिता को खो चुके जय-विजय एक साथ बाड़े में अटखेलियां करते तो दर्शक भी बरबस उनकी ओर खिंचे चले आते। दोनो आपस में मस्त रहते थे कि पिछले साल दिल्ली चिडिय़ाघर से गीता को लाने के लिए विजय को दिल्ली भेजना पड़ा। भाई विजय से बिछडऩे के दर्द को छिपाए अभी भी जय खुद को अकेला ही महसूस करता है। सफेद बाघ विशाखा, गीता और जय अपनी चहलकदमी से दर्शकों को लुभाते हैं, लेकिन वे बेजुबान अपने दर्द को बयां नहीं कर पाते। पिछले साल मैलानी भी गोरखपुर चला गया। वर्तंमान में तीन सफेद के साथ ही 13 टाइगर चिडिय़ाघर में मौजूद हैं।
अनाथ हुए चार बच्चों को मिला सहारा: पीलीभीत के जंगल में अनाथ हुए चार टाइगर के बच्चों को चिडिय़ाघर प्रशासन ने अपने यहां पनाह दी। तीन महीने से अधिक उम्र के होने के बाद अब उन्हें चिडिय़ाघर के टाइगर बाड़े में एक साथ रखा गया है। इन्हें मिलाकर अब चिडिय़ाघर में बाघों की संख्या 15 हो गई है। उनकी अटखेलियां दशकों को अपनी ओर खींचने में कामयाब हैं।
सभी को भाई किशन-रेनू की प्रेम कहानी: एक ओर दुख और यादों का सैलाब है तो दूसरी ओर से बंगाल टाइगर के बाड़े में किशन-रेनू की की प्रेम कहानी परवान चढ़ रही हैं। दोनों के बीच बाड़े की दीवारें भले ही हों, लेकिन दोनों के प्यार के चर्चे पूरे चिडिय़ाघर परिसर में हैं। दोनों एक दूसरे से दूर भले ही हो, लेकिन एक झलक पाने की बेकरारी अपने-अपने बाड़े में घूमते हुए दर्शक भी महसूस करते हैं। इनकी प्रेम कहानी अभी चल रही रही थी कि जूलिया और निवेदिया की प्रेम की दास्तां भी किसी से छिप न सकी। बाड़े अगल-बगल होने के चलते दोनों के बीच प्यार की केमिस्ट्री समझ चुका चिडिय़ाघर प्रशासन समय का इंतजार कर रहा है। समय आते ही इनके साथ किशन और रेनू को भी मिला देगा। चारों को अपनी प्रेम कहानी को हकीकत में तब्दील करने का इंतजार है।
इनकी भी दास्तां कुछ कम नहीं: इशिता, मैलानी, कजरी व छेंदीलाल भी कुछ कम नहीं । अपने-अपने बाड़े में रहकर अपनी अटखेलियों से दर्शकों का दिल बहलाने वाले ये टाइगर भी अपनी दुनिया में मस्त रहते हैं। चिकित्सकों का कहना है कि वन्य क्षेत्र के मुकाबले वन्यजीवों की ग्रोथ चिडिय़ाघर में ज्यादा होती है। प्राकृतिक वातावरण देकर हम उन्हें लुभाने का प्रयास करते हैं। इसी का नजीता है कि पांच साल पहले चिडिय़ाघर में जय-विजय का जन्म हुआ। इनके पिता आर्यन भी 2001 में इसी चिडिय़ाघर में ही पैदा हुआ था। बीमारी की वजह से 17 साल में ही उसका निधन हो गया।
जंगल के राजा शेर पर भारी टाइगर की देखभाल: टाइगर को बचाने की मुहिम चिडिय़ाघर में भी चल रही है। जंगल के राजा शेर के मुकाबले एक टाइगर का एक महीने का खर्च आठ हजार रुपये ज्यादा है जबिक तेंदुआ के मुकाबले करीब चार गुना ज्यादा है। लॉकडाउन के इस दौर में जब दर्शकों की आमद कम हो रही है तो चिडिय़ाघर प्रशासन आम लोगों से वन्यजीवों को गोद लेने की अपील भी कर रहा है। चिडिय़ाघर की वेबसाइट पर वन्यजीवों के गोद लेने का खर्च भी अपलोड किया गया है।
एक महीने का खर्च
- टाइगर-55000
- सफेद टाइगर-55000
- बब्बर शेर- 47000
- तेंदुआ-14000
निदेशक प्राणि उद्यान आरके सिंह ने बताया कि चिड़ियाघर में रहने वाले एक हजार वन्यजीवों की सुरक्षा और देखभाल की जिम्मेदारी निभाई जाती है। टाइगर को लेकर चिडिय़ाघर प्रशासन समय-समय पर दर्शकों को जागरूक भी करता है। सभी वन्यजीवों को प्राकृतिक वातावरण देने का प्रयास किया जाता है। नर-मादा टाइगर को समय-समय पर मिलाकर वंश वृद्धि का प्रयास भी किया जाता है। पीलीभीत से आए चार टाइगर के बच्चे अब दर्शकों के आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं।
इसलिए मनाया जाता है बाघ दिवस: 2010 में रूस में आयोजित हुए टाइगर सम्मेलन हर वर्ष 29 जुलाई को विश्व बाघ दिवस मनाने का निर्णय किया गया। इस सम्मेलन में 13 राष्ट्र सम्मिलित हुए। वर्ष 2022 तक बाघों की संख्या को दुगुनी करने का लक्ष्य रखा गया था. जहां बाघ हंै वहां शाकाहारी जीव हैं, जंगल के स्वास्थ्य का प्रतीक बाघ को माना जाता हैं। पिछले कुछ वर्षों से कुछ वर्षों से जिस तेजी से बाघों की संख्या घटी हैं उसे देखते हुए बाघ संरक्षण के उद्देश्य से विश्व बाघ दिवस मनाया जाता हैं। लोगों में जानवरों के जीवन की समझ विकसित हो। वर्तमान में विश्व में मात्र तीन हजार बाघ ही हैं।
राष्ट्रीय पशु है बाघ: देश का राष्ट्रीय पशु बाघ हैं। बाघ को शक्ति, शान, सतर्कता, बुद्धि और धैर्य का प्रतीक माना जाता हैं। इसलिए इसे राष्ट्रीय पशु का दर्जा दिया गया है। इसे मारने पर प्रतिबंध है। हर तरह के वनों में रहकर यह जीवित रह सकता है। वन्य जीव संरक्षण अधिनियम-1972 के तहत बाघों के संरक्षण के लिए विभिन्न योजनाएं बनाई गई। 1973 में भारत में टाइगर प्रोजेक्ट अभियान शुरू किया गया था, वर्तमान में देश में कुल 48 बाघ उद्यान हैं जिनकी निगरानी के लिए भी वन विभाग सतर्क रहता है। बंगाल टाइगर भारत में पाई जाने वाली एक श्रेष्ठ बाघों की प्रजाति है।