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Dainik Jagran Samvadi 2019: ‘हर हर्फ है सरमस्ती, हर बात है रिंदाना', अवधी धुनों के बीच सूफी मिठास भी

Dainik Jagran Samvadi 2019 पद्मश्री मालिनी अवस्थी ने सजाई संवादी की महफिल पेश किया गंगा-जमुनी तहजीब से तर सूफी मिजाज।

By Anurag GuptaEdited By: Published: Sat, 14 Dec 2019 08:40 AM (IST)Updated: Sat, 14 Dec 2019 08:40 AM (IST)
Dainik Jagran Samvadi 2019: ‘हर हर्फ है सरमस्ती, हर बात है रिंदाना', अवधी धुनों के बीच सूफी मिठास भी
Dainik Jagran Samvadi 2019: ‘हर हर्फ है सरमस्ती, हर बात है रिंदाना', अवधी धुनों के बीच सूफी मिठास भी

लखनऊ [आशुतोष मिश्र]। पद्मश्री मालिनी अवस्थी के कंठ से निकला सुरों से सजा यह शेर अवध के सूफी मिजाज की सुरमयी बानगी भर था। श्रृंगार की जबान में बोलें तो हमारी गंगा-जमुनी तहजीब की खूबसूरती किसी नायिका के नैनों से कमतर नहीं। इसलिए नर्गिस के फूलों जैसे इस सूफियाना मिजाज से जिसका भी राब्ता पड़ा, वो फिर मस्ताना ही हो गया। गंगा-जमुनी तहजीब से तर सूफी मिजाज असल में यहां की जीवनशैली है। यहां आपको बहुत से ऐसे जिंदा लोग मिलेंगे जो इसे जीते हैं।

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गोमतीनगर के बीएनए सभागार में संवादी के मंच से ये बातें कहने वाली पद्मश्री मालिनी अवस्थी खुद भी इनमें से एक हैं। चाहे तीज-त्योहार हों या फिर जहान-ए-खुसरो, आपकी आवाज ने हर मंच को बराबर ही मान दिया। इसीलिए तो मुजफ्फर अली उन्हें उर्दू में गाने को बुलाते थे तो शर्मिला टैगोर ने नवाब पटौदी के चालीसवें पर उनसे सलाम पढ़ने की गुजारिश की। सलाम पढ़ने का वो वाकया याद करते हुए वो बताती हैं कि कैसे जब उन्होंने सोज को साज दिया तो हर आंख नम हो गई थी- ‘सलाम उसको जिसने बेकसों पर दस्तगी की, सलाम उस पर जिसने बादशाही में फकीरी की..।’

अवध की बात अब अवधी पर पहुंच चुकी थी। वो बोल पड़ती हैं, यहां शब्द सुंदर बने, धुनें सुंदर बनीं। श्रृंगार के गीत भी रचे गए तो मर्यादा का पूरा ख्याल रखा गया। हर बात सलीके के साथ कही गई और वो गा पड़ीं ‘पनघटवा न जइबैं नजर लग जइहैं.., प्यारे ननदोइया सरौता कहां भूल आए.., सारी कमाई गवाई रसिया..।’ तभी ‘सैंया मिले लरकइयां मैं क्या करूं’ कि फरमाइश आई और फिर जब इसे मालिनी ने स्वर दिया तो फिर श्रोताओं ने उनसे पूरा गीत गवाकर ही छोड़ा। यहां की भाषा की मर्यादा का जिक्र करते हुए उन्होंने अवधी की कजरी, चइता, जाता, घाटो आदि का उदाहरण दिया। कहा कि यहां ये सबके सब बिना राम के पूरे नहीं होते। फिर सारी विधाओं को गाकर सबको झुमाकर रख दिया। कहा, लोकगीत में लोक का चित्र नहीं दिखे तो यह पूरा नहीं होता। शास्त्रीय संगीत और लोकगीत पर बोलीं- लोक से निकलकर ही शास्त्र का निर्माण होता है। अवधी और भोजपुरी दोनों को अपनी भाषा बताते हुए उन्होंने भोजपुरी भाषियों की तरह अवध के लोगों को भी अवधी को बढ़ावा देने के लिए प्रेरित किया। रामपुर के चार बैत का उदाहरण देकर लोक परंपराओं को गुम होने से बचाने के लिए लोगों को जड़ों से जुड़े रहने को कहा। बुलव्वा की जगह लेते लेडीज संगीत के बहाने उन्होंने परंपराओं से मुंह मोड़ती महिलाओं को आईना दिखाया। बताया कि किस तरह उनकी गुरु पद्म विभूषण गिरिजा देवी 90 वर्ष की अवस्था में पालथी मारकर दो घंटे रोज गाती थीं। आज 40 साल की औरतें घुटनों में दर्द का बहाना करके जमीन पर नहीं बैठती हैं। देर शाम तक आत्म प्रकाश मिश्र के साथ संवादी के मंच पर वो बतकही के दौरान समा बांधे रहीं।

बहुत से हिट गीत अवधी की धुन

मास्टर याकूब ने पहले ही ‘इन्हीं लोगों ने ले लीन्हा..’ को लोकप्रिय बना दिया था। पाकीजा में यह बाद में आया। गिरी मोहर माला जी करैला के बाग में.. की तर्ज पर मुन्नी बदनाम हुई.. गीत और काला रे काला रे.. की तर्ज पर झुमका गिरा रे बना।


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