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अब UP में मछली के कान के अंदर की हड्डी बताएगी नदियों का प्रदूषण लेवल, जान‍िए कैसे

Fish Ear Bone Research मछली की ओटोलिथ हड्डी बताएगी नदियों में भारी धातु और प्रदूषण। लखनऊ विश्वविद्यालय के प्राणि विज्ञान विभाग की छात्रा ने किया शोध। गंगा यमुना और गोमती से मछली और पानी के नमूने एकत्र।

By Divyansh RastogiEdited By: Published: Fri, 02 Apr 2021 08:03 AM (IST)Updated: Sat, 03 Apr 2021 07:32 AM (IST)
अब UP में मछली के कान के अंदर की हड्डी बताएगी नदियों का प्रदूषण लेवल, जान‍िए कैसे
Fish Ear Bone Research : गंगा, यमुना और गोमती से मछली और पानी के नमूने एकत्र।

लखनऊ [अखिल सक्सेना]। Fish Ear Bone Research: नदियों में पाई जाने वाली जिंक, कापर, मैगनीशियम, लेड जैसी भारी धातुओं की स्थिति का पता लगाना अब आसान हो जाएगा। इन नदियों में पाई जाने वाली मछलियों की ओटोलिथ (कान के अंदर की हड्डी) के जरिए यह संभव होगा। यह भी पता चल सकेगा कि इन मछलियों का सेवन सुरक्षित है या नहीं।

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लखनऊ विश्वविद्यालय के प्राणि विज्ञान विभाग की शोध छात्रा फरहा बानो ने शोध में यह तथ्य जुटाए हैं। प्रो. एम सिराजुद्दीन के निर्देशन में तीन साल तक हुए इस शोध में यह भी पता चला कि यमुना नदी में सबसे ज्यादा बेरियम, मैंगनीज, क्रोमियम, लेड और मैग्नीनिश्यम पाया जाता है। यहां आक्सीजन भी बहुत कम मिली है। जबकि गंगा में कापर और जिंक की मात्रा ज्यादा है। इसके पानी में पाई जाने वाली मछलियां खाना भी सेहत के लिए हानिकारक हैं।

लविवि के प्राणि विज्ञान विभाग में मछलियों पर लगातार शोध हो रहे हैं। वर्ष 2017 में विभाग की शोधार्थी फरहा बानो को नेट जेआरएफ क्वालीफाइ करने के बाद फेलोशिप मिली थी। जिससे उन्होंने 'फिश ओटोलिथ एज ए बायो इंडीकेटर आफ पॉल्यूशन' विषय पर शोध शुरू किया। विभाग के शिक्षक प्रो. एम. सेराजुद्दीन बताते हैं कि गंगा, जमुना और गोमती नदी में गोस्टी (वैज्ञानिक नाम ट्राइकोगेस्टर लेलिया) मछली पर शोध किया गया।

ये हैं तीन प्रमुख हड्डियां: इस मछली के इंटरनल इयर के अंदर तीन हड्डियां सेजाइटल, एसटेरिकस और लेपियस पाई जाती हैं, जिन्हें ओटोलिथ कहते हैं। इन्हें प्रदूषण और भारी धातुओं का इंडीकेटर कहा जाता है। यह भारी धातु प्रदूषण को रिकार्ड करता है। शोध के लिए तीनों नदियों से 50-50 गोस्टी मछली की सेजाइटल हड्डी (ओटोलिथ) निकाल कर परीक्षण किया तो पानी में भारी धातुओं का पता चला।

यमुना का पानी अधिक प्रदूषित, आक्सीजन भी कम: यमुना में ग्लास इंडस्ट्री और टेनरी की वजह से सबसे गंदा पानी मिला। प्रदूषण ज्यादा होने से मछलियों की आंखों का आकार बड़ा हो गया। यहां भारी धातुओं में जिंक 1.5 माइक्रोग्राम जिंक, बेरियम 13 माइक्रोग्राम प्रतिलीटर, लेड .7 माइक्रोग्राम, मैग्नीशियम 1.6 माइक्रोग्राम, मैंगनीज 3.5 माइक्रोग्राम, स्ट्रॉशियम 2.5 और क्रोमियम 11 माइक्रोग्राम पाया गया। यहां के पानी में घुलनशील आक्सीजन की मात्रा भी गोमती, गंगा की अपेक्षा सबसे कम 3.72 मिलीग्राम प्रतिलीटर पाई गई। क्षारीय पानी स्थित 8.09 पीएच (पोटेशियम ऑफ हाइड्रोजन) है। गंगा में यह आंकड़ा 4.02 और गोमती में 4.88 पीएच है। गंगा में ङ्क्षजक 2.3 माइक्रोग्राम, लेड .5 माइक्रोग्राम, कापर 1.2 माइक्रोग्राम और गोमती में लेड .4 माइक्रोग्राम और कॉपर .5 माइक्रोग्राम पाया गया।

सेहत पर पड़ रहा असर: प्रो. एम सेराजुद्दीन ने बताया कि जिन मछलियों में भारी धातु होती है, इन्हें खाने से मनुष्यों के शरीर पर असर पड़ता है। बच्चों में लेड की वजह से मानसिक ग्रोथ कम होने का खतरा तो वयस्क में नपुंसकता का खतरा अधिक होता है।

एल्जेवियर में जल्द प्रकाशित होगा शोध: तीन साल के शोध के बाद आइ रिपोर्ट को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जाने वाले एल्जेवियर पब्लिशर्स ग्रुप को बीते दिसंबर में भेजा गया है। प्रो. एम सेराजुद्दीन के मुताबिक एलजेवियर के लिम्नोलोजिका जर्नल में विभाग के कई शोध प्रकाशित हो चुके हैं। हाल ही में तैयार की गई ओटोलिथ से यमुना, गंगा और गोमती नदी के प्रदूषण की रिपोर्ट को भी भेजा गया था। छपने के लिए उसका चयन हो गया है।  


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