प्राकृतिक खेती से आत्मनिर्भर बनेंगे यूपी के किसान, उर्वरकों के प्रयोग के बिना बढ़ेगा उत्पादन
अधिक उत्पादक के चक्कर में रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग खेत के लिए हानिकारक हो रहा है। हाइब्रिड बीजों एवं अधिकाधिक भूजल दोहन से भूमि की उर्वरा शक्ति उत्पादन भूजल स्तर और मानव स्वास्थ्य में निरंतर कमी आई है।
लखनऊ, [जितेंद्र उपाध्याय]। अधिक उत्पादक के चक्कर में रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग खेत के लिए हानिकारक हो रहा है। हाइब्रिड बीजों एवं अधिकाधिक भूजल दोहन से भूमि की उर्वरा शक्ति, उत्पादन, भूजल स्तर और मानव स्वास्थ्य में निरंतर कमी आई है। किसान खेती की बढ़़ती लागत एवं बाजार पर पूरी तरह निर्भरता के चलते घाटे के कारण खेती छोड़ रहे हैं। ऐसे में लोक भारती द्वारा पद्मश्री सुभाष पालेकर द्वारा विकसित प्राकृतिक खेती पर सक्रियता से किसानोें को फायदा होने लगा है। प्राकृतिक खेती किसानों के लिए फायदे का सौदा साबित हो रही है।
किसान समृद्धि आयोग के सदस्य एवं लोक भारती के संपर्क प्रमुख श्रीकृष्ण चौधरी ने बताया कि लखनऊ समेत इटावा, अलीगढ़, मथुरा, मेरठ, बरेली, वाराणसी, आजमगढ़, बराबंकी व हरदोई के लाखों किसान खेती कर रहे हैं। इसके अलावा नमामि गंगे योजना के तहत गंगा नदी से संबंधित सभी 27 जिलों में नदी के तटवर्ती गांवों में प्राकृतिक खेती शुरू की गयी है जिसका अच्छा परिणाम मिल रहा है। सूबे के कृषि विश्वविद्यालय एवं कृषि विज्ञान केंद्रों में इस पद्धति से खेती करते हुए किसानों को प्रोत्साहित किया जा रहा है। भारतीय प्राकृतिक कृषि पद्धति एवं परंपरागत कृषि विकास योजना के तहत प्रदेश में इस पद्धति को लागू किया गया है।
ऐसे होती है खेतीः प्राकृतिक खेती किसानों की आय दो गुना करने और लागत में कमी करती है। इसको करने में कोई रासायनिक उर्वरक का प्रयोग नहीं किया जाता। देशी गाय के गोबर, गोमूत्र, गुण, बेसन, पानी व विभिन्न पेड़-पौधों की पत्तियों का उपयोग कर बीजामृत, जीवामृत घनजीवामृत, दशपर्णी अर्क व नीमास्त्र के माध्यम से खेती की जाती है। इसक प्रशिक्षण भी किसानों को दिया जाता है।
देशी गाय के गोबर में 300 से 500 करोड़ सूक्ष्म जीवाणुः श्रीकृष्ण चौधरी ने बतायाकि देशी गाय के एक ग्राम गोबर में 300 से 500 करोड़ सूक्ष्म जीवाणु पाए जाते हैं जो मिट्टी में अनुकूल परिस्थिति तंत्र का निर्माण कर पौधों को सभी पोषक तत्व उपलब्ध कराते हैं। जीवामृत के रूप मेें इसका प्रयोग करने से ये सूक्ष्म जीवाणु सैकड़ों गुना बढ़ जाते हैं। फसल अवशेष को खेतों में पलटकर खाद के रूप में प्रयोग करने से लाभ मिलता है। सह फसली व बेड पद्धति का उपयोग करने से भूमि की उर्वरा शक्ति एवं कार्बन की मात्रा में इजाफा होता है। 80 प्रतिशत पानी की भी बचत होती है।
एक गाय से होती है 10 से 30 एकड़ खेतीः पर्यावरण एवं प्रकृति का संरक्षण कर एक देशी गाय के गोबर-गोमूत्र के द्वारा 10 से 30 एकड़ खेत में प्राकृतिक खेती की जा सकती है। इससे भूमि में देशी केचुए सक्रिय होकर खेत को उपजाऊ और मुलायम बनाने में मदद करते हैं। खेती से पैदा होने वाला खाद्यान की गुणवक्ता, पौष्टिकता व स्वाद में वृद्धि के कारण किसान को अपने उत्पाद का बाजार में अधिक मूल्य भी मिल रहा है। प्रकृति मेें पौधों के पोषण की चक्रीय एवं स्वावलंबी व्यवस्था है। इस पद्धति से खेती करने पर प्राकृतिक आपदा जैसे- ओला, अति वर्षा, सूखा आदि का प्रभाव फसलों पर कम पड़ता है।
पराली जलाने से होगा नुकसानः उपकृषि निदेशक डा.सीपी श्रीवास्तव ने बताया कि प्राकृतिक खेती भूमि की उपजाऊ क्षमता को लगातार बढ़ाती है। खेत मेें पराली जलाने से पोषक तत्व नष्ट हो जाते हैं। इससे किसानों को नुकसान होता है। पकड़े जाने पर एक हजार से पांच हजार का जुर्माना भी देना पड़ता है।