जाली मार्कशीट बनाकर हो रही थी ठगी, लविवि के चार कर्मचारी निलंबित
हसनगंज पुलिस ने जाली मार्कशीट और डिग्री बनाकर छात्रों से ठगी करने वाले गिरोह का राजफाश किया है। जिसमें लखनऊ विश्वविद्यालय ने चार कर्मचारियों को निलंबित किया।
लखनऊ, जेएनएन। फर्जी मार्कशीट बनाने के मामले में पकड़े गए आरोपितों के बयान में लखनऊ विश्वविद्यालय के तीन अन्य कर्मचारियों के नाम उजागर हुए हैं। ऐसे में इन तीन कर्मचारियों के अलावा बुधवार को गिरफ्तार कर्मचारी को भी निलंबित कर दिया गया है।
इनमें वरिष्ठ सहायक राजीव, कनिष्क लिपिक संजय सिंह चौहान, चतुर्थ श्रेणी कर्मी गया बक्श सिंह शामिल हैं। तीनों परीक्षा विभाग में ही कार्यरत हैं। राजीव से लविवि चौकी पुलिस ने घंटों पूछताछ की तो वहीं दो अन्य आरोपितों संजय सिंह व गया बक्श सिंह नाम उजागर होने के बाद से ही फरार बताए जा रहे हैं। लविवि के कुलसचिव एसके शुक्ला ने पहले दिन पकड़े गए चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी नायाब हुसैन के साथ उक्त तीनों कर्मचारियों को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया है।
बाबुओं की अलमारियों का किया सील
पुलिस ने कार्रवाई करते हुए गुरुवार को विश्वविद्यालय के कई बाबुओ की अलमारियों को सील कर दिया। लविवि के कुलपति की ओर से एसएसपी को पत्र भी लिखा गया। वहीं अभी मामले में कई और पक्ष भी सामने आने बाकि है।
अधिकारियों तक की मिलीभगत
फर्जी मार्कशीट रैकेट के संचालन में लखनऊविश्वविद्यालय के कर्मचारियों की भूमिका शर्मसार करने वाली है। यह पहली बार नहीं है, जब जाली अंकपत्रों का मामला सामने आया हो। इससे पहले भी तमाम अन्य विवि की जाली मार्कशीट के मामले सामने आते रहे हैं। मगर मंगलवार को उजागर हुए मामले ने लखनऊ विश्वविद्यालय के परीक्षा विभाग की शुचिता पर सीधे सवाल उठाए हैं। विवि सूत्रों का कहना है कि कर्मचारियों पर कार्रवाई तो बड़ी कुर्सी पर बैठे लोगों ने खुद को बचाने के लिए की है। निष्पक्ष व पारदर्शी जांच हो तो परीक्षा विभाग के शीर्ष स्तर के अधिकारी भी नप सकते हैं। ऐसे में साफ है कि जाली मार्कशीट के रैकेट में लखनऊ विश्वविद्यालय के कर्मचारियों की ही नहीं, अधिकारियों की भी मिलीभगत से इंकार नहीं किया जा सकता।
नई-नई जानकारी आ रही सामने
मामले में पकड़े गए आरोपित खिरोधन प्रसाद उर्फ गंगेश से जुड़ी कुछ अन्य जानकारियां भी सामने आई हैं। गुरुवार को खुद परीक्षा विभाग के कर्मचारियों द्वारा इस बड़े तंत्र का खुलासा किया गया। बताया गया कि खिरोधन के पिता परीक्षा विभाग में दफ्तरी से रिटायर हुए हैं। साल 1995 से खिरोधन ने विवि में काम शुरू किया। विवि में ऊपर से नीचे तक मजबूत पकड़ का ही नतीजा रहा कि खिरोधन के दो रिश्तेदार भी परीक्षा नियंत्रक कार्यालय में कार्यरत हैं। गंभीर बात है कि इस बात की जानकारी हर किसी को है, बावजूद इसके जिम्मेदारों ने इसकी अनदेखी जारी रखी।
अधिकारी काटते रहे किनारा
लविवि से जुड़े बेहद संवेदनशील मामला होने के बावजूद विवि के तमाम अधिकारी मामले से खुद को अलग करते दिखाई दिए। कुलसचिव के आदेश के बावजूद परीक्षा नियंत्रक कार्यालय के बाबू से लेकर अधिकारी तक कार्रवाई की प्रक्रिया में दिलचस्पी नहीं दिखाते दिखे। वहीं, डिप्टी रजिस्ट्रार की जानकारी में होने के बाद भी उनके अवकाश पर जाने की चर्चा जोरों पर रही।
हाजिरी लगाकर फरार हो गया निलंबित कर्मी
इधर, पकड़े गए छह आरोपियों द्वारा राजीव, संजय सिंह चौहान, गया बक्श सिंह के नाम का खुलासा होते ही विवि में सनसनी फैल गई। लविवि चौकी इंचार्ज अभय सिंह ने बताया कि नाम सामने आते ही तीनों की खोजबीन शुरू कर दी गई है। राजीव को फोन कर बुलाया गया तो वह हाजिर हो गए। मगर संजय व गया बक्श फरार हो गए। इसी के साथ लविवि प्रशासन ने कर्मचारियों के निलंबन का आदेश भी जारी कर दिया गया। मगर दूसरी ओर परीक्षा विभाग में एक और खेल जारी रहा। लोगों ने बताया कि ओएस बालक राम तिवारी के पास रखे हाजिरी रजिस्टर पर संजय सिंह उपस्थिति दर्ज कराकर फरार हुआ।
कुलपति ने निष्पक्ष जांच के लिए एसएसपी को लिखा पत्र
लविवि कुलपति प्रो एसपी सिंह का कहना है कि मामला बेहद गंभीर है। चार कर्मचारियों का निलंबन प्रारंभिक कार्रवाई है। पूरे प्रकरण में विभाग के कर्मचारियों के साथ ओएस व परीक्षा नियंत्रक की भूमिका भी जांच के दायरे में हैं।
क्या बोले अधिकारी
हसनगंज के इंस्पेक्टर धीरज शुक्ला ने बताया कि मामले की जांच की जा रही है। कई अन्य तथ्य भी सामने आए हैं। जिनजिन के नाम सामने आ रहे हैं, उनसे पूछताछ शुरू कर दी गई है।
कानपुर, अवध, दिल्ली विवि तक फैले हो सकता है जाल
इस गिरोह का फर्जीवाड़ा उजागर होने से पहले भी लखनऊ विश्वविद्यालय के कर्मचारियों की संलिप्तता की बात सामने आ रही है। पुलिस का कहना है कि आरोपितों के जाल कानपुर विश्वविद्यालय, अवध विवि और दिल्ली विवि समेत अन्य संस्थानों तक फैले हुए हैं। सीओ महानगर संतोष कुमार सिंह के मुताबिक पकड़े गए आरोपितों में निवाजगंज ठाकुरगंज निवासी नायाब हुसैन लविवि के रिकॉर्ड रूम का कर्मचारी है। आरोपित गोपनीय दस्तावेजों की देखरेख करता है। वहीं, कल्याणपुर निवासी खिरोधन प्रसाद उर्फ गंगेश लविवि से बर्खास्त किया जा चुका है। इसके अलावा फैजुल्लागंज निवासी दीपक तिवारी के पिता प्रेम शंकर तिवारी विवि से ही सेवानिवृत हैं, जबकि अमेठी गोसाईगंज निवासी दीवान सिंह जानकीपुरम में कोचिंग चलाता है। इंस्पेक्टर हसनगंज ने बताया कि छात्रों को फर्जी मार्कशीट देने के लिए महमूदाबाद सीतापुर निवासी रवींद्र प्रताप स्कैनिंग का काम करता था, जो वहीं पर सरदार सिंह महाविद्यालय के प्राचार्य पद पर तैनात है। रवींद्र ही सारे फर्जी दस्तावेज स्कैन कर उसे वास्तविक मार्कशीट की तरह बनाता था। इसके अलावा खदरा निवासी मधुरेंद्र पांडेय जालसाजी में आरोपितों की मदद करता था। गिरोह के चार अन्य सदस्य अभी फरार हैं।
यह हुई थी बरामदगी
आरोपितों के पास से 14 फर्जी मार्कशीट, दो सादे लिफाफे कंट्रोलर ऑफ इग्जामिनेशन, लखनऊ विवि की मोनोग्राम लगी दो सादा मार्कशीट, एक लैपटॉप, एक स्कैनर, आठ मोबाइल फोन, एक बाइक, एक स्कूटी और सात हजार छह सौ रुपये बरामद किए गए हैं।
परीक्षा में अधिक अंक दिलाने का देते थे झांसा
पुलिस के मुताबिक गिरोह के सदस्य छात्र-छात्राओं को अपने जाल में फंसाते थे। इसके बाद उन्हें विभिन्न विश्वविद्यालयों में प्रवेश दिलाने और परीक्षा में अधिक अंक दिलाने का झांसा देते थे। इसके एवज में छात्रों से मोटी रकम वसूलते थे और फिर उन्हें फर्जी मार्कशीट थमा देते थे।
बांट चुके हैं सैकड़ों फर्जी डिग्रियां
पूछताछ में आरोपितों ने बताया कि अभी तक उन लोगों ने 300 छात्र-छात्राओं को फर्जी डिग्रियां बांटी हैं। गिरोह में कई विश्वविद्यालयों के कर्मचारी शामिल हैं। आरोपित खिरोधन वकालत करता है। खिरोधन के अलावा मधुरेंद्र गिरोह का मास्टर माइंड है। दानों अपने-अपने घर से फर्जीवाड़ा करते थे।
एलएलएम में प्रवेश दिलाने के नाम पर की ठगी तो खुला राज
सेक्टर एफ जानकीपुरम निवासी सौरभ यादव ने हसनगंज कोतवाली में ठगी की रिपोर्ट दर्ज कराई थी। सौरभ ने पुलिस का बताया था कि वर्ष 2018 में एलएलबी (पांच वर्षीय) दाखिले के लिए उसने लविवि में परीक्षा दी थी, लेकिन उसका नहीं हो पाया था। इस पर उसके रिश्तेदारों ने ट्यूशन पढ़ाने वाले दीवान सिंह से बात की तो उसने मैनेजमेंट कोटे से प्रवेश दिलाने की बात कही। झांसे में लेकर आरोपितों ने कई बार में डेढ़ लाख रुपये ले लिए। गिरोह ने सौरभ को फर्जी मार्कशीट तक दिखाई और एडमिशन होने की बात कही। संदेह होने पर पीडि़त ने एफआइआर दर्ज कराकर कार्रवाई की मांग की थी।