2020 budget Expectations: सरकार से चिनहट पॉटरी की खनक वापस लाने की दरकार Lucknow News
Expectations from 2020 budget 1997 में ताला लगने की वजह से ग्यारह इकाइयों में कार्यरत 400 से अधिक कारीगरों की कमाई पर भी पड़ गया था ताला।
लखनऊ [पुलक त्रिपाठी]। Expectations from 2020 budget: चलती चाक और कारीगरों की चहल पहल, ऊंची चिमनियां और बर्तनों की खनक वापस लाने की जरूरत है। चिनहट पॉटरी के नाम से कभी मशहूर रहा इलाका अब बर्तनों की आवाजें सुनने की लिए बेकरार है। हर बार की तरह इस बार भी केंद्र सरकार के बजट से आशाएं हैं कि शायद इन दीवारों की बदनसीबी पर कोई तरस खा जाए। अब तो लघु उद्योग विकास विभाग के दावे भी बेमानी लगने लगे हैं।
एक वक्त वह भी था जब चीनी मिट्टी को मिलाकर चाक पर उन्हें आकार देकर सिरेमिक पेंट किया जाता था तो बर्तनों की चमक से यहां की दीवारें चमक जाती थी। कच्चे बर्तनों को कोयले की भट्ठी में पकाने में कारीगरों का जो पसीना बहता था, उसका एहसास बर्तनों की चमक और डिजाइन में नजर आता था।
क्रॉकरी के गढ़ खुर्जा के बाद चिनहट के पॉटरी उद्योग का अपना अलग मुकाम था। विकास अन्वेषण एवं प्रयोग विभाग की पहल पर विदेशी यहां आते थे तो वे भी चमक के कायल हो जाते थे। देश ही नहीं विदेशों में भी पॉटरी की अलग पहचान रही। राजधानी आने वाले हर पर्यटक की खास पसंद में शामिल इस उद्योग को आगे बढ़ाने की पहल तो हुई मगर सार्थक दिशा में नहीं। 1970 में विकास अन्वेषण एवं प्रयोग विभाग ने उत्तर प्रदेश लघु उद्योग विकास निगम को पॉटरी उद्योग के विकास की जिम्मेदारी थी। परिसर में 11 इकाइयों में 400 से अधिक कारीगर हर दिन काम कर अपनी रोजी रोटी का इंतजाम करते थे। कभी लघु उद्योगों के गढ़ के रूप में प्रचलित इस इलाके में धधकती भठ्ठियों से निकलने वाला धुआं पिछले कई दशकों से बंद पड़ा है।
घाटे के हवाले कर दी पेट पर चोट
1997 में लघु उद्योग विकास निगम ने घाटे का हवाला देते हुए चिनहट पॉटरी पर ताला लगाने का निर्णय क्या लिया मानों कारीगरों और मजदूरों की जिंदगी का पहिया रुक गया हो। इस उद्योग के सहारे आसपास के गांवों के लोगों को मिलने वाला कारोबार भी ठप हुआ तो वे भी आंदोलन में शामिल हुए मगर कोई फायदा नहीं हुआ। पॉटरी के कारोबारी दिनेश उपाध्याय ने बताया की चिनहट पॉटरी को सुचारू रूप से संचालित करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को पत्र भेजकर इस ऐतिहासिक धरोहर को बचाने के लिए पत्र लिखा है। ऐतिहासिक धरोहर के साथ ही पारंपरिक कारोबार को भी बढ़ाने की जिम्मेदारी भी सरकार की ह। ऐसे में इन्हें इसका भी ख्याल रखना चाहिए।
संगठित कारोबार की पहल
मौजूदा समय में जब संगठित कारोबार की बात की जा रही है तो यह जानकार हैरानी होगी कि चिनहट पॉटरी पर 11 इकाइयां उत्पादन को नई दिशा दे रही थीं। कप से लेकर हांडी तक और प्लेट से लेकर पेन सेट तक की आकृतियां इस कारोबार में चार चांद लगाती थीं। इसकी पहचान सिरेमिक डिजाइन के हब के रूप में बन चुकी थी। चिनहट के इस ऐतिहासिक धरोहर को बचाने के वायदे तो किए जा रहे हैं, लेकिन ऐसा होगा और कब होगा इसी का सभी को इंतजार है।
क्या कहते हैं जिला उद्योग अधिकारी ?
लखनऊ जिला उद्योग अधिकारी पवन अग्रवाल के मुताबिक, कारीगरों के हुनर को जीवित रखने के लिए प्रदेश सरकार ने खादी ग्रामोद्योग की निगरानी में माटी कला बोर्ड का गठन किया है। विश्वकर्मा श्रम सम्मान योजना भी शुरू की है। इसके तहत हम छह दिन की ट्रेनिंग देते हैं। 200 रुपये मानदेय और टूल किट देते हैं। पॉटरी उद्योग के लिए हर स्तर पर गंभीरता से विचार किया जा रहा है।