वैक्सीन के बाद भी कोरोना से बचाव में लगाना होगा मास्क
लखनऊ जेएनएन। कोरोना को सिर्फ वैक्सीन से नहीं हराया जा सकता। देश में वायरस की चेन ब्रेक क
लखनऊ, जेएनएन। कोरोना को सिर्फ वैक्सीन से नहीं हराया जा सकता। देश में वायरस की चेन ब्रेक करने में कई फैक्टर शामिल होंगे। इनमें मास्क (क्लॉथ वैक्सीन) का रोल भी अहम होगा।
कोरोना महामारी पर केजीएमयू में शनिवार को आयोजित वेबिनार में इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आइसीएमआर) के डायरेक्टर जनरल प्रो. बलराम भार्गव ने यह बात कही। इसमें उन्होंने कोरोना से निपटने की वर्तमान और भविष्य की तैयारियों पर चर्चा की। कहा कि देशवासियों को जल्द वैक्सीन मिलेगी। पांच वैक्सीन पर ट्रायल देश में चल रहा है। इनमें दो भारतीय और तीन विदेशी हैं।
वायरस की चेन ब्रेक करने में वैक्सीनेशन, पहले से संक्रमित हो चुके व्यक्तियों में मौजूद एंटीबॉडी और मास्क का प्रयोग मुख्य हथियार बनेंगे। मास्क एक प्रकार से क्लॉथ वैक्सीन है। इससे 30 से 40 फीसद तक संक्रमण से बचाव मुमकिन है। वहीं, देश में कोरोना के बढ़ रहे मामलों को देखते हुए उन्होंने लॉकडाउन की दोबारा जरूरत को नकार दिया। बीसीजी से मिली एंटीबॉडी प्रो. भार्गव ने कहा कि आइसीएमआर ने सीरो सर्वे, प्लाज्मा ट्रायल व बीसीजी टीके का ट्रायल कराया है। दो सीरो सर्वे की रिपोर्ट आ चुकी है। तीसरा सर्वे दिसंबर में पूरा होगा। वहीं, बीसीजी के टीके में शुरुआती परिणाम सकारात्मक आए हैं। मरीजों में एंटीबॉडी पाई गई है। हालांकि, पूरे छह माह की रिपोर्ट आने पर ही फाइनल रिपोर्ट जारी होगी। उन्होंने कहा कि कोविड वैक्सीन के निर्माण पर देश में सही दिशा में काम चल रहा है। कोरोना वैक्सीन की दो से तीन डोज लगेंगी। इनका अंतराल तीन से चार सप्ताह का हो सकता है। 'उड़ान मिशन' के अच्छे परिणाम प्रो. भार्गव के मुताबिक देश में कोरोना से निपटने के लिए कई विभागों ने मिलकर 'लाइफ लाइन उड़ान मिशन' चलाया। इसका परिणाम ये हुआ कि मार्च में देश में जहां कोरोना जांच के लिए सिर्फ 150 लैब थीं, वहीं अब बढ़कर 22 सौ हो गई हैं। इसके अलावा ट्रूनेट जांच के लिए 2530 वर्क स्टेशन बनाए गए हैं। अब कोविड मरीजों की क्लीनिकल रजिस्ट्री शुरू हो गई है। 2025 तक जीडीपी का 2.5 हेल्थ सर्विस पर खर्च होगा। इससे स्वास्थ्य सेवाएं अपग्रेड होंगी। वहीं, तमाम नए जांच उपकरण भी दिसंबर के अंत तक आने वाले हैं। वेबिनार में हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ. नरेश त्रेहन ने कोरोना के दौरान प्राइवेट अस्पतालों की चुनौतियों पर चर्चा की। लेफ्टिनेंट जनरल पीपी वर्मा ने कोविड मरीजों में किडनी की समस्या पर जानकारी दी। रीढ़ की हड्डी के द्रव्य में भी मिला कोरोना अमूमन इंसान के थ्रोट स्वैब-नेजल स्वैब (गले-नाक का द्रव्य) में पाया जाने वाला कोरोना वायरस शरीर के अन्य हिस्सों में भी पैठ बना रहा है। दुनिया के कुछ मरीजों में रीढ़ की हड्डी के द्रव्य में इसकी मौजूदगी मिल चुकी थी। अब किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी (केजीएमयू) में भर्ती एक मरीज में भी ऐसी ही पुष्टि से डॉक्टर हैरान हैं। बेहोशी की हालत में लाए गए इस मरीज की जांच कराने पर भारत में वायरस का तेजी से बदला स्वरूप सामने आया है। वेबिनार में संक्रामक रोग यूनिट प्रभारी डॉ. डी हिमांशू ने इस गंभीर मरीज की स्टडी प्रदर्शित की। वेबिनार में कुलपति ले. जनरल डॉ. विपिन पुरी भी मौजूद थे। लोहिया में इमरजेंसी में भर्ती करने में आनाकानी, परेशानी लोहिया संस्थान में इमरजेंसी सेवाओं में सुधार नहीं हो रहा है। यहां संबंधित बीमारी के विभाग होने के बावजूद मरीजों को केजीएमयू रेफर किया जा रहा है। ऐसे में गंभीर मरीज इलाज के लिए भटकने को मजबूर हैं।
लोहिया संस्थान में नेफ्रोलॉजी, यूरोलॉजी दोनों विभाग हैं। यहां बस्ती निवासी सुनीता 48 वर्ष को इलाज के लिए परिवारजन लाए। पति मुकेश के मुताबिक सुनीता को दो दिनों से यूरिन पास नहीं हो रहा था। ऐसे में उनका पेट फूल गया। हालत गंभीर होने पर शाम को लोहिया लाए गए। मरीज को इमरजेंसी में शाम को भर्ती करने से इंकार कर दिया गया। डॉक्टरों ने मरीज को केजीएमयू ले जाने की सलाह दे दी। ऐसे ही 65 वर्षीय राजेंद्र को लिवर का कैंसर है। हालत गंभीर होने पर उन्हें रायबरेली से लोहिया रेफर किया गया। यहां कैंसर व गैस्ट्रो के विभाग होने के बावजूद इमरजेंसी में लिवर कैंसर रोगी को इलाज नहीं मिल सका। ऐसे में परिवारजन निजी अस्पताल लेकर चले गए। संस्थान के प्रवक्ता डॉ. श्रीकेश सिंह के मुताबिक इमरजेंसी में आने वाले मरीजों को तत्काल इलाज मुहैया कराने के निर्देश हैं। बेड फुल होने पर भर्ती में दिक्कतें होती हैं।