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जागरूकता बढ़ाने के उद्देश्य से शॉर्ट फिल्मों से दे रहीं कैंसर से लड़ने और जीतने का हौसला

Cancer नीलू कहती हैं- कैंसर नाम ही जेहन में सिहरन दौड़ाने को काफी है। फिर सोचिए कि उन लोगों को जो हकीकत में इसको जीते हैं पीड़ादायक इलाज से जूझते हैं।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Thu, 05 Mar 2020 09:08 AM (IST)Updated: Thu, 05 Mar 2020 01:36 PM (IST)
जागरूकता बढ़ाने के उद्देश्य से शॉर्ट फिल्मों से दे रहीं कैंसर से लड़ने और जीतने का हौसला
जागरूकता बढ़ाने के उद्देश्य से शॉर्ट फिल्मों से दे रहीं कैंसर से लड़ने और जीतने का हौसला

लखनऊ, अम्बिका वाजपेयी। Cancer: लखनऊ की छात्रा नीलू शर्मा ने कैंसर को लेकर भय कम करने और जागरूकता बढ़ाने के उद्देश्य से कैंसर सर्वाइवर्स की जीत की कहानियां पर्दे पर गढ़ी हैं। उनकी बनाई तीन मार्मिक डाक्यूमेंट्री में से एक को राष्ट्रीय विज्ञान फिल्म फेस्टिवल में दिखाया जाएगा, जिसका आयोजन त्रिपुरा में 18 से 22 मार्च तक होना है।

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नीलू कहती हैं- कैंसर नाम ही जेहन में सिहरन दौड़ाने को काफी है। फिर सोचिए कि उन लोगों को जो हकीकत में इसको जीते हैं, पीड़ादायक इलाज से जूझते हैं, इससे निबटने में किस हौसले की जरूरत पड़ती होगी। अगर किसी तरह बीमारी की दिक्कतें झेल भी जाएं, लेकिन मानसिक यातना कम नहीं होती। मरीजों की इसी मुश्किल को महसूस कर मैंने इस विषय पर शॉर्ट फिल्में बनाईं। मन में पनपने वाले खौफ पर जीत दर्ज करने के लिए उन्हें केवल हौसले की दरकार है, जो ये फिल्में देती हैं।

नीलू लखनऊ के बाबा साहब भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय से मास कम्युनिकेशन एंड जर्नलिच्म में पीएचडी कर रही हैं। उन्होंने अपने फेलोशिप के पैसे से तीन डाक्यूमेंट्री फिल्म बनाई हैं, जिसमें जागरूकता से जुड़ी फिल्म को ‘केन क्योर कैंसर’ टाइटल से दर्शाया गया है। दूसरी फिल्म ‘नो कैंसर’ में इसके इलाज की विधियों को बिना डराए उकेरा गया है। तीसरी फिल्म ‘केन ब्रेक कैंसर’ में उन लोगों की जुबानी उनके संघर्ष की कहानी है, जिन्होंने इस बीमारी पर जच्बे से जीत हासिल की है। यही फिल्म फेस्टिवल में दिखाई जाएगी।

नीलू का कहना है कि वह ऐसा शोध नहीं करना चाहती थीं जो लाइब्रेरी में फाइल्डअप होकर रह जाए। एक ऐसा ऑडियो विजुअल आउटपुट देना चाहती थीं जो समाज में जागरूकता लाए। नीलू वैसे तो मरीजों को अस्पतालों में यह फिल्में दिखाती हैं, लेकिन वह सरकार से इन्हें अस्पतालों में दिखाने की मांग करेंगी। मकसद यह कि इस बीमारी को लेकर व्याप्त भ्रम और भय जेहन से निकल सके।

नीलू अपने इस शोध के लिए केजीएमयू के डॉ. सुधीर सिंह और आनंद मिश्रा व लोहिया संस्थान की डॉ. रोहिणी को धन्यवाद देती हैं, जिन्होंने उनकी सहायता की। बताती हैं कि यूनिवर्सिटी के मास कम्युनिकेशन एंड जर्नलिच्म विभाग के हेड ऑफ डिपार्टमेंट प्रोफेसर गोविंद पांडेय का मार्गदर्शन फिल्मों में रहा। इस फिल्म को बनाने में करीब एक साल लगा। लखनऊ के आलमबाग की इंद्रपुरी कॉलोनी में मां के साथ रहने वाली नीलू वर्तमान में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद लखनऊ इकाई की अध्यक्ष और राष्ट्रीय कार्यकारिणी की सदस्य भी हैं।

पर्दे पर दिखी इनकी कहानी... : नीलू ने अपनी डाक्यूमेंट्री के लिए ऐसे मरीजों को चुना जो ग्रामीण और अल्पशिक्षित परिवेश से आते थे। इनके लिए कैंसर का नाम ही काफी था। डाक्यूमेंट्री के जरिए उनके जेहन से बीमारी का डर निकाला और उसको पर्दे पर उन्हीं जुबानी पेश किया। सीतापुर की गुलाब देवी, हरदोई के राम सिंह हों या लखनऊ के संजोग वॉल्टर, सभी ने हौसले से इस बीमारी को हराया।

केजीएमयू में जब डॉक्टर ने बताया कि मुझे कैंसर है तो पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई। गांव में जितने मुंह उतनी बातें, लेकिन केजीएमयू में मिली बिटिया (नीलू) ने पिक्चर दिखाई कि देखो कैंसर का इलाज कैसे होता है, डरने की जरूरत नहीं। बिटिया ने हौसला बंधाया और इलाज कराने के बाद आज मैं बिलकुल ठीक हूं।

- गुलाब देवी, कैंसर सवाईवर, सीतापुर, उप्र

जब बीमारी का पता चला तो एकबारगी मौत सामने दिखी। नाउम्मीदी के बीच केजीएमयू और लोहिया के डॉक्टरों का मार्गदर्शन मिला। नीलू मैम ने जब सब कुछ स्क्रीन पर दिखाया तो इलाज कराने और ठीक होने का हौसला मिला। आज मैं कह सकता हूं कि कैंसर लाइलाज नहीं है।

अमर सिंह, कैंसर सवाईवर, हरदोई, उप सदस्य भी हैं

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