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घरवालों के साथ मनाएं ईद, गले मिलने से करें परहेज- मौलाना खालिद रशीद फरंगी महली

घरों में होगी ईद की नमाज ईद की मुबारकबाद देने में गले न मिलने की हुई अपील।

By Anurag GuptaEdited By: Published: Sat, 16 May 2020 05:21 PM (IST)Updated: Sat, 16 May 2020 05:21 PM (IST)
घरवालों के साथ मनाएं ईद, गले मिलने से करें परहेज- मौलाना खालिद रशीद फरंगी महली
घरवालों के साथ मनाएं ईद, गले मिलने से करें परहेज- मौलाना खालिद रशीद फरंगी महली

लखनऊ, जेएनएन। ईदगाह के इमाम मौलाना खालिद रशीद फरंगी महली ने कहा कि एक ओर जहां पूरी दुनियां में कोरोना सक्रमण फैला हुआ है वहीं दूसरी ओर रमजान के पाक महीने में घरों में रोजेदार इबादत कर प्रशासन के बताए नियमों का पालन कर शारीरिक दूरी बनाकर अल्लाह की इबादत कर रहे हैं। कोरोना से बचने के लिए हुकूमत के बनाए नियमों का पालन करते हुए ईद की खुशियां भी घर वालों के साथ मनाएं।

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ईद पर या उसके बाद आपको अवाई वतन आने का मौका मिले तो आप ऐसी सूरत में भीड़ से दूर रहेंगे और 21 दिनों तक खुद को घर के सदस्यों से दूर रखेंगे। मौलाना ने कहाकि ईद पर गले मिलने और मुसाफासे खुद को अलग रखें। 25 मई को होने वाली ईद से पहले मौलाना ने ईद पर नए कपड़े खरीदने से परहेज करने और पुराने अच्छे साफ कपड़े को पहन कर ईद मनाने की गुजारिश की है। मोलाना में गैर जरूरी सामानों को न खरीदने अाैर बाजार में भीड़ न बढ़ाने की भी अपील रोजेदारों और मुस्लिम समाज के लोगों से की है। मौलाना ने कहा कि रमजान का महीना कुरान पाक का महीना है। दिन में रोजा रखे और रात को पूरे माह बीस रकआत तरावीह पढ़े। तहज्जुद, अशराक़, चाश्त, अव्वाबीन और अन्य नफलें पढ़ें। मौलाना ने कहा कि इस मुकद्दस माह में जकात, सदक़ा और खैरात अदा करने का विशेष एहतिमाम किया जाए। गरीबों, जरूरतमंदों, मोहताजों और परेशान लोगों की खूब मदद की जाए। अपने आप को, अपने बच्चों और घरों को गुनाहों से बचाएं। शब-ए-कद्र और आखिर की दूसरी ताक रातों और जुमअतुलविदा और ईद-उल-फित्र की नमाज भी घरों में ही अदा करें।

ज़कात अदा करना हर मोमिन अमीर (साहिब ए निसाब) पर फर्ज़-मुफ्ती इरफान मियां

इदारा ए शर‌इया फरंगी महली अध्यक्ष व शहर-ए-काजी मौलाना मुफ्ती इरफान मियां फरंगी महली ने कहाकि इस्लाम मज़हब के पांच आधार में एक ज़कात है। रमज़ान ज़कात देने के लिए बेहतर महीना है। क्योंकि रमजा़न तमाम महीनों का सरदार है। इस महीने में जो भी इबादत की जाती है उसका सवाब 70 फीसद ज़्यादा बढ़ जाता  है। इस महीने पढ़ी जाने वाली नमाजों का भी सवाब भी 70 फीसद ज़्यादा हो जाता है। इसी तरह इस महीने अदा की जाने वाली ज़कात का भी सवाब बढ़ जाता है। जो शख्स अमीर (साहब ए निसाब) होकर ज़कात से जी चुराता है वो अल्लाह की नाराज़गी हासिल करता है। इसलिए हर हैसियतमंद इंसान को ज़कात देना चाहिए। ज़कात की अहमियत इस बात से पता चलती है कि कुरआन में अल्लाह पाक ने ज़कात का बयान 32 जगहों पर किया है। इस्लाम के पांच बुनियादी चीजों में ज़कात तीसरे स्थान पर है। आज मुसलमानों में जो गरीबी है वो इस तरफ इशारा कर रही है कि ज़कात की अदायगी ठीक तरह से नहीं हो रही है। सभी लोग ज़कात अदा करें तो इसे एकत्र कर मुसलमानों की गरीबी को दूर किया जा सकता है। ज़कात की तकसीम के कानून खुद अल्लाह ने तय कर दिए हैं। इसलिए ये जरूरी है कि हम ज़कात देने से पहले ये परख लें कि जिसे हम जकात दे रहे हैं वे कुरआन और हदीस की रोशनी में इसके पात्र हैं या नहीं। दरअसल ज़कात का मकसद ही है कि गरीब और लाचार लोगों की जरूरत को पूरा किया जाए। 

ज़कात कौन दे सकता है

  •  जो बालिग हो
  • जो कमाने के लायक हो

जिस मुस्लिम मर्द या औरत के पास 52.50 तोले चांदी या 7.50 तोला सोना, या सोना चांदी मिलाकर कोई एक हो जाए या इतनी कीमत की धनराशि या संपत्ति हो। या कारोबार हो।

ज़कात कितनी देनी चाहिए

  • जकात कुल संपत्ति का 2.5 फीसद देना चाहिए
  • जकात किसको दे सकते हैं
  • गरीब रिश्तेदार
  • गरीब पड़ोसी किसी भी धर्म का
  • गरीब दोस्त
  • गरीब और मजबूर, बेसहारा, मुसाफिर
  • मिस्कीन और फ़कीर
  • यतीम
  • मदरसों में पढ़ने वाले गरीब बच्चों को।
  • जकात किसको नहीं दे सकते हैं
  • पिता
  • माता
  • पत्नी
  • बच्चे
  • दादा व दादी
  • नाना व नानी
  • सैयद जादे व हाशमी। 

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