'साहित्यिक पत्रकारिता के महत्व को पहचानते थे डॉ. निशंक'
लखनऊ जेएनएन। डॉ. लक्ष्मी शंकर मिश्र निशंक की 102वीं जयंती अध्ययन संस्थान द्वारा उनके अ
लखनऊ, जेएनएन। डॉ. लक्ष्मी शंकर मिश्र ''''निशंक'''' की 102वीं जयंती अध्ययन संस्थान द्वारा उनके आवास पर मनाई गई। कार्यक्रम का शुभारंभ दीप प्रज्वलित कर किया गया। इस दौरान अध्यक्षता कर रहे डॉ. कमलाशंकर त्रिपाठी ने कहा कि वह कुशल अध्यापक, ख्याति प्राप्त कवि, गद्यकार, कुशल संपादक और एक सफल संयोजक थे। उन्होंने खड़ी बोली के साथ-साथ अवधी और ब्रज में भी रचनाएं कीं। डॉ. निशंक द्वारा रचित वाणी वंदना की प्रस्तुति अंजना मिश्र ने दी। वरिष्ठ पत्रकार योगेंद्र द्विवेदी ने उनकी संपादन कला पर प्रकाश डालते हुए कहा कि निशंक जी साहित्यिक पत्रकारिता के महत्व को पहचानते थे। कॉलेज पत्रिका ज्योति, साहित्यिक पत्रिका माधुरी के कई अंक और सुकवि विनोद जैसी स्तरीय पत्रिकाएं उनके संपादन में जीवंत हो उठीं। इसे उन्होंने आधुनिक हिदी साहित्य को गौरवपूर्ण धरोहर के रूप में सौंपा है। डॉ. निशंक के प्रसिद्ध गीत मेरे गीत न गा पाओगे.. को विश्व वार्ता पाक्षिक पत्रिका के संपादक मुकुल मिश्र ने प्रस्तुत किया। कार्यक्रम में डॉ. निशंक के पुत्र डॉ. आलोक मिश्र, अनिल मिश्र उपस्थित रहे।