Double Murder in Lucknow: उजड़ गया बाग, फूल को बचाने को परेशान बेबस बागबां
Double Murder in Lucknow नियति के भयावह तूफान में भी बेटी को बचाने के लिए वटवृक्ष की तरह अडिग खड़े पिता आरडी बाजपेयी को देखकर लोग हुए भावुक
लखनऊ[निशांत यादव]। Double Murder in Lucknow: राजधानी लखनऊ के विवेकानंद मार्ग स्थित आरडी बाजपेयी के वैभवपूर्ण सरकारी आवास पर मुर्दनी सी छाई है। कल तक यहां उनकी गृहस्थी का गुलशन महकता था, मगर आज बस मातम है। बागबां बाजपेयी बेबस हैं। हृदय में ऐसा नश्तर चुभा है जो उम्र भर सालता रहेगा, पर वह अपना दर्द बयां भी नहीं कर सकते। आखिर उनके दिल में शूल चुभोने का इल्जाम उनके गुलशन के फूल पर जो है। अपार पीड़ा से आंखों में उमड़ रहे आंसुओं को दबाकर उनकी कोशिश अब अपनी बगिया के उस एक फूल को बचाने की है, जो प्रारब्ध की क्रूर आंधी में शेष बचा है।
इधर, 1998 बैच के भारतीय रेलवे यातायात सेवा (आइआरटीएस) अधिकारी आरडी बाजपेयी के गेट से लेकर लॉन तक संवेदना देने पहुंचे लोगों की भीड़ है। लोग बहुत हैं, लेकिन सबके सब निशब्द। ढांढस बंधाने पहुंचे लोग भी मातमी माहौल के आगे हिम्मत हार जा रहे हैं। बहुत सी आंखें आंसुओं से भीगी हैं। बस आंखों ही आंखों में संवेदनाओं का सैलाब प्रवाहित हो रहा है। निशब्द आरडी बाजपेयी बीच-बीच में करीबियों से मिलने वाली संवेदनाओं के जवाब में बस इतना ही बोल पाते हैं- मेरा तो सबकुछ खत्म हो गया। अब एक बेटी ही है। इसका जीवन को बचाना ही होगा।
बिटिया अंदर एक कमरे में नानी के साथ है। बाहर आरडी बाजपेयी को अपनी सात जन्म साथ निभाने का वचन देने वाली पत्नी मालिनी और बुझ चुके कुल दीपक सर्वदत्त के पार्थिव शरीर का इंतजार थाा। हृदयविदारक बात है कि उनके कलेजे के टुकड़े पर ही उनके दिल को टुकड़े-टुकड़े करने का आरोप लगा है। इस आरोप को दरकिनार करते हुए आरडी बाजपेयी बेटी को बचाने के चिंतित हैं। लंबी खामोशी के बीच जब भी वह कुछ बोलते हैं, बस बेटी को बचाने की बात ही कहते हैं।
साफ महसूस होता है कि उन्हें इसका पूरा अहसास है कि बेटी इस समय किन हालात से गुजर रही है। उसकी बिगड़ती मनोदशा और दिल में छाए डर के बीच वह उसके भविष्य को लेकर परेशान हैं। वह घर के अंदर जाते हैं तो पैक करके रखे सामान देखकर उल्टे पांव बाहर आ जाते हैं। शायद वह यही सोचने लगते हैं कि जिस घर को कुछ दिन बाद खाली करना था, वहां उससे पहले ही कुछ भी नहीं बचा। डीआरएम संजय त्रिपाठी सहित कई साथी अधिकारी बीच-बीच में उनको ढांढस बंधाते हैं, लेकिन शब्द किसी के पास भी नहीं हैं। सबके सब बेआवाज नियति के इस भयावह तूफान में भी बेटी को बचाने के लिए वटवृक्ष की तरह अडिग खड़े पिता को देखकर भावुक हैं।
भाई को बहुत मानती थी
आरडी बाजपेयी के दोनों बच्चों के एडमिशन संस्कृति स्कूल में हो गया था। उन्होंने बताया कि बेटी अपने भाई को इतना मानती थी कि किसी मांगलिक कार्यक्रम में जाने के लिए एक जैसे कपड़े ही लेती थी। पत्नी और बेटे को खोने के बाद उन्हें अपनी मेधावी और राष्ट्रीय स्तर की निशानेबाज बेटी के भविष्य की चिंता है।