चुनावी चौपाल : स्वच्छ पर्यावरण की मांग हो तो बने मुद्दा
दैनिक जागरण ने चुनावी चौपाल में बढ़ते वायु प्रदूषण और पर्यावरण संरक्षण के मुद्दे को लेकर विशेषज्ञों की राय जानी।
लखनऊ, जेएनएन। पर्यावरण, आज सबसे अहम् मुद्दा है। बावजूद इसके राजनैतिक दल इस पर गंभीर नहीं। यही वजह है कि राजनेता इसे अपने घोषणा पत्र में शामिल नहीं करते। दरअसल जनाधार से जुड़े होने के बावजूद इस मुद्दे को राजनैतिक पार्टियां इसलिए नहीं उठाना चाहती, क्योंकि हम सब आवाज नहीं उठाते। देश में प्रदूषण के कारण हर साल लाखों लोग कैंसर, ब्रेन हैमरेज, अस्थमा व अन्य बीमारियों से मर रहे हैं। गर्भ में बच्चे के आने से पूर्व ही वह प्रदूषण की गिरफ्त में आ जाता है।
जहरीली होती हवाओं के बावजूद वाहनों की संख्या बढ़ती जा रही है। दूसरी ओर आबादी का बढ़ता ग्राफ भी ज्वलंत समस्या है, लेकिन स्वच्छ पर्यावरण के लिए आवाज उठाने वाले शांत हैं, क्योंकि उन्हें इसमें कोई प्रत्यक्ष फायदा नहीं दिखता। हम शुद्ध वातावरण में सांस नहीं ले पा रहे हैं, इसके लिए कोई और नहीं, हम स्वयं ही जिम्मेदार है। कारण यह है कि इसे हम मुद्दा नहीं बना रहे हैं। यह स्थिति तब है जब आने वाले कल के लिए प्रदूषण बड़ी मुसीबत साबित होगा।
प्रदूषण के मामले में लखनऊ सातवें स्थान पर है। वर्ष 2017 में 12 लाख लोगों की मौत सिर्फ वायु प्रदूषण के कारण हुई। हाईवे किनारे रहने वाले लोग ज्यादा प्रभावित हैं और गांवों में रहने वाले लोग थोड़ा कम। जरूरत है पर्यावरण को बेहतर बनाए रखने के लिए तुलसी व पीपल का पौधे लगाए। डॉक्टर फॉर क्लीन संस्था के बैनर तले चिकित्सकों ने सभी राजनैतिक दलों को पत्र लिखकर मांग की है कि पर्यावरण मुद्दे को घोषणा पत्र में शामिल किया जाए, लेकिन अभी तक इस पर अमल नहीं हुआ है। डॉ.सूर्यकांत, राष्ट्रीय अध्यक्ष, इंडियन कॉलेज ऑफ एलर्जी, अस्थमा एंड एप्लाइड इम्यूनोलॉजी।
कोई भी राजनैतिक दल पर्यावरण को लेकर चर्चा नहीं करता। उस सांस को लेकर बात नहीं करता, जो चंद सेकेंड के लिए रुक जाए तो जीवन खत्म हो जाए। पर्यावरण को मुद्दा बनाने के लिए जनसहभागिता जरूरी है। चंद्रभूषण पांडेय, मिशन कल के लिए जल।
पर्यावरण को बचाना है तो उसे अपनी आदत में लाना होगा। जन्मदिन पर एक पौधा जरूर लगाएं और उसकी देखभाल करें। स्कूलों में प्रार्थना सभा के दौरान बच्चों को संकल्प दिलाया जाए कि वह कमरे से निकलें तो पंखा व बत्ती बंद करनिकलें, पौधे लगाएं और पॉलीथिन का इस्तेमाल न करें। विपिन कांत, से.नि. मुख्य अभियंता, यूपीपीसीएल
पर्यावरण को बेहतर बनाने के लिए जागरूकता बेहद जरूरी है। सबसे पहले जनसंख्या पर नियंत्रण हो। वाहनों की खरीद पर सरकार सख्त नियम बनाए। जो पेड़ काटे जाएं उनके बदले नए पौधे लगाए जाएं। सरकार की भूमिका इसमें सबसे बड़ी है, क्योंकि बिना नियम बनाए यह संभव नहीं होगा और उसकी मॉनीटङ्क्षरग जरूरी होगी। डॉ.अमिता कनौजिया, प्रोफेसर, जन्तु विज्ञान, लखनऊ विवि
पर्यावरण को प्रदूषित करने में सबसे अहम रोल धूल (डस्ट) का है। आज लखनऊ विकास प्राधिकरण, नगर निगम, सेतु निगम व पीडब्ल्यूडी अपने निर्माण कार्य के दौरान इस ओर ध्यान नहीं दे रहे हैं। इससे प्रदूषण बढ़ रहा है। एक काम जरूर अच्छा किया है कि सड़कों के किनारे इंटरलॉकिंग टाइल्स लगाई हैं। हमें पीपल, पाकड़, महुआ, आंवला, बरगद व नीम जैसे पौधे लगाने चाहिए। भूटान जैसे छोटे देश से सीखने की जरूरत है, जहां कार्बनडाइआक्साइड से ज्यादा आक्सीजन की कई गुना ज्यादा व्यवस्था है, क्योंकि पौधरोपण और उनकी मॉनीटरिंंग पर ध्यान दिया जाता है। हमें राजनैतिक दलों पर दबाव बनाना होगा, जिससे यह पर्यावरण का मुद्दा राजनीतिक दलों के अहम् मुद्दों में शामिल हो सके। डॉ.प्रदीप श्रीवास्तव, उपनिदेशक व वैज्ञानिक (से.) सीडीआरआइ
पर्यावरण को लेकर कोई भी सियासी दल गंभीर नहीं है। भाजपा ने सिर्फ जल मंत्रालय का जिक्र अपने घोषणा पत्र में किया है। जरूरत है पर्यावरण को नियंत्रित करने के लिए जनसंख्या पर नियंत्रण। चीन जैसे देश ने अपना विकास करने के साथ ही जनसंख्या पर ठोस नीति से नियंत्रण पाने में सफलता पायी। आजादी के समय भारत की आबादी 33 करोड़ थी, आज एक अरब 36 करोड़ हो गई है। जरूरत है हर व्यक्ति पेड़ लगाए और उसकी देखरेख तब तक करें जब तक वह मजबूत व सुरक्षित न हो जाए। जेएस अस्थाना, आइएफएस (से.) पूर्व प्रमुख वन संरक्षक एवं विभागाध्यक्ष, उप्र. महामंत्री सी कार्बन्स संस्था।
आज बढ़ते प्रदूषण के कारण लोगों की कार्य क्षमता कम हो रही है। लोगों में जागरूकता लाने पर ही पर्यावरण मुद्दा बनेगा। ह्यूमन हेल्थ पर लाखों रुपये सिर्फ जागरूकता की कमी के कारण खर्च हो रहे हैं। फिलहाल बिना सख्ती के कोई नियम लागू नहीं होता है। जरूरत है इसे जनाधार से जोडऩे की। डॉ. पीके सेठ, पूर्व निदेशक, भारतीय विष अनुंसधान संस्थान
प्रदूषण का दायरा शहरों व गांवों दोनों जगह बढ़ता जा रहा है। यह फसल के साथ-साथ पूरी अर्थ व्यवस्था को प्रभावित कर रहा है। यह मुद्दा जनता केबीच ले जाए बिना इस पर नियंत्रण संभव नहीं है। सरकार नियम बनाए और इसकी मॉनीटरिंंग करे, क्योंकि पर्यावरण हर शख्स के लिए बेहद जरूरी है। प्रो. राणा प्रताप सिंह, डीन अकादमिक कार्य, बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर विवि
सरकार प्रदूषण को लेकर एक्शन ले। कोडेड यूरिया का फायदा देख अब लोग नीम के पेड़ लगाने लगे हैं। कुल मिलाकर जब तक लोगों को पर्यावरण में कोई फायदा नहीं दिखेगा, वह पूरी तरह जागरूक नहीं होंगे। नीम की जड़ से लेकर पत्ते तक फायदेमंद हैं। शुद्ध पर्यावरण का जीवन में क्या महत्व है और उससे उनको क्या लाभ है यह गणित समझाने की जरूरत है। डॉ.वीके सिंह, नीम रत्न, ग्लोबल नीम आर्गनाइजेशन।
जनजागरण में लाए बिना पर्यावरण मुद्दा नहीं बनेगा। हर साल सरकार के दबाव में पौधरोपण कार्यक्रम होते हैं, लेकिन उनका रखरखाव न होने के कारण वह पनप नहीं पाते और उसी स्थान पर दूसरे पौधे फिर लगा दिए जाते हैं, जिससे स्थिति जस की तस रहती है। जरूरत है मॉनीटरिंंग की। अनुराग सिंह राठौर, शिक्षक, सह समंवयक, बीकेटी।