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कोरोना रिपोर्ट के चक्कर में किडनी मरीजों की डायलिसिस हो रही प्रभावित

लखनऊ के अस्पतालों में बार-बार कोरोना जांच कराने व रिपोर्ट का इंतजार करने के चक्कर में किडनी मरीजों की डायलिसिस प्रभावित हो रही है। इस वजह से कई मरीजों की समय पर डायलिसिस नहीं हो पा रही है। डायलिसिस के लिए तारीख लेनी पड़ रही है।

By Anurag GuptaEdited By: Published: Thu, 05 Nov 2020 03:16 PM (IST)Updated: Thu, 05 Nov 2020 03:16 PM (IST)
कोरोना रिपोर्ट के चक्कर में किडनी मरीजों की डायलिसिस हो रही प्रभावित
लखनऊ के अस्पतालों में बार बार कोरोना रिपोर्ट व जांच की वजह से डायलिसिस के मरीज परेशान।

लखनऊ [धर्मेन्द्र मिश्रा]। बार-बार कोरोना जांच कराने व रिपोर्ट का इंतजार करने के चक्कर में किडनी मरीजों की डायलिसिस प्रभावित हो रही है। इस वजह से कई मरीजों की समय पर डायलिसिस नहीं हो पा रही है। वहीं कुछ मरीजों को दोबारा डायलिसिस की तारीख लेनी पड़ रही है। दरअसल गंभीर किडनी रोगियों की उनके रोग की प्रकृति के आधार पर हफ़्ते में, 15 दिन में व महीने में एक से चार पांच बार तक डायलिसिस होती है। किसी-किसी मरीज को एक ही हफ़्ते में दो-तीन बार डायलिसिस करना पड़ता है। जबकि कुछ मरीजों की 15 दिन में एक या दो बार तो कुछ की महीने में डायलिसिस करनी पड़ती है। मरीजों को हर बार डायलिसिस कराने से पहले उनकी कोरोना रिपोर्ट का निगेटिव होना अनिवार्य होता है।

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आम तौर पर बलरामपुर में मरीज की कोरोना रिपोर्ट 15 दिन तक मान्य होती है। जिन मरीजों की हफ्ते में डायलिसिस होनी है, उन्हें तो ज्यादा दिक्कत नहीं होती, लेकिन जिन मरीजों की डायलिसिस 15 दिन या महीने में होती है, उन्हें फिर से कोरोना जांच करानी पड़ती है। बलरामपुर में किडनी मरीजों की डायलिसिस का जिम्मा संभाल रहे डॉ एन उस्मानी कहते हैं कि यहां पर रोजाना करीब छह मरीजों की डायलिसिस होती है रिपोर्ट दो हफ्ते तक मान्य होने से मरीजों को ज्यादा दिक्कत नहीं है। लोहिया संस्थान में सिर्फ़ एक हफ्ते मान्य है रिपोर्ट: वहीं लोहिया संस्थान में कोरोना की जांच रिपोर्ट एक हफ्ते तक ही मान्य होती है। ऐसे में जिन मरीजों की डायलिसिस एक हफ्ते बाद दोबारा फिर होनी है उन्हें पुनः कोरोना की जांच करानी पड़ती है। यहां मरीज और तीमारदार दोनों की जांच के लिए करीब तीन हज़ार रुपये खर्च करने पड़ते हैं। कोरोना रिपोर्ट समय पर नहीं मिली तो दोबारा लेनी होगी डायलिसिस की तारीख: अगर कोरोना जांच की रिपोर्ट समय पर नहीं मिली तो पहले से तय तारीख पर मरीजों की डायलिसिस नहीं हो पाती। ऐसे में उन्हें इसके लिए दोबारा तारीख लेनी पड़ती है। इस वजह से डायलिसिस का क्रम भी गड़बड़ा जाता है। फलस्वरूप मरीजों की तबीयत और अधिक गंभीर होने का खतरा बढ़ जाता है। क्या कहते हैं तीमारदार: बलरामपुर में एक मरीज की डायलिसिस करा रहे तीमारदार राजेश कुमार कहते हैं कि बार-बार कोरोना जांच कराने व तारीख लेने के चक्कर में कई बार डायलिसिस लेट हो जाती है। इसी तरह लोहिया संस्थान में अपने मरीज की डायलिसिस करा रहे तीमारदार त्रिभुवन कहते हैं कि यहां एक हफ्ते में तक ही रिपोर्ट मान्य होती है। इस वजह से बार-बार कोरोना जांच कराने में ही काफी पैसे खर्च हो जाते हैं। 

लोहिया संस्थान के प्रवक्ता डॉ श्रीकेश सिंह ने बताया कि लोहिया संस्थान में रोजाना करीब 18-20 मरीजों की डायलिसिस की जा रही है। मरीजों की रिपोर्ट एक हफ्ते तक मान्य होती है। यह उनके साथ-साथ अन्य सभी की सुरक्षा के लिए जरूरी है। बाहर से भी अगर मरीज आरटी-पीसीआर जांच कराया है तो उसे भी माना जाता है। ताकि मरीजों को कोई दिक्कत ना हो। 


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