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लिखना जरूरी है: दुनिया बदलने से पहले खुद को बदलना जरूरी Lucknow News

संयुक्त राष्ट्र बाल अधिकार समझौते की 30वीं वर्षगांठ के अवसर पर समाज में बाल अधिकारों के प्रति जागरूकता बढ़ाने के इस प्रयास में दैनिक जागरण और यूनिसेफ की साझा पहल।

By Anurag GuptaEdited By: Published: Sun, 03 Nov 2019 09:38 AM (IST)Updated: Sun, 03 Nov 2019 09:38 AM (IST)
लिखना जरूरी है: दुनिया बदलने से पहले खुद को बदलना जरूरी Lucknow News
लिखना जरूरी है: दुनिया बदलने से पहले खुद को बदलना जरूरी Lucknow News

प्यारे शहरवासियो, 

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मुझे समाज या अपने परिवार से कोई शिकायत नहीं है। पर, मुङो अपने आसपास फैला प्रदूषण बहुत अखरता है। इसके लिए कहीं न कहीं हम स्वयं जिम्मेदार हैं। बस, हमेशा मैं इसी बात को लेकर परेशान रहती हूं, क्योंकि प्रदूषण न केवल हमारी जिंदगी में जहर घोल रहा है बल्कि आने वाली पीढ़ी के लिए भी खतरा बना हुआ है। गाजियाबाद में वायु प्रदूषण की खबर मैंने पढ़ी। बहुत दुख हुआ कि हम कैसे खतरनाक हालात में रहने को मजबूर हैं। लखनऊ की खबर पढ़ी कि इस बार दिवाली के बाद यहां प्रदूषण कम रहा। इसे पढ़कर कई लोग खुश हैं, मगर मैं नहीं। दरअसल, मैं खुद सीजनिंग अस्थमा का शिकार हूं। जब भी मौसम बदलता है, तब मुझे सांस लेने में दिक्कत होने लगती है। दिवाली के बाद मुङो यह समस्या फिर से शुरू हो गई है। इसीलिए मैं दिवाली पर कम प्रदूषण की बात से खुश नहीं हूं। 

मुझे यह समस्या पिछले दो वर्षो से शुरू हुई है। मुङो याद है, जब छोटी थी तब मुङो ऐसी परेशानी नहीं थी। मैं गांव में रहती थी। मऊ जिले से दो साल पहले ही पढ़ाई के लिए लखनऊ आई। दो वर्षो में मैंने सर्दियों की शुरुआत के दौरान सांस की दिक्कत महसूस की। पहले मैंने इस पर ध्यान नहीं दिया। दिक्कत बढ़ने पर जब डॉक्टर को दिखाया तो उन्होंने इस समस्या का कारण प्रदूषण बताया। फिर मैंने सोचा न जाने मेरे जैसे और कितने ऐसे बच्चे होंगे जो प्रदूषण के चलते बीमारियों का शिकार हो रहे होंगे। इस लेटर के जरिये मैं आप सबसे यही अपील करती हूं कि शहर में घुल रहे प्रदूषण के जहर पर ध्यान दें और जिम्मेदारी समङों। यह समस्या किसी एक की नहीं है, बल्कि हर कोई प्रभावित हो रहा है। जो लोग यह सोचते हैं कि वो घर में बैठकर सुरक्षित हैं, वो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्रदूषण का शिकार हो रहे हैं। समय रहते जागरूक होना होगा। 

मैंने कहीं पढ़ा था कि मथुरा की रिफाइनरी में भी सल्फर डायऑक्साइड, नाइट्रस ऑक्साइड गैसें निकलती हैं जो ताजमहल को प्रभावित कर रही हैं। मैं एक साइंस की स्टूडेंट हूं, इसलिए जानती हूं कि ये गैसें कितनी हानिकारक हैं। आजकल सुबह से ही धुंध छा जा रही है। यह कोहरा नहीं, स्मॉग है। वायु प्रदूषण के चलते छाए इस स्मॉग को देखकर मुङो चिंता है कि छठ पूजा पर व्रती महिलाएं सूर्यदेव को अघ्र्य कैसे अर्पित करेंगी, जब स्मॉग उनका दर्शन ही नहीं होने देगा। बस, ऐसी ही कुछ बातें मेरे मन में आती रहती हैं जिसे किसी से कह नहीं पाती थी। वैसे यदि हम चाहें और ठान लें तो चीजें सुधर सकती हैं। कार पूलिंग, पब्लिक ट्रांसपोर्ट, इलेक्टिक बस, मेट्रो का इस्तेमाल करने से प्रदूषण कम होगा। हमें अपनी लाइफ स्टाइल को बदलना होगा। फोर आर मतलब रीयूज, रीसाइकल, रीड्यूज और रिस्यूज को इस्तेमाल में लाएं। पुरानी चीजें, अखबार आदि को जलाने या कचरे में फेंकने के बजाय रीयूज करके घर के लिए नई चीजें बना सकते हैं। इससे सड़क पर कचरा फैलाने से बचेंगे साथ ही इससे प्रदूषण नहीं होगा। 

गरिमा [कक्षा 12, केंद्रीय विद्यालय, अलीगंज]

बच्चों की भावनाओं को समझना बेहद जरूरी

पर्यावरण विद् सुशील द्विवेदी ने बताया कि देश में बढ़ता प्रदूषण पर्यावरण के लिए तो नुकसानदायक है ही, आने वाली पीढ़ी के लिए भी बड़ा खतरा है। बहुत से बच्चे प्रदूषित वातावरण का शिकार हो रहे हैं। यदि बच्चे अपनी भावनाओं को व्यक्त करते हैं तो यह बहुत अच्छी बात है। ऐसे में यदि बच्चे पर्यावरण के प्रति जागरूक हो रहे हैं तो और भी गर्व करना चाहिए। बच्चों को पर्यावरण के प्रति जागरूक और संवेदनशील बनाने का प्रयास करें। सप्ताह में एक दिन बच्चों को किसी पार्क या बॉटनिकल गार्डन में घुमाने ले जाएं ताकि प्रकृति के प्रति लगाव पैदा हो। चूंकि, देश में पर्यावरण से जुड़ी समस्याओं की चुनौतियां भी तेजी से बढ़ रही हैं। लिहाजा, वर्तमान समय की चुनौती यही है कि हम भावी पीढ़ी को कैसी पृथ्वी देना चाहते है? बच्चे पर्यावरण अनुकूल हरित जीवन शैली को अपनाकर ‘एक व्यक्ति एक वृक्ष’ की संकल्पना को अपने जीवन में आत्मसात करते हुए अपने जीवन से प्लास्टिक के कचरे का प्रबंधन करने के लिए ‘फोर आर’ जैसे प्रभावी पर्यावरण संरक्षण से संबंधित गतिविधियों को जमीनी स्तर पर अपना रहे हैं। प्लास्टिक की बोतल या गत्ते की पेटियों, खाली टिन के डिब्बों का उपयोग करके ‘कबाड़ से जुगाड़’ पद्धति के जरिए झूमर, सौर-ऊर्जा से चलने वाले टेबल लैंप, टॉर्च, मोबाइल चार्जर, सोलर कुकर, पौधों के लिए गमले आदि का सृजन कर रहे हैं। बच्चे पर्यावरण प्रदूषण से होने वाले संभावित खतरों के लिए न केवल समुदाय को जागरूक कर रहे हैं बल्कि पोस्टर, बैनर, पेंटिंग जैसे माध्यमों से स्कूलों और पैरेंट्स के बीच बढ़ रही खाई को भी पाटने का प्रयास कर रहे हैं। उम्मीद है, निश्चित ही एक सुनहरे हरे-भरे भविष्य की कल्पना साकार होगी।

जागरण की इस पहल के बारे में अपनी राय और सुझाव निम्न मेल आइडी पर भेजें sadgurusharan@lko.jagran.com


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