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लिखना जरूरी है: 'मैं अगर डोरेमॉन होती तो कितना आसान होता लिखना'

संयुक्त राष्ट्र बाल अधिकार समझौते की 30वीं वर्षगांठ के अवसर पर समाज में बाल अधिकारों के प्रति जागरूकता बढ़ाने के इस प्रयास में दैनिक जागरण और यूनिसेफ की साझा पहल।

By Anurag GuptaEdited By: Published: Thu, 14 Nov 2019 10:31 AM (IST)Updated: Thu, 14 Nov 2019 10:31 AM (IST)
लिखना जरूरी है: 'मैं अगर डोरेमॉन होती तो कितना आसान होता लिखना'
लिखना जरूरी है: 'मैं अगर डोरेमॉन होती तो कितना आसान होता लिखना'

दोस्तों,

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पिछले कुछ दिनों से मम्मी-पापा और दीदी मुङो प्रेरित कर रहे थे कि मैं कुछ लिखूं। कारण, इससे पहले मैंने कभी अपने व्यक्तिगत विचार नहीं लिखे थे, इसलिए मुङो यह काम कठिन लग रहा था। अचानक ख्याल आया कि काश मैं डोरेमॉन होती तो लिखना कितना आसान होता। मैं मन की बात कहती और कोई गैजट उसे लिखने में मेरी सहायता कर देता। मम्मी ने कहा, इसी विषय पर क्यों नहीं लिखती, ‘काश, मैं डोरेमॉन होती’। आइडिया अच्छा था। तो मैंने इसी विषय पर लिखना शुरू किया।

अगर मैं डोरेमॉन होती मेरे पास एनहीव्हेयर डोर होता। मुङो स्कूल के लिए कभी देर नहीं होती। मैंने कभी सचमुच में बर्फ गिरते हुए नहीं देखी। एनीव्हेयर डोर की मदद से मैं कभी भी कश्मीर जाकर गिरती हुई बर्फ का आनंद ले सकती और चुपके से लौट भी आती। अक्सर ही जब लोग मुझसे पहली बार मिलते हैं-मैं अपने पापा जैसी दिखती हूं या कहते हैं कि मैं अपनी मम्मी जैसी दिखती हूं। अगर मेरे पास टाइम मशीन होती तो मैं भविष्य में जाकर देखती कि मैं बड़ी होकर कैसी दिखूंगी। मैंने अपने नाना-नानी और दादा जी को कभी नहीं देखा। बस उनकी फोटो देखी है। टाइम मशीन में बैठकर मैं अपने दादा जी से मिल आती।

बैक्बू कॉप्टर की मदद से मैं देख सकती कि मेरा शहर लखनऊ ऊपर से कैसे दिखता है। क्या उतना ही सुंदर जितना कि पहाड़ पर ऊंचे खड़े होकर नीचे के गांव दिखते हैं, या फिर छोटी रेलगाड़ी में बैठकर सीढ़ीदार खेत। डोरेमॉन का एक और गैजेट है जो मुङो बहुत पसंद है, ड्रेसअप कैमरा। काश, ये मेरे पास होता तो मैं अपने कपड़े खुद डिजाइन करती। जब मन करता अपने पापा की राजकुमारी बन जाती। कभी भालू बन जाती तो कभी पायलट और कभी गांव की ग्वालिन। कितना मजा आता। मुङो पेड़-पौधों और पशु-पक्षियों को देखना तथा उनके बारे में जानकारी प्राप्त करना बड़ा अच्छा लगता है। उनका जीवन बड़ा रहस्यमयी है। अगर मेरे पास बर्ड कैप होती तो मैं सबसे पहले शुतुरमुर्ग बनकर देखती कि वह इतना तेज कैसे दौड़ सकता है। पेंग्विन बनकर देखती उन्हें इतनी ठंड क्यों पसंद है। चील बनकर देखती कि उसे रंगों की पहचान है या उसे सब कुछ काला-सफेद ही दिखता है। बतख पानी की अंदर भी मछली को कैसे देख लेती है। ये सब आपस में क्या बातें करते हैं। हमारे बारे में क्या सोचते हैं। मैं मैराथन में अपना नाम लिखवाती। फिर पैरों में चीता लोशन लगाकर दौड़ती और पदक जीत लेती।हां, अगर मम्मी की कोई प्यारी चीज टूट जाती या खराब हो जाती तो उन्हें फॉरगेटिंग फ्लावर सुंघाकर फिर से खुश कर देती। लेकिन मैं जाती हूं कि ये सब गैजेट्स काल्पनिक हैं। मम्मी कहती हैं कि मेरे सपनों में से बहुत से सपने सच हो सकते हैं, लेकिन उन्हें सच करने के लिए जो गैजेट्स चाहिए वो डोरेमॉन के पास नहीं है। वो गैजेट्स हैं मेहनत और लगन।

आपकी विदुषी [केंद्रीय विद्यालय, कैंट, कक्षा-5] 

क्या, क्यों, कैसे में छिपी है बच्चों की प्रतिभा 

मंडलीय विज्ञान प्रगति अधिकारी डॉ. दिनेश कुमार ने बताया कि बच्चे प्रारंभिक शिक्षा के प्राथमिक स्तर से ही वातावरण को देखते हुए दिन-प्रतिदिन होने वाले परिवर्तन को समझते हुए माता-पिता से तर्क करते हैं। ऐसे में अभिभावकों को बच्चे की प्रत्येक जिज्ञासा को उसके लेवल के अनुरूप जवाब देना चाहिए। कभी भी बच्चों द्वारा पूछे गए प्रश्न को टालने के लिए गलत उत्तर देकर उनके मस्तिष्क में जिज्ञासा के प्रति गलत अवधारणा नहीं पैदा करनी चाहिए। इस स्थिति में उनके मस्तिष्क में एक गलत कॉन्सेप्ट लंबे समय तक रहेगा, जिसके बाद इस प्रवृत्ति को दूर कर पाना आसान नहीं होगा।

बच्चे आजकल टीवी के विभिन्न चैनलों और इंटरनेट के माध्यम से बहुत से तथ्यों से परिचित होने लगे हैं। उसके आधार पर वह अपने प्रश्नों के लिए निवारण के लिए विभिन्न रास्ते अपनाते हैं। ऐसे में अभिभावकों का ये नैतिक कर्तव्य बनता है कि बच्चों की जानकारी के लिए मिनिमम लेवल ऑफ लर्निग तक जाकर उनको सही मार्ग बताएं। बच्चे को यह बताएं कि डोरेमॉन के प्रत्येक गैजेट को यंत्र न मानकर उस समस्या से मुक्ति का केवल एक विकल्प ‘सही ज्ञान’ है ।


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