शहरनामा: जेईई नीट परीक्षा प्रदर्शन, हर जगह राजनीति ठीक नहीं
दैनिक जागरण का विशेष कॉलम शहरनामा में इस सप्ताह शहर की खास घटनाओं पर कटाक्ष।
लखनऊ [अंबिका वाजपेयी]। लंबे सन्नाटे के बाद शहर की सड़कें फिर गुलजार हैं। इस सन्नाटे को तोड़ रहा है जेईई और नीट कराए जाने का विरोध। जिंदाबाद, मुर्दाबाद के नारों के बीच सड़क पर पटकी जा रही लाठियों की आवाज बता रही है कि विपक्ष मैदान में है। विरोध और असहमति तो लोकतंत्र का हिस्सा है, लेकिन सिर्फ विरोध करने के लिए विरोध कितना उचित है। कोर्ट, विशेषज्ञ और परीक्षार्थी विरोध नहीं कर रहे, लेकिन जिन्हें राजनीति चमकानी है, उन्हें तो मौका चाहिए। विरोध करने वालों ने एक बार भी नहीं सोचा कि परीक्षार्थियों का कितना नुकसान होगा। एक वर्ष की कीमत तथा उम्र निकल जाने के कारण अगली बार परीक्षा से वंचित होने का दर्द, अगर ये महसूस करते तो सड़कों पर न होते। खास बात यह है कि परीक्षाओं की तैयारी में जुटे वर्ग का इस हंगामे से कोई सरोकार नहीं, क्योंकि उन्हें पता है कि हर जगह राजनीति ठीक नहीं।
सब चेहरा चमकाने की कोशिश है
राजनीति जो कराए कम है। कोई सीएम को काला झंडा दिखाकर पार्टी मुखिया का चहेता बन जाता है तो कोई चाहता है लाठी का निशान दिखाकर पार्टी का निशान मिल जाए। भैया की पार्टी के एक नेताजी भी पिछले दिनों पोस्टर चिपकाकर चर्चा में आ गए। पुलिस ने पोस्टर तो उतारे ही रिपोर्ट भी दर्ज हो गई मुख्यमंत्री को एक जाति विशेष का विरोधी दिखाकर जो सुर्खियां पाना चाहते थे वो जो कमोबेश मिल ही गईं, लेकिन यह सुर्खिया रंग कितना लाएंगी यह तो भैया ही जानें। उन्हीं की पार्टी के एक पुराने नेता से जब पूछा गया तो मुस्कराते हुए बोले-सब चेहरा चमकाने की कोशिश है। सड़क पर उतरकर जनता के लिए कभी दो लाठी तो खाएंगे नहीं, बस इसी तरह पोस्टर चिपकाकर, वीडियो वायरल करके या भड़काऊ पोस्ट डालकर दो-चार मुकदमे दर्ज करा लेंगे। इसके बाद चाहत यही होगी कि पार्टी हाईकमान उनके इस तथाकथित संघर्ष को तवज्जो दे।
पता नहीं ये चाहते क्या हैं
गोमतीनगर की एक मैडम को पता नहीं क्या सनक सवार हुई कि एक पिल्ले को कार में पैरों के तले रौंद दिया। वीडियो वायरल हुआ तो पशुप्रेमी संस्थाओं का पारा चढऩा लाजिमी था। बच्चे इंसान के हों या जानवर प्यारे लगते हैं,लेकिन इनको यह मासूमियत पैरों के तले रौंदने में आनंद आ रहा था। जाहिर सी बात है कि जब वो पिल्ले को पैरों से कुचल रही थीं, तब किसी जानने वाले या खुद उन्होंने ही वीडियो बनाया होगा। वीडियो बनाने के बाद उसे वायरल करने के पीछे क्या मंशा थी, ये तो वही बता सकती हैं। इसके बाद मैडम अपने सोशल मीडिया एकाउंट ब्लॉक करके गायब हैं। किसी बेजुबान को सताना, किसी के धर्म पर टिप्पणी कर देना या कुछ अनापेक्षित करके या लिखकर चर्चा में आने की यह रवायत सोशल मीडिया पर अनसोशल होने का धब्बा लगा रही है। सोशल मीडिया पर मौजूद अनसोशल लोग चाहते क्या हैं?
इसे कहते हैं कोढ़ में खाज
शहर की सूरत बिगाड?े वाले बिल्डरों की हालत इस समय कोढ़ में खाज वाली हो चुकी है। अभियंताओं से दुरभिसंधि करके इन्होंने लखनऊ का अनियोजित विस्तार करते हुए ऊंची इमारतें और बड़ी कॉलोनियां बसा तो दीं, लेकिन उनकी बिक्री पर कोरोना का ग्रहण लग गया। असली दिक्कत तब शुरू हुई जब एलडीए में बैठे हाकिम की निगाह इन सब पर टेढ़ी हो गई। एक तो वैसे ही ब्रिकी नहीं हो रही थी, दूसरे एलडीए के पीले पंजे ने जीना दूभर कर दिया है। जिनकी मुट्ठी गरम करके शहर की सूरत बिगाड़ी थी अब वो चेहरा भी नहीं पहचान रहे। हर दिन कोई न कोई अवैध कॉलोनी सील हो रही है, तो कहीं अवैध निर्माण ध्वस्त हो रहा है। एक बिल्डर ने दर्द बताते हुए कहा कि नोटबंदी से उबरे नहीं थे कि कोरोना आ गया। एक तो मकान बिक नहीं रहे, जो बने भी हैं वो एलडीए तोड़ रहा है।