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Corona Warriors: कोरोना संक्रमण में अलग रूप में दिखे लखनऊ के फूडमैन विशाल सिंह, सेवा परमो धर्म ही भाव

Corona Warriors Food Man देश में फूडमैन के नाम से विख्यात विशाल सिंह ने वैश्विक महामारी कोरोना वायरस के संक्रमण काल में नया मोर्चा संभाला और इसमें भी वह अपने सेवा भाव में छा गए।

By Dharmendra PandeyEdited By: Published: Sun, 05 Jul 2020 05:13 PM (IST)Updated: Mon, 06 Jul 2020 08:55 AM (IST)
Corona Warriors: कोरोना संक्रमण में अलग रूप में दिखे लखनऊ के फूडमैन विशाल सिंह, सेवा परमो धर्म ही भाव
Corona Warriors: कोरोना संक्रमण में अलग रूप में दिखे लखनऊ के फूडमैन विशाल सिंह, सेवा परमो धर्म ही भाव

लखनऊ, जेएनएन। राजधानी लखनऊ के तीन प्रमुख अस्पतालों में बीते 12 वर्ष से प्रतिदिन हजार के अधिक तीमारदारों को मुफ्त में भोजन की सुविधा देने वाले विशाल सिंह अब उससे भी बड़ी भूमिका में सराहे जा रहे हैं। देश में फूडमैन के नाम से विख्यात विशाल सिंह ने वैश्विक महामारी कोरोना वायरस के संक्रमण काल में नया मोर्चा संभाला और इसमें भी वह अपने सेवा भाव में छा गए हैं।

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कोरोना वायरस संक्रमण के दौर में पहले लॉकडाउन से भोजन के पैकेट तथा अन्य उपयोगी खाद्य पदार्थ लोगों तक पहुंचाने का अनुभव विशाल सिंह के लिए बिल्कुल नया था। इसको भी उन्होंने उसी सेवा भाव से अंगीकार किया। विशाल सिंह की प्रसादम सेवा की टीम ने डॉ. राममनोहर लोहिया मेडिकल इंस्टीट्यूट के प्रसादम सेवा केंद्र को कम्युनिटी किचन केंद्र में बदला और प्रवासी कामगार व श्रमिकों के साथ गरीब, असहाय, निर्बल तथा भोजन से वंचित लोगों तक इन पैकेट को पहुंचाने का बीड़ा उठाया। उन्होंने सात लाख लोगों तक भोजन के पैकेट पहुंचाने का साहसिक काम किया। इसके साथ ही लॉकडाउन के दौरान ड्यूटी में लगे पुलिस तथा नगर निगम के कर्मियों को भी उनकी टीम ने दूध व मट्ठा के पैकेट के साथ फल व चना-गुड़ भी उपलब्ध कराया।

फूडमैन विशाल सिंह के इस काम को शासन व प्रशासन के काफी सराहा गया। प्रबंध निदेशक उत्तर प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम आईएएस अफसर राजशेखर तो इतना प्रभावित हुए कि वह विशाल सिंह ने मिलने ही पहुंच गये। इस बाबत राजशेखर ने एक ट्वीट भी किया।

कोरोना महामारी के संक्रमण के इस दौरान में बेमिसाल काम करने वाले विशाल सिंह की प्रसादम सेवा ने सात लाख से अधिक जरूरतमंद लोगों तक भोजन, दूध, मट्ठा तथा आवश्यक वस्तुएं पहुंचा कर सेवा परमो धर्म के सिलसिला को काफी आगे बढ़ाया है। उनके इस काम को गोयनका इंडस्ट्री के हर्ष गोयनका, महिंद्रा एंड महिंद्रा के आनंद महिंद्रा, क्रिकेटर वीवीएस लक्ष्मण तथा केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने ट्वीट से सराहा।  

विजय श्री फाउंडेशन के संस्थापक फूडमैन विशाल सिंह ने लॉक डाउन के दौरान अपनी संस्था के कम्यूनिटी किचन के माध्य्म से जिला प्रसाशन, राहत एवं आपदा विभाग, पुलिस विभाग, उत्तर प्रदेश रोडवेज तथा नगर निगम की टीम के साथ समन्वय बनाकर निशक्त जनों की सेवा की। उनके इस काम के लिए उन्होंने काफी सराहा गया। विशाल सिंह लॉकडाउन के दौरान उन गलियों में भी अपनी टीम के साथ गरीबों को भोजन उपलब्ध कराने गए, जहां लोग कोरोना संक्रमण के कारण जाने से डर रहे थे।

प्रदेश में प्रवासी कामगारों के वापसी के समय इनकी टीमों ने हाई-वे पर बस तथा अन्य साधनों में सवार लोगों को भी भोजन के पैकेट तथा पानी की बोतलें उपलब्ध कराईं। बच्चों को दूध के साथ बिस्कुट के पैकेट्स तथा फल भी उपलब्ध कराया। प्रसादम सेवा ने संकट के इस बेहद मुश्किल समय में उन लोगों के साथ खड़े होकर उनका हौसला बढ़ाया जो लोग इस महामारी के कारण बेहद निराश हो गए थे। फूडमैन विशाल सिंह की टीम ने इस मुश्किल घड़ी लोगों का हौसला बढ़ाने का सार्थक प्रयास किया, जो कि हर जगह सराहा जा रहा है।

नर के रूप में नारायण की सेवा भाव लेकर विशाल सिंह ने अपने पिता के नाम पर विजयश्री फाउंडेशन का गठन करके प्रसादम सेवा को शुरू किया। विजयश्री फाउंडेशन सिर्फ अस्पतालों में तीमारदारों को भोजन ही उपलब्ध नहीं करा रहा है, बल्कि बीमार बच्चों की सेवा भी कर रहा है। बीते 12 वर्ष से लखनऊ के विभिन्न अस्पताल के बाल विभाग के बच्चों के मनोरंजन तथा उनके खेलकूद की व्यवस्था भी कर रहा है। इसके साथ ही किसी भी दैवीय आपदा के समय जिला प्रशासन को भी सहयोग प्रदान कर रहा है।

संघर्ष ने सिखाया शिष्टाचार

विशाल सिंह ने पिता के इलाज के दौरान संघर्ष के दिनों में वह समय भी देखा जब बासी और बचा भोजन खाना पड़ा। इतना ही नहीं कभी-कभी को खाली पेट भी रहना पड़ा। इसकी कारण वह प्रसादम सेवा में वह साफ सुथरे किचन, आरओ के पानी और भोजन में दाल, चावल, चपाती, मिष्ठान आदि की शुद्धता पर पूरा जोर देते हैं और इससे भी ज्यादा ध्यान देते हैं, प्रेम पूर्वक परोसने में। विशाल ने अब लोहिया संस्थान में सेवा शुरू करने के साथ वृद्धों और बच्चों के लिए आश्रय स्थल बनाने की दिशा में कदम भी बढ़ा दिए हैं। वह कहते हैं-मैं अकेला ही चला था जानिब-ए-मंजिल मगर, लोग साथ आते गए और कारवां बनता गया।

विशाल को इसकी प्रेरणा उस वक्त मिली जब उनके पिता गुडग़ांव के एक अस्पताल में भर्ती थे। इलाज में सबकुछ चला गया, लेकिन पिता जी नहीं बचे। उस समय बहुत छोटी उम्र थी। विशाल कहते हैं कि अब लगता है कि अगर थोड़ा पैसा होता तो पिता जी कुछ दिन और जी पाते। पिता के न रहने पर वह लखनऊ आ गए। यहां छोटे-छोटे काम से शुरुआत की। चाय बेची, साइकिल स्टैंड पर टोकन लगाया, फिर कैटरिंग का काम किया और मेहनत के बल पर जीविका के साधन जुटा लिए। 


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