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यूपी में सहायक शिक्षक की तीन भर्तियों से उठा विवाद का साया, जिला वरीयता के नियम पर हाई कोर्ट की मुहर

बेसिक शिक्षा परिषद के प्राथमिक स्कूलों में सहायक अध्यापक की तीन भर्तियों से विवाद का साया उठ गया है। हाई कोर्ट की मुख्य न्यायाधीश की बेंच ने जिला वरीयता के नियम पर मुहर लगा दी है।

By Umesh TiwariEdited By: Published: Wed, 15 Jan 2020 12:09 PM (IST)Updated: Wed, 15 Jan 2020 12:11 PM (IST)
यूपी में सहायक शिक्षक की तीन भर्तियों से उठा विवाद का साया, जिला वरीयता के नियम पर हाई कोर्ट की मुहर
यूपी में सहायक शिक्षक की तीन भर्तियों से उठा विवाद का साया, जिला वरीयता के नियम पर हाई कोर्ट की मुहर

प्रयागराज [धर्मेश अवस्थी]। बेसिक शिक्षा परिषद के प्राथमिक स्कूलों में सहायक अध्यापक की तीन भर्तियों से विवाद का साया उठ गया है। हाई कोर्ट की मुख्य न्यायाधीश की बेंच ने जिला वरीयता के नियम पर मुहर लगा दी है। इससे तीनों भर्तियों के 38908 शिक्षक सुरक्षित हो गए हैं, वहीं जिन जिलों में पद ही नहीं थे या जहां कम पद थे और वहां के अभ्यर्थियों ने अधिक पद वाले जिलों में आवेदन किया था उनकी नियुक्ति फिर लटक गई है। शून्य पद वाले जिलों के अभ्यर्थी अब विशेष अपील में जा सकते हैं, उनका रास्ता साफ हो गया है।

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बेसिक शिक्षा परिषद के प्राथमिक स्कूलों में 12460 शिक्षकों की भर्ती दिसंबर 2016 में शुरू हुई। इसमें प्रदेश के 51 जिलों में भर्ती के पद घोषित हुए, जबकि 24 जिलों में पद शून्य थे। शून्य पद वाले जिलों के हजारों अभ्यर्थियों को सुविधा दी गई कि वे जिस जिले में चाहे आवेदन कर लें। मई 2018 में जब नियुक्ति पत्र बांटने की बारी आई तो उन जिलों के अभ्यर्थियों ने विरोध किया जिनकी नियुक्ति शून्य पद वाले जिलों के अभ्यर्थियों के कारण छिन रही थी। इसे हाई कोर्ट में चुनौती दी गई तो लखनऊ खंडपीठ की सिंगल बेंच ने दूसरे जिले से प्रशिक्षण प्राप्त अभ्यर्थियों को नियुक्ति पत्र देने पर रोक लगा दी। इस भर्ती में करीब सात हजार नियुक्ति पा चुके हैं, जबकि पांच हजार से अधिक पद अभी इसी विवाद के कारण खाली पड़े हैं।

इस भर्ती के प्रभावित अभ्यर्थियों ने अध्यापक सेवा नियमावली 1981 के नियम 14(1) (ए) के तहत प्रशिक्षण पाने वाले जिले को वरीयता देने के प्रावधान को चुनौती दी। इस याचिका में सहायक अध्यापक भर्ती 16448 के भी अभ्यर्थी शामिल हो गए, क्योंकि इसमें भी तीन जिलों हापुड़, बागपत व जालौन में पद शून्य थे और वहां के अभ्यर्थियों को भी कहीं से भी आवेदन करने की छूट दी गई थी। इसके अलावा 15000 सहायक अध्यापक भर्ती के वे अभ्यर्थी भी शामिल हुए जिनके जिलों में पद काफी कम थे और उन्होंने अधिक पद वाले जिलों में आवेदन किया था।

हाई कोर्ट की लखनऊ खंडपीठ में मुख्य न्यायाधीश गोविंद माथुर व न्यायमूर्ति सीडी सिंह की बेंच ने लंबी सुनवाई की और 26 जुलाई, 2019 को आदेश सुरक्षित कर लिया था। उसका फैसला अब सुनाया है। इसमें नियमावली के जिला वरीयता के प्रावधान को मान्य किया गया है। इस आदेश से 38908 शिक्षकों की सेवा सुरक्षित हो गई है, वहीं शून्य जिला वाले अभ्यर्थी अधर में हैं।

अब विशेष अपील से निकलेगा रास्ता

12460 शिक्षक भर्ती सहित अन्य भर्तियों में शून्य पद वाले जिलों के अभ्यर्थी अब विशेष अपील में कोर्ट जा सकते हैं कि आखिर अब वे कहां जाएं, क्योंकि मेरिट में होने के बाद भी उन्हें नियुक्ति पत्र नहीं मिल रहा है।

16448 के तीन जिलों का मामला लटका

16448 भर्ती के वे अभ्यर्थी जो शून्य पद वाले जिले के थे और उन्होंने दूसरे जिलों में नियुक्ति पा ली है, अब उनके संबंध में क्या होगा यह भी स्पष्ट नहीं है। विशेष अपील में स्थिति साफ हो सकती है।

आखिर क्या है जिला वरीयता

अध्यापक सेवा नियमावली 1981 के नियम 14(1) (ए) में प्रावधान है कि अभ्यर्थी जिस जिले में प्रशिक्षण पाया है, उस जिले में वह शिक्षक पद पर नियुक्ति पाने का हकदार है।

68500 शिक्षक भर्ती से नियम खत्म

सरकार ने न्यायालय में लंबित तमाम मुकदमों और अभ्यर्थियों की मांग पर 68500 सहायक अध्यापक भर्ती से जिला वरीयता का प्रावधान खत्म कर दिया है। 


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