पीड़ा, उत्पीड़न और प्रेम ये तीन भाव अहसास से दृश्य बन गए, दुखों के पहाड़ भरभराकर समतल हो गए
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ की करें तो यहां अब प्रतिदिन डिस्चार्ज होकर घर पहुंचने वाले मरीजों का आंकड़ा लगातार बढ़ रहा है। मथुरा में एक लावारिस महिला के शव के अंतिम संस्कार के दौरान मुखाग्नि देतीं महिला कांस्टेबल शालिनी वर्मा। फोटो स्वयं द्वारा उपलब्ध
लखनऊ, राजू मिश्र। पीड़ा, उत्पीड़न और प्रेम। उत्तर प्रदेश में बीते सप्ताह ये तीन भाव अहसास से दृश्य बन गए। पीड़ा इतनी घनीभूत रही कि संसाधन कम पड़ गए। दुखों के पहाड़ भरभराकर समतल हो गए। इस शाश्वत सत्य के बावजूद कि सभी को अपना दुख सबसे बड़ा लगता है, कोई नहीं कह सकता कि उसका दुख सबसे बड़ा है। दूसरों के दुख पर दुख प्रकट करना भी नाटक लगने लगा।
संसाधनों की कमी और कुछ सिस्टम के आदत में बसी कुसंस्कृति का फायदा उठाकर समाज की दुर्जन शक्ति लोगों के भय का आपराधिक तौर तरीकों के साथ दोहन करती नजर आई। हालांकि अब स्थितियां एक बार फिर नियंत्रण की तरफ हैं। बात केवल उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ की करें तो यहां अब प्रतिदिन डिस्चार्ज होकर घर पहुंचने वाले मरीजों का आंकड़ा लगातार बढ़ रहा है। इससे धीरे-धीरे ही सही, लेकिन अभी बेड की जो किल्लत है, वह कम होगी। बड़ी संख्या में लोग ठीक हो रहे हैं।
लेकिन, पिछले दिनों आक्सीजन और रेमडेसिविर की कृत्रिम किल्लत ने उन राक्षसों के चेहरे सामने ला दिए जो पीड़ित मानवता की सेवा के सच्चे अवसर को खोकर कालाबाजारी और मुनाफाखोरी कर रहे थे। जो दवाएं और सुविधाएं सहजता से उपलब्ध हो सकती थीं, उनका भी कृत्रिम अभाव उत्पन्न कर लोगों की जेब काटी गई। इस अपराध में कई स्वास्थ्यकर्मी, चिकित्सक, दवा विक्रेता और अस्पताल तक शामिल हो गए। मेरठ में तो इंजेक्शन के नाम पर पानी का डोज लगा दिया गया। आगरा में ऑनलाइन विज्ञापन देकर रेमडेसिविर बेचने वाला पकड़ा गया। कई लोगों ने तो बाकायदा गिरोह बनाकर दवा और इलाज के नाम पर लूटना शुरू कर दिया। कानपुर, लखनऊ, गौतमबुद्धनगर जिलों में भी पुलिस और एसटीएफ ने ऐसे 50 से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया।
लखनऊ में तो एक अस्पताल ने दो घंटे में आक्सीजन खत्म होने की बात लिखकर नोटिस चस्पा करवा दी कि जिनके मरीज आक्सीजन पर हैं, वह अपना मरीज डिस्चार्ज करा लें। मुख्यमंत्री ने जब अपने अधिकारी को भेजकर पड़ताल कराई तो अस्पताल वाला माफी मांगकर बच निकला। पीड़ित मानवता का जब इस तरह उत्पीड़न हो रहा था तो उसे मरहम लगाने वाले भी कम नहीं दिखे। लखनऊ की ही बात करें तो यहां हर सक्षम व्यक्ति अपने साथ दूसरों का दर्द बांटता दिखा। जब शवों को ले जाने के लिए एंबुलेंस नहीं मिल रही थी तो एक युवती सारे खतरे उठाकर अपनी निजी कार में जरूरतमंदों से पूछ पूछकर उनके स्वजन के शव श्मशान तक पहुंचा रही थी। मथुरा में एक महिला कांस्टेबल खुद ऐसे शवों का अंतिम संस्कार कर रही थी। पंडे पुरोहित नहीं मिले तो इस महिला कांस्टेबल ने स्वयं यह धर्म भी निभाया। हमीरपुर में एक रुपये में आक्सीजन देने वाले सज्जन लोग भी मिल गए। इसी तरह तमाम लोग जो कहीं चर्चा में नहीं अपने अपने स्तर पर मानवता का धर्म निभाने में लगे हैं।
फ्रंटलाइन से बर्ताव : चिकित्सक, पुलिसकर्मी और प्रशासन के लोग इस बार भी सबसे अधिक खतरे में हैं। अपने स्तर पर वह ड्यूटी निभा रहे हैं, लेकिन इस बार उन्हें तीमारदारों का कोपभाजन भी बनना पड़ रहा। अपने स्वजन की मौत पर गम और गुस्सा स्वाभाविक है, लेकिन इसका शिकार कई बार चिकित्सा कर्मी बन गए। कई जगह तो इस कारण डाक्टरों को काम से विरत होना पड़ा, लेकिन मरीजों के हित में वह फिर आगे खड़े होकर लड़ाई लड़ रहे। यही हाल पुलिस का है। मैनपुरी में तो पुलिस ने अनूठा तरीका निकाला। वे अपने घर नहीं जा पा रहे तो उन्होंने अपनी इस पीड़ा को लोगों को नसीहत देने का अस्त्र बना लिया। वे अपने शरीर पर एक चिट लगाकर ड्यूटी कर रहे कि उनका परिवार उनसे दूर है लेकिन जो लोग सामने हैं, वह भी उनका परिवार हैं। इस तरह के तमाम मनोवैज्ञानिक उपाय तलाशे जा रहे हैं।
बचाव का जुगाड़ फार्मूला : संकट के समय मस्तिष्क भी नवोन्मेषी हो जाता है। दरअसल, जब से शोधों के जरिये पता चला कि कोरोना संक्रमण में बचाव के लिए गर्म पानी से भाप लेना बहुत कारगर है, तो बड़ी संख्या में लोगों ने इस अपनाना शुरू कर दिया है। चूंकि इस दौर में पुलिसर्किमयों को सड़क पर हर परिस्थिति के बीच अपनी जिम्मेदारी निभानी पड़ रही है, तमाम लोगों के संपर्क में आना पड़ रहा है, इसलिए उनके लिए खतरा भी बढ़ जा रहा है। गाजियाबाद के सिहानी गेट थाना पुलिस ने अपने परिसर में कुकर में पानी गर्म करके पुलिसर्किमयों के लिए भाप लेना अनिवार्य किया। चिकित्साजगत भी नए शोधों में जुटा है। लेकिन, आपदा में उनकी तस्वीर अधिक उजली नजर आई जिन्होंने अपनी परेशानियों को भूल दूसरों का दर्द समझा। संकट के संत्रास में अपनी भूमिका समझी और निकल पड़े उन कोरोना संक्रमित परिवारों को भोजन पहुंचाने, जिनके आसपास भी फटकने को कोई तैयार नहीं था। शामली में प्रभुजी की रसोई में सचमुच अन्नपूर्णा का वास है, जिनके लिए नि:शुल्क लोगों को भोजन पहुंचाना ही भगवान की पूजा करना है। ऐसे लोग ही समाज का संबल हैं।
[वरिष्ठ समाचार संपादक, उत्तर प्रदेश]