कांग्रेस को फूलपुर-गोरखपुर में उपचुनाव में वजूद बचाने की फिक्र
मिशन 2019 की तैयारी में जुटी कांग्रेस के लिए गोरखपुर व फूलपुर संसदीय सीटों का उप चुनाव बड़ी परीक्षा है।
लखनऊ (जेएनएन)। मिशन 2019 की तैयारी में जुटी कांग्रेस के लिए गोरखपुर व फूलपुर संसदीय सीटों का उप चुनाव बड़ी परीक्षा है। चुनौती इसलिए भी जटिल बनी है क्योंकि पार्टी ने बिन गठबंधन अपने दम पर चुनावी जंग में उतरने का फैसला लिया है। पूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू और विजय लक्ष्मी पंडित जैसे दिग्गजों का निर्वाचन क्षेत्र रही फूलपुर सीट कांग्रेस की प्रतिष्ठा से जुड़ी है लेकिन बदले हालात में समीकरण अनुकूल नहीं है। गत लोकसभा चुनाव में फूलपुर क्षेत्र में जीतने के लिए पूर्व क्रिकेटर मोहम्मद कैफ को मैदान में उतारने का प्रयोग कारगर नहीं रहा। मोदी लहर के चलते कैफ मात्र 58,127 वोट हासिल कर सके। कुर्मी बाहुल्य इस सीट पर कांगे्रस ने उपचुनाव में वरिष्ठ नेता जेएन मिश्र के पुत्र मनीष मिश्र को टिकट थमाकर ब्राह्मणों को लुभाने की कोशिश की है।
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राजनीतिक हालात तेजी से बदले
प्रदेश प्रवक्ता वीरेंद्र मदान का दावा है कि पिछले लोकसभा चुनाव के बाद राजनीतिक हालात तेजी से बदले है। भाजपा से जनता को तेजी से मोह भंग होता जा रहा है और कांग्रेस पर निगाह लगी है। उपचुनाव में इस का लाभ मिलेगा। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सीट होने के कारण गोरखपुर पर भी सबकी नजर है। गत लोकसभा चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार अष्टभुजा प्रसाद को मात्र 45,719 वोट ही प्राप्त हो सके थे। इस बार कांग्रेस ने डॉ. सुरहीता करीम को मैदान में उतारा है। पेशे से चिकित्सक सुरहीता वर्ष 2012 में नगर निगम महापौर पद का चुनाव लड़ चुकी है।
बसपा के वोटबैंक पर दारोमदार
बसपा की उपचुनाव में उतरने की उम्मीद नहीं के बराबर है। ऐसे में कांग्रेस को उम्मीद है कि भाजपा के खिलाफ बसपा समर्थक वोटबैंक का लाभ मिलेगा। सांसद पीएल पुनिया का कहना है कि देश में तेजी से बदले सियासी परिदृष्य में कांग्रेस के अच्छे दिन आने की उम्मीद बढ़ी है। क्षेत्रीय दलों के जनता का मोह भंग होना कांग्रेस के लिए शुभ संकेत है क्योंकि गैरभाजपाई वोटों में बिखराव होना ही भाजपा को लाभ पहुंचा रहा है।
संगठन की परख
गत विधानसभा चुनाव में सर्वाधिक खराब प्रदर्शन के बाद कांग्रेस को नगरीय निकाय चुनाव में मामूली राहत मिली। प्रदेश अध्यक्ष राजबब्बर ने नेतृत्व में होने वाले उपचुनाव में उनकी संगठनात्मक क्षमता परखी जाएगी। इसी आधार पर वर्ष 2019 के लिए संगठन की भूमिका तैयार होगी। वैसे भी पार्टी में एक खेमा प्रदेश में पूर्णकालिक अध्यक्ष बनाने की जोड़तोड़ में जुटा है। जाहिर है कि प्रदर्शन खराब रहा तो संगठन में बदलाव को दबाव बनाने वाले खेमे को बल मिलेगा।