दिग्गज कांग्रेसी नेता डॉ. संजय सिंह दूसरी बार भाजपा में हुए शामिल, जानिए उनका राजनीतिक सफर Sultanpur News
वरिष्ठ कांग्रेसी नेता डॉ. संजय सिंह दूसरी बार भाजपा में शामिल हुए।
सुलतानपुर, जेएनएन। राष्ट्रीय राजनीति में बड़ा कद रखने वाले राज्यसभा सदस्य व वरिष्ठ कांग्रेसी नेता डॉ. संजय सिंह ने मंगलवार को पार्टी व राज्यसभा से इस्तीफा दे दिया। वह बुधवार को भाजपा में शामिल हो गए। अचानक उठाए गए उनके इस कदम से सियासत के गलियारे में हलचल पैदा हो गई है। वर्ष 1980 के दशक से ही नेहरू-गांधी परिवार के बेहद करीबी रहे डॉक्टर सिंह के भाजपा में जाने से कांग्रेस को भी करारा झटका लगा है। अप्रैल 2014 में कांग्रेस ने उन्हें असम से राज्यसभा सदस्य बनाया था। 2019 में वह कांग्रेस की टिकट पर सुलतानपुर से लोस चुनाव लड़े, लेकिन तीसरे नंबर पर रहे। पार्टी द्वारा विभिन्न मोर्चों पर नजरअंदाज किए जाने को उनके इस्तीफे की वजह माना जा रहा है।
अमेठी में कांग्रेस परिवार को स्थापित करने वाले डॉ. संजय सिंह व उनके पिता राजा रणंजय सिंह ही थे। पंडित जवाहर लाल नेहरू अमेठी विरासत के राजा रणंजय सिंह के पारिवारिक वकील थे। इसी नाते राजा रणंजय सिंह इंदिरा व संजय गांधी को अमेठी लेकर आए थे और यहां से चुनाव लडऩे का आग्रह किया था। इसी दौरान डॉ. संजय ङ्क्षसह की गहरी दोस्ती इंदिरा गांधी के छोटे पुत्र संजय गांधी से हो गई। बतौर गांधी परिवार सदस्य संजय गांधी पहली बार अमेठी से 1980 में चुनाव लड़े और लोस सांसद चुने गए। कुछ ही माह बाद विमान दुर्घटना में संजय गांधी का निधन होने के बाद राजीव गांधी यहां से सांसद हुए और देश के प्रधानमंत्री बने।
इसलिए छोड़ी कांग्रेस
डॉ. सिंह ने कहा कि कांग्रेस नेतृत्व जीरो है। मैं सबका साथ सबका विकास नीति के कारण पीएम मोदी का समर्थन करता हूं। कांग्रेस अभी भी अतीत में है। उसके भविष्य का पता नहीं है। पूरा देश पीएम मोदी के साथ है। इसलिए मैं भी भाजपा ज्वाइन करने जा रहा हूं। पिछले 15 साल में कांग्रेस में जो कुछ हुआ, वह पहले कभी नहीं हुआ। बहुत कुछ सोचने के यह निर्णय लिया है।
आंतरिक वजहें
सूत्रों के अनुसार पिछले कुछ समय से कांग्रेस की रणनीति में सुधार नहीं आने, पार्टी के लचर प्रदर्शन व भावी नेतृत्व को लेकर वह काफी असहज महसूस कर रहे थे। 2009 में उन्होंने 25 साल बाद कांग्रेस को सुलतानपुर लोस से करीब एक लाख मतों से जीत दिलाई। बावजूद उन्हें पूरे पांच साल तक मंत्री नहीं बनाया गया। 2014 चुनाव के बाद भी पीसीसी में नहीं लिया गया। भाजपा में जाने से रोकने के लिए पार्टी ने उन्हें असम से राज्यसभा भेज दिया था। राहुल के इस्तीफे के बाद से कांग्रेस में उनकी कोई महत्वपूर्ण भूमिका तय होती नहीं दिख रही थी।
पूर्व पत्नी भी भाजपा में
डॉ. संजय सिंह की पहली पत्नी गरिमा सिंह भी भाजपा में हैं और वह मौजूदा समय में अमेठी से बीजेपी की विधायक हैं। अमीता सिंह उनकी दूसरी पत्नी हैं। वह भी अमेठी से कई बार विधायक व प्रदेश में मंत्री रह चुकी हैं। वह फिलहाल ऑल इंडिया प्रोफेशनल कांग्रेस (यूपी) की अध्यक्ष थीं। उन्होंने भी अब कांग्रेस छोड़ दिया है।
डॉ. सिंह का सियासी सफर
संजय गांधी के घनिष्ठ मित्र डॉ. संजय सिंह पहली बार उत्तर प्रदेश की अमेठी विधानसभा सीट से 1980 में विधायक चुने गए और मंत्री बने। 1982 से 85 तक उन्होंने प्रदेश में पर्यावरण एवं वन मंत्रालय के साथ दुग्ध डेयरी व खेलकूद एवं युवा मंत्रालय की कमान संभाली। 1985 से 87 तक उत्तर प्रदेश के परिवहन मंत्री रहे। 1988 में जनता दल में शामिल हो गए। 190 में पहली बार राज्यसभा सदस्य बने। 10-91 के दौरान केंद्रीय संचार मंत्री रहे। 18 में वह भाजपा की टिकट पर अमेठी से लोकसभा सांसद चुने गए और केंद्र में मंत्री भी बने। 19 में दोबारा लोस चुनाव हुए और इस बार उनका मुकाबला सोनिया गांधी से हुआ। इस कद्दावर नेता ने अमेठी व गौरीगंज विधानसभा से गांधी को कड़ी टक्कर दी, लेकिन सलोन, तिलोई व जगदीशपुर विस से सोनिया ने भारी मतों के अंतर से चुनाव जीत लिया। 199 से 2003 तक विभिन्न कमेटियों के सदस्य रहे।
2003 में पुन: कांग्रेस में शामिल हो गए। 2009 में कांग्रेस को सुलतानपुर लोस सीट पर 25 साल बाद जीत दिलाई।
2014 में सुलतानपुर से वरुण गांधी को टिकट मिलने पर संजय ङ्क्षसह ने उन्हें अपने प्रिय मित्र का दोस्त बताते हुए उनके खिलाफ चुनाव लडऩे से इंकार कर दिया। 2019 में सुलतानपुर से वरुण के न लडऩे की सूचना पर कांग्रेस से टिकट लिए, लेकिन भाजपा ने मेनका गांधी को उनके खिलाफ उतार दिया। डॉ. सिंह को तीसरे पायदान पर रहे।
दल बदलने पर यह होगा असर
डॉ. सिंह की छवि कद्दावर, ईमानदार व कर्मठ नेता की रही है। राज परिवार से ताल्लुक होने के नाते वह अमेठी -सुलतानपुर समेत आसपास के जनपदों में उनका विशेष प्रभाव है। विभिन्न खेल समितियों व केंद्रीय समितियों में रहने की वजह से भी प्रदेश व देश की राजनीति को भी वह प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं। उनके इस कदम से अमेठी-सुलतानपुर समेत प्रदेश में कांग्रेस के कार्यकर्ताओं का मनोबल गिरेगा। वह भी पार्टी से मोह त्याग सकते हैं।
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