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यूपी के उपभोक्ताओं को फिर लगेगा महंगी बिजली का झटका, कंपनियों के बढ़ते खर्चे से हो रहा घाटा

बिजली कंपनियों के प्रस्ताव में उपभोक्ता के छोर पर औसत बिजली लागत 7.9 रुपये प्रति यूनिट आंकी गई है। इस तरह से कुल खर्चों के लिए 4500 हजार करोड़ रुपये की और आवश्यकता बताई गई है।

By Umesh TiwariEdited By: Published: Tue, 30 Jun 2020 12:12 AM (IST)Updated: Tue, 30 Jun 2020 08:19 AM (IST)
यूपी के उपभोक्ताओं को फिर लगेगा महंगी बिजली का झटका, कंपनियों के बढ़ते खर्चे से हो रहा घाटा
यूपी के उपभोक्ताओं को फिर लगेगा महंगी बिजली का झटका, कंपनियों के बढ़ते खर्चे से हो रहा घाटा

लखनऊ, जेएनएन। उत्तर प्रदेश में शहरवासियों को तीन-चार महीने बाद महंगी बिजली का झटका लग सकता है। बिजली कंपनियों ने बढ़ते खर्चे के मद्देनजर 4500 करोड़ रुपये का घाटा बताते हुए उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत नियामक आयोग में वित्तीय वर्ष 2020-21 के लिए 71 हजार करोड़ रुपये की वार्षिक राजस्व आवश्यकता (एआरआर) का प्रस्ताव सोमवार को ई-फाइलिंग के जरिए दाखिल किया है। हालांकि, एआरआर के साथ बिजली कंपनियों ने बिजली दर में बढ़ोतरी का प्रस्ताव आयोग को नहीं सौंपा है।

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नियमानुसार कंपनियों को चालू वित्तीय वर्ष का एआरआर पिछले वर्ष 30 नवंबर तक ही आयोग में दाखिल कर देना चाहिए था लेकिन, अब तक न देने पर पिछले दिनों आयोग ने कंपनियों के प्रबंध निदेशकों को नोटिस जारी कर तीन जुलाई को तलब किया था। आयोग के कड़े रुख को देखते हुए कंपनियों ने सोमवार को चालू वित्तीय वर्ष के लिए 71 हजार करोड़ रुपये का जो एआरआर दाखिल किया है, उसमें 10,250 करोड़ रुपये सब्सिडी है। 55,200 करोड़ रुपये की लगभग 1.14 लाख एमयू (मिलियन यूनिट) बिजली खरीद आंकी गई है। एआरआर में बिजली कंपनियों की ओर से 17.9 प्रतिशत विद्युत वितरण हानियां दर्शाई गई है।

प्रस्ताव में उपभोक्ता के छोर पर औसत बिजली लागत 7.9 रुपये प्रति यूनिट आंकी गई है। इस तरह से कुल खर्चों के लिए 4500 हजार करोड़ रुपये की और आवश्यकता बताई गई है। जानकारों का कहना है कि यदि आयोग ने कंपनियों के प्रस्ताव को यथावत स्वीकार कर लिया तो बिजली की दरों में आठ फीसद तक का इजाफा हो सकता है। सूत्रों के मुताबिक पंचायत चुनाव को देखते हुए गांव की बिजली और कोरोना के मद्देनजर कारोबार पर पड़े असर से उद्योगों की बिजली की दर भले ही न बढ़े लेकिन, शहरी विद्युत उपभोक्ताओं की बिजली महंगी होना तय है। माना जा रहा है कि इधर बिजली की दर बढ़ाने के बाद वर्ष 2022 में विधानसभा चुनाव को देखते हुए अगले वर्ष बिजली की दर में इजाफा न किया जाएगा।

दूसरी तरफ उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने एआरआर पर तमाम सवाल उठाते हुए कहा है पहले सभी बिजली कंपनियों की 11.96 प्रतिशत की दर से वितरण हानियां प्रस्तावित थी, जबकि अब बिजली कंपनियों की ओर से लाइन हानियों में छह प्रतिशत का इजाफा यह सिद्ध करता है कि सूबे के ऊर्जा क्षेत्र में सुधार के दावे हवा-हवाई हैं। उन्होंने कहा कि 4500 करोड़ रुपये का राजस्व गैप इस बात की ओर भी इशारा कर रहा है कि कंपनियां बड़े पैमाने पर बिजली दरों में बढ़ोतरी कराने पर जुटी हैं।

वर्मा ने कहा कि प्रदेश के बिजली उपभोक्ताओं का उदय व ट्रू अप में वर्ष 2017-18 तक तकरीबन 13337 करोड़ रुपये बिजली कंपनियों पर निकल रहा है। इसका लाभ यदि उपभोक्ताओं को दिया जाए तो बिजली दरों में लगभग 25 फीसद की कमी होगी। यदि इसमें से बिजली कंपनियों के 4500 करोड़ रुपये के राजस्व घाटे को घटा दिया जाए तो बिजली दरों में 16 प्रतिशत की कमी होनी चाहिए।


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