Chaitra Navratri: लखनऊ में घरों में देवी का आह्वान, मां के तीसरे स्वरूप चंद्रघंटा की हुई आराधना
संदोहन देवी मंदिर काली बाड़ी मंदिर व बड़ी व छोटी काली जी मंदिरों में पुजारी ने ज्योति जलाई तो ठाकुरगंज के मां पूर्वी देवी मंदिर और शास्त्रीनगर के श्री दुर्गा मंदिर में श्रृंगार किया गया। गोमतीनगर में रंजन मिश्रा ने पूजा अर्चना शंख बजाकर मां का आह्वान किया।
लखनऊ, जेएनएन। मां भगवती के नौ स्वरूपों की आराधना के महापर्व नवरात्र के तीसरे गुरुवार को घरों में सजे दरबार में मां के चंद्रघंटा स्वरूप की पूजा अर्चना हुई। घरो में शंख और घंटी के साथ श्रद्धालुओं ने सप्तशती का पाठ किया। मां के जयकारे से गुंजायमान वातावरण के बीच महिलाओं ने मां के चरणों में भजनों का गुलदस्ता पेशकर सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया।
संदोहन देवी मंदिर, काली बाड़ी मंदिर व बड़ी व छोटी काली जी मंदिरों में पुजारी ने ज्योति जलाई तो ठाकुरगंज के मां पूर्वी देवी मंदिर और शास्त्रीनगर के श्री दुर्गा मंदिर में श्रृंगार किया गया। गोमतीनगर में रंजन मिश्रा ने पूजा अर्चना की तो पति ने शंख बजाकर मां का आह्वान किया। गाेसाईगंज के अरिवंद गुप्ता ने परिवार के साथ मां की आराधना की। आचार्य पं. जितेंद्र शास्त्री ने बताया कि नवरात्र में आप दुर्गा मंदिर नहीं जा पा रहे हैं तो आप घर में ही मां दुर्गा का आह्वान करें। कलश के सामने सप्तशती के पाठ के साथ ही मां का आह्वान करें। अचाचार्य एसएस नागपाल ने बताया कि मां का चंद्रघंटा स्वरूप मानव के मन के समान है। जीवन के उतार चढ़ाव के बावजूद कर्म करने की प्रेरणा देता है। शुक्रवार को मां के चौथे स्वरूप कूष्मांडा की पूजा होगी। प्राण शक्ति का प्रतीक मां का यह श्रवरूप श्रद्धालुओं के अंदर नई ऊर्जा पैदा करता है। आचार्य आनंद दुबे ने सप्तशती पाठ के महत्व के बारे में विस्तार से बताया।
दुर्गा सप्तशती के पाठ महत्व
- प्रथम अध्याय- हर प्रकार की चिंता मिटाने के लिए।
- द्वितीय अध्याय- मुकदमा झगड़ा आदि में विजय पाने के लिए।
- तृतीय अध्याय- शत्रु से छुटकारा पाने के लिए।
- चतुर्थ अध्याय- भक्ति शक्ति के लिए।
- पंचम अध्याय- दर्शन के लिए।
- षष्ठम अध्याय- डर, शक, बाधा हटाने के लिए।
- सप्तम अध्याय- हर कामना पूर्ण करने के लिए।
- अष्टम अध्याय- मिलाप व वशीकरण के लिए।
- नवम अध्याय- गुमशुदा की तलाश के लिए।
- दशम अध्याय- हर प्रकार की कामना एवं पुत्र आदि के लिए।
- एकादश अध्याय- व्यापार व सुख-संपत्ति की प्राप्ति के लिए।
- द्वादश अध्याय- मान-सम्मान तथा लाभ प्राप्ति के लिए।
- त्रयोदश अध्याय- भक्ति प्राप्ति के लिए।