बलरामपुर अस्पताल में बायोप्सी जांच ठप, रिपोर्ट महीनों से पेंडिंग; दर-दर भटकने पर मजबूर कैंसर मरीज
केजीएमयू पीजीआइ व लोहिया संस्थान के बाद अस्पतालों में बलरामपुर राजधानी का पहला चिकित्सालय जहां पर बायोप्सी की जांच की जाती थी। 50 से 60 मरीजों की जांच रिपोर्ट एक डेढ़ माह का वक्त गुजर जाने के बाद भी नहीं आ सकी। अधर में लटका डीएनबी छात्रों का भविष्य।
लखनऊ, जेएनएन। राजधानी के बलरामपुर अस्पताल में पिछले दो दिनों से कैंसर का पता लगाने के लिए की जाने वाली बायोप्सी जांच पूरी तरह से ठप कर दी गई है। इससे मरीजों को दर-दर की ठोकरें खाना पड़ रहा है। वहीं, करीब 50 से 60 मरीजों की जांच रिपोर्ट एक डेढ़ माह का वक्त गुजर जाने के बाद भी नहीं आ सकी है, जिससे उन्हें आगे का इलाज कराने में मुश्किल हो रही है। अस्पताल प्रबंधन इसके लिए फंड व स्टाफ कम होने की बात कह रहा है।
कैंसर रोगों की जांच के लिए लाखों रुपये खर्च कर बायोप्सी केंद्र की स्थापना की गई थी। ताकि कैंसर मरीजों को दर-दर भटकना नहीं पड़े। केजीएमयू, पीजीआइ व लोहिया संस्थान के बाद अस्पतालों में बलरामपुर राजधानी का पहला चिकित्सालय है जहां पर बायोप्सी की जांच की जाती थी। मगर अब इसे रोक दिया गया है। बायोप्सी की जांच में लगे छात्र छात्राओं को माइक्रोबायोलॉजी लैब में आरटी-पीसीआर जांच में लगाया गया है। जबकि यह उनके कोर्स से हटकर है। हिस्टोलॉजी भी बंद कर दी गई है। इस वजह से यहां पर डिप्लोमेट ऑफ नेशनल बोर्ड (डीएनबी) की पढ़ाई कर रहे छात्र-छात्राओं का भविष्य अंधकार में हो गया है।
हालत यह है कि महीनों पहले हुई कई दर्जन बायोप्सी की जांच रिपोर्ट अभी तक नहीं आई है। वहीं डीएनबी छात्र-छात्राओं का भविष्य भी अधर में पड़ गया है। यहां पर सभी सेमेस्टर में कुल मिलाकर लगभग 10 छात्र-छात्राएं डीएनबी कर रहे हैं। करीब एक माह से दो छात्राओं ने अस्पताल आना छोड़ दिया है। जबकि अन्य को टेक्नीशियन की जगह माइक्रोबायोलॉजी लैब में लगाया गया है। वहीं, बाकी डीएनबी छात्रों को यह समझ नहीं आ रहा है कि आखिर वह क्या करें।
अस्पताल के निदेशक डॉ राजीव लोचन ने बताया कि बायोप्सी केंद्र के लिए फंड अपने आप जुटाना पड़ रहा है। यह वक्त कोरोना संक्रमण का चल रहा है। ऐसे में आरटी- पीसीआर जांच के लिए टेक्नीशियन की भी कमी है। इसलिए यहां के कुछ स्टाफ को उधर लगाया गया है। फिलहाल बायोप्सी जांच प्रभावित है, लेकिन जिनकी जांच हो चुकी है। उनकी रिपोर्ट जरूर आएगी। बाकी मरीजों से अपील है वह कि वह अपनी जांच किसी अन्य संस्थान में कराएं। छात्रों के भविष्य के बारे में पूछने पर उन्होंने कहा कि फंड के बगैर क्या किया जा सकता है। फिर भी कुछ ना कुछ प्रयास किया जाएगा।