बसपा को जिताऊ फार्मूले की तलाश
लखनऊ(अजय जायसवाल)। बीते वर्ष सूबे की सत्ता गंवाने वाली बसपा के लिए गुजरता साल भी खुश होने का मौक
लखनऊ(अजय जायसवाल)। बीते वर्ष सूबे की सत्ता गंवाने वाली बसपा के लिए गुजरता साल भी खुश होने का मौका लेकर नहीं आया। लोकसभा चुनाव के सेमी फाइनल माने जाने वाले चार राज्यों के चुनाव में पार्टी कोई चमत्कार नहीं दिखा सकी। ऐसे में नए साल में बसपा के सामने घटती ताकत को थामना ही चुनौती होगी।
दरअसल, दलितों के उत्थान के लिए तीन दशक पहले बनी बहुजन समाज पार्टी वर्ष 2007 में बड़ी ताकत बनकर उभरी थी। 'सोशल इंजीनियरिंग' के फार्मूले से पार्टी अकेले दम पर यूपी कब्जाने के बाद 2008 में चार राज्यों के चुनाव में भी पहली बार 17 सीटें जीतने में कामयाब रही थी। 2009 के लोकसभा चुनाव में पार्टी के हाथ सर्वाधिक 21 सीटें लगी लेकिन उसके बाद से पार्टी की ताकत लगातार घटती जा रही है। पिछले वर्ष सूबे की सत्ता गंवाने के बाद चार राज्यों के चुनाव में भी पार्टी का निराशाजनक प्रदर्शन रहा। पार्टी की सीटें घटकर आठ रह गईं। दिल्ली में तो पार्टी का खाता भी न खुल सका।
वर्षो से जो दलित वोटर बसपा के साथ हुआ करता था वह भी दूसरी पार्टियों की ओर मुड़ता दिखा। सूबे के विस चुनाव की तरह चार राज्यों में भी ब्राह्मण व अपर कास्ट का बसपा के प्रति मोह घटा। बसपा प्रमुख को भी शायद इसका एहसास है तभी तो वह खिसकते जनाधार को थामने के लिए कोई मौका नहीं गंवाना चाहती हैं। कानून व्यवस्था के मुद्दे पर सपा सरकार से जनता की नाराजगी को भुनाने के लिए पार्टी आए दिन राज्यपाल से राज्य सरकार की बर्खास्तगी की मांग करती रहती है। खुद को महंगाई व भ्रष्टाचार से परेशान देशवासियों के साथ दिखाने के लिए बसपा प्रमुख समर्थन के बावजूद केंद्र की यूपीए सरकार पर भी निशाना साधती रहती हैं। मुसलिम समाज को खुश करने के लिए पार्टी, भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी पर भी बरसती हैं। यूपी मे मोदी फैक्टर के असर को नकारते हुए साफ कहती रही हैं कि वह मोदी को प्रधानमंत्री के तौर पर नहीं देखना चाहती।
नए साल में होने वाले लोकसभा चुनाव में खोई ताकत हासिल कर अकेले दम पर बेहतर नतीजे के लिए पार्टी अब फूंक-फूंक कर कदम बढ़ा रही है। मिशन-2014 के लिए सर्वसमाज में खासतौर से ब्राह्मण समाज को पहले जैसा बसपा से जोड़ने के लिए पार्टी ने ब्राह्मण समाज के सम्मेलन तो शुरू किए लेकिन जातीय सम्मेलनों पर कोर्ट की रोक से यह सिलसिला आगे न बढ़ सका। सपा सरकार को मुसलिम समाज व पिछड़े वर्गो का विरोधी बताते हुए बसपा खुद को उनका सच्चा हितैषी बताने के लिए अपनी सरकार के कार्यो को गिनाते नहीं थक रहीं। केंद्र की सत्ता हासिल करने के मद्देनजर बसपा अपरकास्ट समाज एंवं धार्मिक अल्पसंख्यक समाज को पार्टी से जोड़ने के लिए आरक्षण कार्ड भी चल रही हैं।
इतना ही नहीं महीनों पहले प्रत्याशी तय करने के बावजूद सूबे के बदलते सियासी समीकरण को देखते हुए पार्टी उन्हें बदलने में भी देर नहीं कर रही है। 'जिताऊ' की खोज में पार्टी पूर्व घोषित प्रत्याशियों के साथ ही कई मौजूदा सांसदों तक के टिकट काट रही है। समाज विशेष में प्रभाव रखने वाले पूर्व मंत्री आरके चौधरी सहित कई पुराने नेताओं को पार्टी में फिर से जगह दी जा रही है।
गिरते जनाधार से चिंतित बसपा प्रमुख के लिए गुजरता साल बड़ी राहत लेकर भी आया। कोर्ट ने आय से अधिक संपत्ति के मामले में उन्हें राहत दी। यद्यपि पार्टी के कई बड़े नेता भ्रष्टाचार व आय से अधिक संपत्ति के मामले में लोकायुक्त से लेकर अन्य जांचों से जूझते रहे। अब लोकसभा चुनाव से पहले पार्टी कार्यकर्ताओं में जोश भरने के साथ ही विरोधी पार्टियों को खुद की ताकत का एहसास कराने के लिए बसपा प्रमुख ने अपने जन्मदिन 15 जनवरी को लखनऊ में ऐतिहासिक महारैली करने का एलान किया है। कांग्रेस के प्रति देशवासियों में व्याप्त गुस्से को देखते हुए बसपा प्रमुख महारैली में यूपीए सरकार से समर्थन वापसी का एलान भी कर सकती हैं।
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