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सपा-बसपा गठबंधन के बाद कई स्तर पर मोर्चा खुलने से भाजपा खुश

सपा और बसपा के मजबूत गठबंधन के एलान के बाद से उत्तर प्रदेश में छोटे दलों की राजनीतिक सक्रियता बढ़ गई है।

By Dharmendra PandeyEdited By: Published: Tue, 15 Jan 2019 04:43 PM (IST)Updated: Tue, 15 Jan 2019 04:45 PM (IST)
सपा-बसपा गठबंधन के बाद कई स्तर पर मोर्चा खुलने से भाजपा खुश
सपा-बसपा गठबंधन के बाद कई स्तर पर मोर्चा खुलने से भाजपा खुश

लखनऊ [आनन्द राय]। उत्तर प्रदेश में सपा-बसपा गठबंधन से कांग्रेस की दूरी के चाहे जितने निहितार्थ निकाले जा रहे हैं लेकिन, भारतीय जनता पार्टी के लिए यह समीकरण सुकून देने वाला है। लोकसभा चुनाव में कांग्रेस और सपा-बसपा के अलावा छोटे दलों के भी मोर्चे अस्तित्व में आने को बेताब हैं। इससे वोटों का बिखराव होना तय है। भाजपा इसी बिखराव का लाभ उठाएगी।

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सपा और बसपा के मजबूत गठबंधन के एलान के बाद से उत्तर प्रदेश में छोटे दलों की राजनीतिक सक्रियता बढ़ गई है। निषाद पार्टी और पीस पार्टी से समाजवादी पार्टी की निकटता जरूर है लेकिन, राष्ट्रीय लोकदल के हिस्से की सीटों को लेकर अभी पेच फंसा है। कांग्रेस महासचिव और उत्तर प्रदेश प्रभारी गुलाम नबी आजाद ने उत्तर प्रदेश की सभी 80 सीटों पर लडऩे का एलान कर दिया है। प्रगतिशील समाज पार्टी लोहिया के संस्थापक शिवपाल सिंह यादव ने कहा है कि अगर कांग्रेस उनसे समझौता करेगी तो वह तैयार हैं। शिवपाल को कांग्रेस कितना तरजीह देगी, यह तो आगे की बात है लेकिन, छोटे दलों के अलग-अलग फ्रंट की गुंजायश बन गई है।

उत्तर प्रदेश में अब रालोद की नई राजनीतिक पारी किसके साथ शुरू होगी, इसके लिए चौधरी अजित सिंह और जयंत चौधरी सभी संभावनाओं का आकलन कर रहे हैं। सपा-बसपा खेमे में बात नहीं बनी तो कांग्रेस और भाजपा दोनों तरफ वह राह तलाश सकते हैं। रालोद अगर भाजपा के साथ समझौते में आया तो पश्चिमी उप्र में भाजपा को मजबूती मिलेगी और अगर कांग्रेस के साथ भी उसकी गोलबंदी हुई तो भी सपा-बसपा गठबंधन को कमजोर करने में सहूलियत होगी।

रघुराज, शिवपाल, महान दल, अपना दल और आप की बढ़ी सक्रियता

प्रतापगढ़ जिले के कुंडा विधानसभा क्षेत्र से वर्ष 1993 से लगातार निर्दल जीत रहे रघुराज प्रताप सिंह भी इस बार लोकसभा चुनाव में अपने बैनर से उम्मीदवार उतारने की तैयारी में हैं। एससी-एसटी एक्ट के संशोधन पर उन्होंने नाराज सवर्णों के नेतृत्व के लिए एक बड़ी रैली की थी। रघुराज प्रताप सिंह और शिवपाल सिंह यादव की नजदीकी जाहिर है। निषादों की एकलव्य पार्टी, वंचित समाज पार्टी और अन्य छोटे दल भी इस फ्रंट में शामिल होकर राजनीतिक पारी खेल सकते हैं।

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मौर्य, शाक्य, सैनी और कुशवाहा आदि जातियों के बूते पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सक्रिय महान दल का भी आधार है। 2017 में भाजपा के सहयोग से लड़ी सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी को 0.7 फीसद वोट मिले थे, जबकि महान दल को 0.11 प्रतिशत मत मिले। ऐसे छोटे-छोटे दलों की जुटान हो सकती है।

एनडीए के सहयोगी दलों के भी बदले सुर

भाजपा का अपना दल (सोनेलाल) और सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी का गठबंधन है। सपा-बसपा गठबंधन के बाद दोनों सहयोगी दल भाजपा को आंखें तरेर रहे थे लेकिन, सपा-बसपा गठबंधन के बाद सुभासपा अध्यक्ष और योगी सरकार के मंत्री ओमप्रकाश राजभर ने कहा है कि सपा-बसपा गठबंधन से एनडीए को घबराने की जरूरत नहीं है। राजभर का दावा है कि सपा-बसपा गठबंधन मुंह के बल गिरेगा। इधर, अपना दल की अध्यक्ष कृष्णा पटेल और आम आदमी पार्टी के बीच बहुत ही तेजी से नजदीकी बढ़ी है। दोनों मिलकर चुनाव लड़ सकते हैं। हालांकि कृष्णा पटेल के साथ सक्रिय अपना दल के सांसद कुंवर हरिवंश सिंह जातीय गोलबंदी में जुट गए हैं। सवर्ण आरक्षण पर मोदी की सराहना में देश भर में क्षत्रिय सम्मेलन कर रहे हरिवंश की कोशिश यह है कि कृष्णा पटेल भाजपा गठबंधन में ही रहें। इस स्थिति में भाजपा के साथ केंद्रीय राज्यमंत्री अनुप्रिया पटेल अपना रिश्ता मजबूत करने में जुट गई हैं। अनुप्रिया के पति और अपना दल एस के अध्यक्ष आशीष सिंह पटेल कहते रहे हैं कि वह एनडीए के साथ ही चुनाव लड़ेंगे और मोदी-शाह से उनकी कोई शिकायत नहीं है। 


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