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भाजपा कैराना और नूरपुर को लेकर माहौल बनाने में लगी, रालोद को दुविधा

गोरखपुर और फूलपुर में पराजय का स्वाद चखने वाली भाजपा कैराना और नूरपुर के लिए खासी सावधानी बरत रही है। रालोद सपा-बसपा के रुख से परेशान है।

By Nawal MishraEdited By: Published: Thu, 03 May 2018 08:16 PM (IST)Updated: Thu, 03 May 2018 09:33 PM (IST)
भाजपा कैराना और नूरपुर को लेकर माहौल बनाने में लगी, रालोद को दुविधा
भाजपा कैराना और नूरपुर को लेकर माहौल बनाने में लगी, रालोद को दुविधा

लखनऊ (जेएनएन)। राष्ट्रीय लोकदल कैराना लोकसभा और नूरपुर विधानसभा क्षेत्र में उपचुनाव के जरिये पश्चिमी उप्र में सियासी वजूद बचाने में लगी है। इस मामले में सपा-बसपा का रुख से रालोद के लिए मुफीद नहीं है। सपा के दोनों सीटों पर प्रत्याशी उतारने का मन बनाने से रालोद की उम्मीद पर पानी फिरता दिख रहा है। गोरखपुर और फूलपुर में पराजय का स्वाद चखने वाली भाजपा कैराना और नूरपुर के लिए खासी सावधानी बरत रही है। 

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कैराना को लेकर भाजपा की रणनीति बनी

चुनावी अभियान के लिए जहां भाजपा के पदाधिकारियों, सांसदों, विधायकों और मंत्रियों को जिम्मेदारी दी गई है वहीं बूथों पर भाजपा की टोली सामाजिक संतुलन साधने में जुट गई है। प्रदेश महामंत्री संगठन सुनील बंसल ने पश्चिम में डेरा जमा दिया है। आज कैराना को लेकर रणनीति बनी। भाजपा पश्चिम क्षेत्र के अध्यक्ष अश्विनी त्यागी ने कैराना लोकसभा क्षेत्र के सभी 145 सेक्टरों में सेक्टर प्रभारी के अलावा जिला और प्रदेश स्तर के पदाधिकारियों को जिम्मेदारी सौंप दी है। इसके अलावा लोकसभा क्षेत्र के सांगठनिक दृष्टि से 19 मंडलों में जनप्रतिनिधियों को जवाबदेह बनाया गया है। इन क्षेत्रों में भाजपा ने जातीय समीकरण साधने के साथ ही अनुभवी नेताओं को भी उतारा है।

बूथ स्तर तक पकड़ बनाने का मंत्र 

सुनील बंसल ने गुरुवार को शामली में सभी जिम्मेदार नेताओं को बूथ स्तर तक पकड़ बनाने के मंत्र दिए।

शनिवार को इस लोकसभा क्षेत्र के पांचों विधानसभा क्षेत्रों में कार्यालय खुल जाएंगे और हर जगह वरिष्ठ नेताओं को जिम्मेदारी दी गई है। भाजपा के प्रदेश उपाध्यक्ष व पूर्व केंद्रीय मंत्री संजीव बालियान, नवाब सिंह नागर तथा प्रदेश मंत्री देवेंद्र चौधरी, क्षेत्रीय महामंत्री अशोक मोंगा के अलावा सांसद धर्मेंद्र सिंह कश्यप, कांता कर्दम और विजयपाल सिंह तोमर को जीत का दायित्व दिया गया है। इनके अलावा प्रभारी के रूप में कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही और बेसिक शिक्षा राज्यमंत्री अनुपमा जायसवाल को चुनावी कमान सौंपी गई है। इन क्षेत्रों से प्रदेश सरकार के गन्ना विकास मंत्री सुरेश राणा, राज्यमंत्री धर्म सिंह सैनी, बलदेव सिंह औलख और अतुल गर्ग को जिम्मेदारी दी गई है। शुक्रवार को नूरपुर क्षेत्र की रणनीति बनेगी और प्रदेश महामंत्री कार्यकर्ताओं का मार्गदर्शन करेंगे। 

कैराना व नूरपुर को लेकर दुविधा में रालोद

उपचुनाव के लिए नामांकन पत्र दाखिल करने की प्रक्रिया गुरुवार से शुरू होगी परंतु दो दिन पूर्व सपा ने दोनों सीटों के लिए उम्मीदवार जल्द घोषित किए जाने का एलान कर रालोद की उलझन बढ़ा दी। सपा प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी का कहना है कि संसदीय बोर्ड की बैठक में विचार के बाद ही अधिकृत उम्मीदवारों की घोषणा होगी। रालोद नेतृत्व को भरोसा था कि गोरखपुर और फूलपुर उपचुनाव में सपा उम्मीदवारों को बिना शर्त समर्थन देने का लाभ कैराना में मिलेगा। रालोद प्रदेश अध्यक्ष डॉ. मसूद अहमद का कहना है कि भाजपा को हराने के लिए कैराना में विपक्ष को एकता दिखानी चाहिए और सांझा प्रत्याशी के रूप में जयंत चौधरी सबसे उपयुक्त नाम है।

रालोद पर भारी सपा का दावा

वर्ष 2014 के लोकसभा व वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव नतीजों पर नजर डाले तो समाजवादी पार्टी का दावा रालोद की दावेदारी पर भारी दिखता है। गत लोकसभा चुनाव में सपा के नाहिद हसन 3,29,081 वोट हासिल करके दूसरे स्थान पर रहे जबकि रालोद के करतार सिंह भड़ाना मात्र 42,706 मत ही पा सकें। रालोद की दुर्दशा कांग्रेस का समर्थन मिलने के बाद हुई। वहीं रालोद को समर्थन देने के सवाल पर बसपा भी तैयार नहीं। राज्यसभा चुनाव में रालोद विधायक की क्रास वोटिंग और बाद में भाजपा में शामिल होने से भी रालोद की साख पर सवाल उठे हैं, जिसका नुकसान गठबंधन की संभावना पर भी लाजिमी है।

नूरपुर में भी रालोद का दावा कमजोर

बिजनौर जिले की नूरपुर विधानसभा सीट पर होने वाले उपचुनाव में रालोद का दावा सपा से काफी कमजोर है। वर्ष 2017 के चुनाव में रालोद मात्र 2165 वोट हासिल कर सका था, जबकि महान दल जैसी नई पार्टी 5331 वोट पाने में कामयाब रही थी। ऐसे में कैराना अथवा नूरपुर सीटों पर रालोद को महत्व देने के पक्ष में सपा के अधिकतर नेता तैयार नहीं। सपा के एक पूर्व विधायक का कहना है कि रालोद कब पाला बदलेगा इसकी गारंटी कोई नहीं लेगा, जब छपरौली के विधायक को भाजपा में जाने से न रोका जा सका तो आगे भरोसा कैसे हो?


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