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India-Nepal Tension: कुर्सी बचाने की कोशिश में जुटे नेपाली प्रधानमंत्री की हिमाकत पर रामनगरी ने दिया कड़ा जवाब

संतों ने कहा नेपाली नहीं भगवान. नेपाल के संबंधी थे हर साल जाने वाली राम बरात उनके प्रगाढ़ संबंध की गवाह।

By Anurag GuptaEdited By: Published: Wed, 15 Jul 2020 01:33 PM (IST)Updated: Wed, 15 Jul 2020 01:33 PM (IST)
India-Nepal Tension: कुर्सी बचाने की कोशिश में जुटे नेपाली प्रधानमंत्री की हिमाकत पर रामनगरी ने दिया कड़ा जवाब
India-Nepal Tension: कुर्सी बचाने की कोशिश में जुटे नेपाली प्रधानमंत्री की हिमाकत पर रामनगरी ने दिया कड़ा जवाब

अयोध्या, [रमाशरण अवस्थी]। कुर्सी के लिए दुनिया के आराध्य भगवान राम के अस्तित्व में बदलाव की नाकाम कोशिश करने वाले नेपाली प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली के रुख को अयोध्या से ही कड़ा जवाब मिला है। उन तमाम असंख्य पौराणिक  और आधुनिक जमाने में दुनिया के सबसे बड़ी लोकतंत्र की सर्वोच्च अदालत के उदाहरण गिनाकर। यह बताकर कि निश्चित रूप से भगवान राम हमारे क्षितिज के सर्वाधिक चमकदार सितारे हैं, पर अयोध्या की अस्मिता मानवता के कई अन्य महनीय विभूतियों से सज्जित है। यही वजह है, आत्म प्रशंसा नहीं बल्कि ओली की हिमाकत को दुनिया कड़ा जवाब दे रही है। सोेशल मीडिया से लेकर जमीन तक पर उनके अज्ञान की जमकर भर्त्सना हो रही है। 

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जानें अयोध्या को 

जानकारों के मुताबिक, अयोध्या कोई आज का शहर नहीं है। इतिहास नहीं बल्कि पौराणिक कथन की जीती जागगती धर्मनगरी है। ग्रंथों के वर्णन में जाएं तो इसकी स्थापना भगवान विष्णु ने अपने चक्र पर की और उसके बाद यशस्वी सूर्यवंशीय नरेशों की देख-रेख में निरंतर श्रीवृद्धि करती गई। मनु, इक्ष्वाकु, रघु, दधीचि, दिलीप, दशरथ जैसे परम प्रतापी नरेशों से सेवित-संरक्षित अयोध्या की गणना देवों की पुरी की रूप में होती रही है। अथर्व वेद में विस्तृत वर्णन है। महर्षि वाल्मीकि के समय तक अयोध्या सांस्कृतिक उत्कर्ष के शिखर से गुजरी। एक शहर के लिए इससे अधिक सुख-सौभाग्य क्या हो सकता था कि हमारे दामन में पले-बढ़े प्रभु राम मानवता के उदात्त नायक और मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में अमिट सिद्ध हुए। दुनिया के प्रथम महाकाव्य में राम और और उनकी जीवन यात्रा को विषय बनाने के साथ महर्षि वाल्मीकि ने कोसल नाम के साथ अयोध्या का परिचय दिया। उस सरयू के साथ प्रस्तुत किया, जो भगवान राम के पूर्वज इक्ष्वाकु के प्रयास और उनके कुल के गुरु ब्रह्मर्षि वशिष्ठ के आध्यात्मिक प्रताप से हिमालय की उच्च उपत्यका में स्थित मानसरोवर से निकलकर अयोध्या पहुंचीं। 

24 तीर्थंकरों ने किया सुशोभित

अयोध्या सिर्फ नाम के नाम से नहीं जानी जाती। यहां जैन धर्म के 24 तीर्थंकरों में से प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव सहित पांच तीर्थंकरों, गौतम बुद्ध के बारंबार आगमन हुआ। महान बौद्ध आचार्य अश्वघोष, प्रथम, नवम एवं दशम सिख गुरुओं, दिग्गज सूफी संतों से भी गौरवांवित है। महान दर्शनिक एवं संत रामानुज से लेकर रामानंद तक ने हमें मुकाम दिया। यही कारण है कि ओली के रुख को अयोध्या का हर शख्स दयाभाव से देख रहा है। यह कहते हुए कि वे अपनी गद्दी सलामत रखने और एक दंभी पड़ोसी देश को खुश करने के लिए पौराणिक नगरी की अस्मिता को दांव पर लगाने का दुस्साहस कर रहे हैं। वे भूल रहे हैं कि भारत के लोग ही नहीं उस नेपाल के लोगों का भी अपमान कर रहे हैं, जहां राम का युगों पुराना रिश्ता है। गत वर्ष ही नौ नवंबर को आये सुप्रीमकोर्ट के फैसले से यह सिद्ध हो चुका है कि भगवान राम की जन्मभूमि के साथ अयोध्या अपने स्थान पर कितनी खरी है...।

बहस बेमानीः इतिहासकार 

रामनगरी के पुरातात्विक उत्खनन में शामिल रहे अयोध्या के प्रतिनिधि इतिहासकार डाॅ. हरिप्रसाद दुबे के अनुसार अयोध्या की प्रामाणिकता को लेकर छेड़ी जानी वाली बहस ही बेमानी है और इसके पीछे बेवजह का विवाद पैदा करना है। अयोध्या की प्रामाणिकता स्वयंसिद्ध है और यह सच्चाई पुरातत्व, पुराण, महाकाव्य, ऐतिहासिक विवरण, विदेशी यात्रियों के वृत्तांत आदि इतिहास की अनेकानेक कसौटियों से परिभाषित है।

नेपाली साध्वी बोलीं-ओली का बयान मूर्खतापूर्ण 

साध्वी चारुशिला रामनगरी में गोलाघाट मुहल्ला स्थित नेपाली मंदिर की प्रमुख हैं। मूलत: नेपाल के ओखुलढूंगा जिला निवासी चारुशिला नेपाली मूल की ही साध्वी जानकी सहचरी के संपर्क में आकर करीब चार दशक पूर्व अयोध्या आ बसीं। यहीं के जानकीशरण मधुकरिया नाम के यशस्वी गुरु की प्रेरणा में रहीं। ओली के बयान से हतप्रभ चारुशिला कहती हैं, बीरपुर किस शास्त्र में लिखा है। वे ओली के बयान को मूर्खतापूर्ण करार देती हैं। नेपाली मूल के ही संत बालकृष्णाचार्य कहते हैं कि अयोध्या की प्रामाणिकता को लेकर संदेह राजनीति और कूटनीति का क्रूर खेल है।

पहले बस चलाई, अब कह रहे इतनी दूर कैसे आए राम 

ओली के बयान को हास्यास्पद इसलिए भी बताया जा रहा है कि दो साल पहले खुद उन्होंने भारत और नेपाल के बीच जनकपुर तक चलने वाली बस की अगवानी की थी। पीएम नरेद्र मोदी ने इसे हरी झंडी दिखाई थी। तब ओली ने कहा था कि प्रभु राम की ससुराल से श्रद्धालुओं का नाता मजबूत होगा। इतना ही नहीं, सदियों से जनकपुर के लिए हर साल रामबरात भी निकलती है। नेपाल के लोग भव्य स्वागत करते हैं उसका है।


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