Ayodhya demolition case: जज ने साझा की नई पारी की योजनाएं, कहा-फैसले की फिक्र में नहीं लगती थी भूख
Ayodhya demolition case न्यायाधीश सुरेंद्र कुमार यादव ने गुरुवार का पूरा दिन रायबरेली रोड वृंदावन कॉलोनी में परिवार के साथ बिताया। दिन भर परिचितों के फोन घनघना रहे थे। वह कहते हैं कि समय पर फैसला देने की इतनी चिंता रहती थी कि भूख ही नहीं लगती थी।
लखनऊ, (अजय श्रीवास्तव)। नौकरी के आखिरी दिन अयोध्या के ढांचा ध्वंस मामले का ऐतिहासिक फैसला सुनाने वाले सीबीआइ कोर्ट के विशेष न्यायाधीश सुरेंद्र कुमार यादव ने गुरुवार का पूरा दिन रायबरेली रोड वृंदावन कॉलोनी में परिवार के साथ बिताया। दिन भर परिचितों के फोन घनघना रहे थे। गांव से फोन आता तो वह अम्मा का हाल पूछते। वह कहते हैं कि समय पर फैसला देने की इतनी चिंता रहती थी कि भूख ही नहीं लगती थी। सुबह दो रोटी और सब्जी खाकर कोर्ट जाते थे और वहां दोपहर में एक कप चाय पीते थे। कोरोना के कारण बाहर से कुछ खाने को मंगाते नहीं थे। फैसला लिखाने और फाइलों को पढऩे में इतना व्यस्त थे कि भूख ही नहीं लगती थी।
वह बोले- जज का काम ही यही है कि जो भी रिकॉर्ड में है, उसी के आधार पर फैसला सुनाना है। मैंने भी यही किया। तमाम फैसले सुनाए थे, लेकिन अयोध्या में विवादित ढांचा गिराने का मामला चर्चित था तो हर किसी की नजर लगी थी। यादव बताते हैं कि सुप्रीम कोर्ट खुद केस की निगरानी कर रहा था। 31 अगस्त तक फैसला सुनाना था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट को पत्र लिखकर बताया कि इस अवधि में निर्णय सुनाना संभव नहीं है, तो 30 सितंबर तक का समय मिल गया था। महत्वपूर्ण मामले की सुनवाई की जिम्मेदारी निभाते हुए वह दो सिंतबर से हर दिन फैसले को लिपिबद्ध कराने में जुटे थे। सुबह 10 बजे कोर्ट पहुंच जाते और अभिलेखों को पढऩे के साथ ही नोट तैयार करते। सीबीआइ की दलीलें, गवाहों और आरोपितों के बयान दर्ज करने की फाइलें भी बहुत मोटी हो गई थीं। फैसले में कोई कमी न रह जाए, इसलिए कानूनी किताबों का भी लगातार अध्ययन करते रहे।
इस दौरान हर दिन सुबह दस बजे से रात आठ बजे क्रमवार फैसले को टाइप ही कराते रहे। टाइप होने के बाद फिर से उसे पढऩा पड़ता था। एक कमरे में तीन आशुलिपिक रहते थे और रात आठ बजे तक न्यायालय परिसर में रहकर कभी किसी तो कभी किसी आशुलिपिक के पास जाकर बैठ जाते थे। आरोपितों से लेकर बचाव पक्ष के बयान का गहन परीक्षण करना पड़ता था। कोर्ट परिसर में भी कोरोना के मरीज पाए गए थे, लेकिन विशेष न्यायाधीश यादव ने अपना काम जारी रखा।
अब गांव जाएंगे, मां के पास
अरसे बाद पत्नी, दो बेटों और बेटी के साथ फुर्सत से दिन बिता रहे सुरेंद्र कुमार यादव को कई दिनों बाद अतिव्यस्त दिनचर्या से राहत मिली थी। जौनपुर के सुरेंद्र कुमार यादव की मां गांव में रहती हैं। सेवानिवृत्त होकर वह अब गांव जाकर उनकी देखभाल पर खास ध्यान देने की तैयारी कर रहे हैं। इसके साथ ही गांव में किसान के रूप में नई पारी शुरू करने की उनकी तैयारी है।
बच्चों का भविष्य भी प्राथमिकता
बड़ा बेटा अभिषेक यादव किंगजार्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी से एमबीबीएस की पढ़ाई करने के बाद आगरा मेडिकल कॉलेज से जनरल सर्जरी का कोर्स करके लौटा है। छोटा बेटा आर्यन यादव दिल्ली से पीसीएस (जे) की तैयारी कर रहा है तो बेटी शिप्रा डॉ.राम मनोहर लोहिया विश्वविद्यालय से डॉक्टर की इंटर्नशिप कर रही है। वह कहते हैं कि अब बच्चों के भविष्य के बारे में सोचना है।
प्रमोशन के बाद भी काम देखना पड़ा
यादव बताते हैं कि मई 2018 में जिला जज पद पर प्रमोशन हो गया था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या मामले की सुनवाई जारी रखने को कहा था तो प्रमोशन के पद पर काम करने का मौका ही नहीं मिला। वर्ष 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के लिए जजोंं के नाम मांगे थे तो चार नाम गए थे और सबसे सीनियर मैं था तो मेरा चयन हो गया।
कामयाबी में पत्नी का हाथ
सुरेंद्र पत्नी उर्मिला के सहयोग को भी नहीं भूलते हैं। कहते हैं कि वह सुबह नौ बजे ही भोजन तैयार कर देती थीं, जिससे कोर्ट जाने में देर न हो। वह कहते हैं कि दो सितंबर से परिवार से अलग जैसे हो गए थे, लेकिन पत्नी का पूरा सहयोग रहता था।
दो बार अयोध्या में तैनात रहे
अयोध्या में विवादित ढांचा गिराए जाने की घटना के समय यादव अयोध्या में मुंसिफ मजिस्ट्रेट थे। आठ जून 1990 से 31 मई 1993 तक मुंसिफ मजिस्ट्रेट के साथ ही 24 मई 2005 से सात जून 2009 के बीच वहां अपर जिला सत्र न्यायाधीश के पद पर भी तैनात थे।