Ayodhya Demolition Case: पाकिस्तानी खुफिया एजेंसियों के सक्रिय होने की थी सूचना, जांच एजेंसी ने इसे किया था नजर अंदाज
Ayodhya Demolition Case विनय कटियार ने भी जताई थी असामाजिक तत्वों की आशंका। मुख्य विवेचक ने केस के दौरान स्वीकारीं जांच की कमियां। कोर्ट ने भी कहा कि यह अति महत्वपूर्ण तथ्य होने के बावजूद इस संबंध में कोई विवेचना नहीं की गई थी।
लखनऊ, जेएनएन। विशेष अदालत ने उपलब्ध साक्ष्यों के आधार पर पाया कि पाकिस्तानी खुफिया एजेंसियों के सक्रिय होने की सूचना भी शासन को मिली थी, लेकिन जांच एजेंसी ने इस दिशा में कोई कदम नहीं उठाया। फैसले के पेज नंबर 2084 पर कोर्ट ने तत्कालीन गृह सचिव प्रभात कुमार के एक नोट का जिक्र किया है। इसमें कहा गया था कि शासन के संज्ञान में आया है कि पाकिस्तान की गुप्तचर एजेंसियों से संबंध रखने वाले कुछ तत्व अयोध्या के जनसमूह में सम्मिलित हो गए हैं और वे विस्फोटक पदार्थो या अन्य तरीके से विवादित ढांचे को क्षति पहुंचा कर प्रदेश व देश में अशांति फैलाने का प्रयास कर सकते हैं। कोर्ट ने आगे कहा है कि उक्त नोट पांच दिसंबर 1992 का है व इस नोट के आधार पर उसी दिन शाम को उच्च स्तरीय प्रशासनिक बैठक अयोध्या में हुई थी। एक अन्य खुफिया रिपोर्ट में यह भी कहा गया था कि जम्मू कश्मीर के उधमपुर क्षेत्र से लगभग 100 राष्ट्र विरोधी तत्व अयोध्या में घुस चुके हैं। इस रिपोर्ट में प्रशासन को सतर्क रहने को कहा गया था। कोर्ट ने कहा कि यह अति महत्वपूर्ण तथ्य होने के बावजूद इस संबंध में कोई विवेचना नहीं की गई थी।
फैसले में कहा गया है कि मुख्य विवेचक एम नारायणन ने मामले की सुनवाई के दौरान जांच की कमियों को स्वीकार किया। कोर्ट के निर्णय में लिखा गया है कि एम नारायणन द्वारा अपने साक्ष्य में यह स्वीकारा गया है कि इस दौरान विवेचना ऐसा कोई साक्ष्य नही मिला था कि इस केस के समस्त 49 अभियुक्त किसी विशेष दिनांक को, किसी विशेष स्थान पर, किसी विशेष समय पर कभी एक साथ एकत्र रहे हों और उनके बीच 6 दिसंबर 1992 की कारसेवा से संबंधित कोई चर्चा हुई हो। कोर्ट ने कहा कि जहां तक उत्तेजित भाषण दिए जाने का प्रश्न है, इस तथ्य के संबंध में मात्र निजी राय साक्ष्य में शामिल नहीं की जा सकती, जब तक कि स्पष्ट रूप से भाषण में दिए गए वाक्यांश अथवा शब्द की ओर इंगित न किया जाए।
मुख्य विवेचक ने यह भी स्वीकार किया कि उनके द्वारा फोटोग्राफ्स के निगेटिव नहीं एकत्रित किए गए थे। उन्होंने बहस में स्वीकार किया कि विनय कटियार ने यह बयान मीडिया में दिया था कि आशंका है कि 6 दिसंबर 1992 को होने वाली कारसेवा में कुछ असामाजिक तत्व घुस सकते हैं और ढांचे को तोड़ने का प्रयास कर सकते है, इसलिए कारसेवकों को पास दिया जाएगा और उन्हें पास प्रदान भी किया गया था, इस संबंध में मैंने विवेचना की थी। मैंने बहुत से उन कारसेवकों के बयान अंकित किए थे, जिन्हें विहिप द्वारा पास जारी किए गए थे।
अब फैसले में अपनी कमियों को बारीकी से देखेगी जांच एजेंसी
स्पेशल कोर्ट (अयोध्या प्रकरण) में सीबीआइ की दलीलें विध्वंस कांड को सुनियोजित आपराधिक षड्यंत्र साबित करने में नाकाम रहीं। सीबीआइ के लिए यह करारा झटका है। सीबीआइ के वकील फिलहाल कुछ बोलने से कतरा रहे हैं। उनका कहना है कि पहले पूरे फैसले को सिलसिलेवार पढ़ा और देखा जाएगा। इसके बाद ही उस पर कुछ कहना संभव होगा। फैसले की कॉपी को सीबीआइ दिल्ली मुख्यालय भेजा जा रहा है जहां विशेषज्ञ उसका अध्ययन करेंगे और उसके बाद ही जांच एजेंसी अपनी अगली अपील को लेकर कोई निर्णय करेगी। सीबीआइ ने कोर्ट में 351 गवाह ही पेश किए।
इसके अलावा सीबीआइ ने आरोपितों के विरुद्ध 314 मैटीरियल यानी अखबारों में प्रकाशित फोटो, वीडियो जैसे साक्ष्य पेश किए थे। साथ ही करीब 100 एफआइआर की प्रतियों समेत 274 दस्तावेज भी बतौर साक्ष्य कोर्ट में सौंपे गए। कोर्ट ने मीडिया में प्रकाशित फोटो की निगेटिव व वीडियो की फोरेंसिक जांच रिपोर्ट न होने के चलते उन्हें खारिज कर दिया। सीबीआइ प्रकरण को आपराधिक षड्यंत्र साबित करने के लिए भी कोई ठोस साक्ष्य नहीं जुटा सकी। अब सीबीआइ सप्लीमेंट्री साक्ष्यों को लेकर मंथन करेगी। सीबीआइ की ओर से कोर्ट में आरोपितों से सवाल-जवाब करने वाले एक अधिवक्ता का कहना है कि पहले पूरे फैसले का अध्ययन किया जाएगा। उससे पहले कुछ कहना जल्दबाजी होगी।