Ayodhya Demolition Case: दरी, खलिहान में भोजन और वो राम की भक्ति, अनपढ़ कवि ने बताई कार सेवा की कहानी
लखनऊ के पुराने शहर के हास्य कवि अमित अनपढ़ ने अयोध्या से संबंधित यादें ताजा की उन्होंने बताया कि घर में बिना बताए पहुंच गए थे अयोध्या। अमित ने बताया कि आज जीवन की तपस्या पूरी हो गई। ये मेरे लिए बहुत भावुक करने वाला दिन है।
लखनऊ [ऋषि मिश्र]। बहुत दिनोंं तक रहे टाट मे अब तो ठाठ में आएंगे। जन्मभूमि पर रामलला का मन्दिर भव्य बनाएंगे, कई पीढ़ियां गुजर गईं तब उत्सव ये आया है, पांच सौ वर्षों की ये तपस्या का परिणाम पाया है, चौपटिया में रहने वाले अमित कुमार शुक्ल उर्फ अनपढ़ कवि हैं और ये उनकी लिखी हुई पंक्तियां।
1990 में जब वे केवल 15 साल के थे तब वे कारसेवा के दौरान अपने साथी राजन के साथ पैदल ही अयोध्या पहुंच गए थे। अयोध्या में 30 अक्टूबर 1990 को गोलियां चली थीं तब लखनऊ में परिवार के लोग अमित को खोज रहे थे। मगर वे 30 अक्टूबर को कारसेवा के लिए अमीनाबाद से चले एक जत्थे के साथ अयोध्या की ओर कूंच कर गए थे। दो नवंबर को सुबह करीब 11 बजे जब वे मणिरामदास छावनी पहुंच तो पता चला कि कारसेवकों पर भयानक गोलियां चली हैं। उनके जत्थे को आगे नहीं बढ़ने दिया गया। वे लखनऊ वापस आ गए थे। करीब दो दिन पैदल चले थे। इस दौरान ओढ़ने के लिए एक फटी दरी थी और गांव के लोग खलिहानों में भोजन करवाते थे।
अमित बताते हैं लगता है कि आज जीवन की तपस्या पूरी हो गई। ये मेरे लिए बहुत भावुक करने वाला दिन है। झंडे वाला पार्क में अटल बिहारी बाजपेई की सभा में गए थे। वहां पहुंचने से पहले ही उनको गिरफ्तार किया गया और कारसेवकों को वहां से भगा दिया गया था। हम अपने जत्थे के साथ चिनहट होते हुए गांवों के रास्ते से अयोध्या की ओर चल पड़े। रात में चलते थे और दिन में सोते थे। गांव के लोग भोजन कराते थे। सोने के लिए जगह देते थे। एक बूढ़ी माता ने मुझे एक दरी थी, जिसको ओढ़ लेते थे।