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थोड़ी कोशिश हुई तो रामनगरी में आएंगे हर वर्ग के पर्यटक, यहां हैं कई पुरातात्विक एवं ऐतिहासिक इमारतें

अयोध्‍या को अगर पर्यटन के नजरिए से सजाया जाए तो यहां देशी-विदेशी सैलानियों की आमद बढ़ सकती है।

By Anurag GuptaEdited By: Published: Tue, 28 Jan 2020 07:43 PM (IST)Updated: Wed, 29 Jan 2020 08:19 AM (IST)
थोड़ी कोशिश हुई तो रामनगरी में आएंगे हर वर्ग के पर्यटक, यहां हैं कई पुरातात्विक एवं ऐतिहासिक इमारतें
थोड़ी कोशिश हुई तो रामनगरी में आएंगे हर वर्ग के पर्यटक, यहां हैं कई पुरातात्विक एवं ऐतिहासिक इमारतें

अयोध्या, (मुकेश पांडेय)। रामनगरी में केवल मंदिर ही नहीं पुरातात्विक एवं ऐतिहासिक इमारतेें भी हैं, जो पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बन सकती हैं। इसमें मणिपर्वत, सुग्रीवकिला, जैनमंदिर, कनकभवन, हनुमानगढ़ी, राजप्रासाद राजसदन, भरतकुंड, दशरथसमाधि, श्रृंगी ऋषि आश्रम, कामाख्यादेवी मंदिर के अलावा बेगम मकबरा, गुलाबबाड़ी आदि ऐसे स्थल हैं, जो स्थापत्य कला के नमूने हैं। अगर इसे पर्यटन के नजरिए से सजाया जाए तो देशी-विदेशी सैलानियों की आमद बढ़ सकती है। 

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तीर्थनगरी के रूप में प्रतिष्ठित अयोध्या केवल रामजन्मभूमि होने के कारण ही नहीं चर्चित है, बल्कि पर्यटन की संभावना से भरी-पूरी है। चरम आस्था की प्रतीक पुण्य सलिला सरयू की सुरम्यता बरकरार है। महाभारत काल में रामनगरी वैभव धूमिल पड़ा तो भारतीय लोककथाओं के नायक महाराज विक्रमादित्य ने दो हजार वर्ष पूर्व रामनगरी का जीर्णोद्धार कराया। कनकभवन, हनुमानगढ़ी, नागेश्वरनाथ, छोटी देवकाली जैसे पौराणिकता के प्रतिनिधि मंदिर विक्रमादित्य के समय के माने जाते हैं, जो अपनी प्राचीनता के साथ स्थापत्य की दृष्टि से बेजोड़ हैं। रामनगरी के पांच दर्जन उपेक्षा के बावजूद गौरवमय अतीत के संवाहक और पर्यटन की संभावना से युक्त हैं।

अयोध्या जैन धर्म के संस्थापक भगवान ऋषभदेव सहित पांच तीर्थंकरों की जन्मभूमि होने के गौरव से विभूषित है। यहां रामानुजीय एवं रामानंदीय परंपरा के आचार्यों, सिख गुरुओं एवं सूफी संतों की उत्कृष्ट पंरपरा रही है। यह परंपरा नगरी की साझी विरासत के साथ पर्यटन के क्षितिज को भी चार-चांद लगाती है।

कनकभवन : मान्यता है कि विवाह के बाद अयोध्या आईं मां सीता को रानी कैकेयी ने यह भवन मुंह दिखाई में दिया था। कनकभवन भग्न हुआ तो भगवान कृष्ण, महाराज विक्रमादित्य जैसी विभूतियों ने जीर्णोद्धार कराया। आज कनकभवन के जिस मनोहारी स्वरूप का दर्शन होता है, उसका निर्माण ओरछा की महारानी वृषभानु कुंवरि ने 19वीं शताब्दी के मध्य में कराया था।

हनुमानगढ़ी : मान्यता है कि भगवान राम के समय उनके राजप्रासाद रामकोट के आग्नेय कोण पर हनुमानजी की चौकी इसी स्थल पर थी। भगवान राम जब स्वधाम को गए, तब अयोध्या का प्रभार हनुमानजी को दे गए। 17वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में बाबा अभयरामदास की आध्यात्मिक शक्तियों से प्रभावित अवध के तत्कालीन नवाब ने हनुमानजी के मंदिर का निर्माण गढ़ी की शक्ल में कराया। यह मंदिर शानदार स्थापत्य का अनुपम उदाहरण है।

गुप्तारघाट : सरयू नदी का यह घाट भगवान राम के स्वधाम गमन का गवाह है। सरयू के प्रशस्त प्रवाह से स्पर्शित घाट पर अतीव शांति-ध्यान का अक्श उभरता है। इन दिनों 40 करोड़ की लागत से यहां नयाघाट बनाया जा रहा है। घाट तैयार होने पर कंपनी गार्डेन पर्यटन की संभावना भी प्रशस्त करेगा।

राजसदन : लाल पत्थर से निर्मितराजसदन अवध की स्थापत्य कला का शानदार नमूना है। दूर से देखने में आकर्षक राजप्रासाद में बालीबुड ने फिल्मांकन के लिउए दस्तक दी है। इसके एक हिस्से को हेरिटेज होटल के रूप में विकसित पर्यटकों कापसंदीदा बनाया जा सकता है।

भरतकुंड : यह स्थल भरत की त्याग-तपस्या का परिचायक होने के साथ कमल से खिला विशाल सरोवर पर्यटकों को आकृष्ट करता है। यहां से लोग ङ्क्षपडदान कर गया को प्रस्थान करते हैं। रामकथा के प्रतिनिधि ग्रंथों के अनुसार भगवान राम जब वन को गए, तब भरत ने इसी स्थान पर तपस्यारत रहते हुए राज-काज का संचालन किया। 

नवाबों की पुरानी राजधानी : 

अयोध्या के जुड़वा शहर फैजाबाद को नवाबों की पुरानी राजधानी होने का गौरव प्राप्त है। यद्यपि 19वीं शताब्दी के पूर्वार्ध में आसिफुद्दौला के समय नवाबों ने अपनी राजधानी फैजाबाद से लखनऊ स्थानांतरित कर ली पर उनके पीछे यहां प्रचुर मात्रा में शाही अवशेष छूट गए। गुलाबबाड़ी के रूप में नवाब शुजाउद्दौला का मकबरा नवाबों के समय की स्थापत्य कला का उत्कृष्ट नमूना है। इरानी स्थापत्यकला का नमूना शुजाउद्दौला की पत्नी बहू बेगम का मकबरा का तो कहना ही क्या। पारखियों की नजर में उसे मिनी ताजमहल का दर्जा हासिल है।


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