Avadh Bird Festival in Lucknow: पक्षियों के उत्सव में पढ़ाया जाएगा संरक्षण का पाठ
लखनऊ विश्वविद्यालय की ओर से 21 से 23 जनवरी के बीच होगा आयोजन। लखनऊ विवि के इंस्टीट्यूट ऑफ वाइल्ड साइंस प्रो.अमिता कनौजिया के संयोजन में होने वाले अवध बर्ड फेस्टिवल में पक्षियों का बचाने और उनकी दिनचर्या में पड़ने वाले पर्यावरणीय प्रभाव पर मंथन करेंगे।
लखनऊ, [जितेंद्र उपाध्याय]। उत्सव का नाम आते ही खानपान, मस्ती, खरीदारी व मनोरंजन जैसी व्यवस्थाओं के होने का जिक्र होना स्वाभाविक है। इसी उत्सव की तर्ज पर अवध बर्ड फेस्टिवल का आयोजन होने जा रहा है। अपनी तरह के इस अनोखे फेस्टवल में न केवल आपको पक्षियों की कलाओं में मनोरम दृश्य को अनुभूति करने के बारे में बताया जाएगा बल्कि प्रवासी पक्षियों की सुंदरता और उनके रहन-सहन से भी रूबरू कराया जाएगा। 21 जनवरी से शुरू होने वाले इस उत्सव में खास बात यह होगी । सभी जिलों के जिला वन अधिकारी समाजसेवियों और विशेषज्ञों के साथ प्रवासी पक्षियों के आने के स्थल पर उनकी निगरानी करेंगे। लखनऊ विवि के इंस्टीट्यूट ऑफ वाइल्ड साइंस प्रो.अमिता कनौजिया के संयोजन में होने वाले अवध बर्ड फेस्टिवल में पक्षियों का बचाने और उनकी दिनचर्या में पड़ने वाले पर्यावरणीय प्रभाव पर मंथन करेंगे।
कोरोना संक्रमण के चलते वर्चुअल हाेगी भागीदारी
कोरोना संक्रमण काल की सावधानियों और सुरक्षा मानकों का ध्यान रखते हुए विशेषज्ञों की वर्चुअल भागीदारी होगी। जूम एप के माध्यम से विशेषज्ञों को जोड़ा जाएगा। 21 और 22 जनवरी को दिनभर चार चरणाें में आयोजन होगा। लखनऊ विवि के कुलपति प्रो.आलोक कुमार राय उत्सव की शुरुआत करेंगे।
इन विशेषज्ञों की होगी भागीदारी
संयोजक प्रो.अमिता कनौजिया ने बताया कि लखनऊ विवि के कुलपति प्रो.आलोक कुमार राय के साथ ही विवि के जीव विज्ञान विभाग के सहायक प्रोफेसर डा.आशीष कुमार, पूर्व प्रमुख वन संरक्षक डा.रूपक डे, सहायक वन सरक्षक डा.अबू अरशद खां, फोटोग्राफर अमित मिश्रा, ईला फाउंडेशन पुणे के निदेशक डा.सतीश पांडेय बताैर विशेष शामिल होंगे। इसके अलावा कुकरैल, हरदोई सहित ऐसे स्थानों पर स्वयंसेवी सस्थानों से मिलकर जिल वन अधिकारी प्रवासी पक्षियों के आने और उनकी दिनचर्या का आंकलन करेंगे।
गौरेया संरक्षण में रही भूमिका
लखनऊ विवि के इंस्टीट्यूट ऑफ वाइल्ड साइंस की प्रो.अमिता कनौजिया ने गौरेया संरक्षण का अभियान चलाकर न केवल आम लोगों को उनके प्रति जागरूक किया बल्कि अकेले लखनऊ में पिछले पांच वर्षों में गौरया की संख्या में तीन से पांच गुना तक वृद्धि भी हुई। उनका यह प्रयास प्रवासी पक्षियों के सामन आने वाली दिक्कतों को दूर करने के लिए है। उनका कहना है कि समाज का निर्माण व्यक्ति से होता है तो पक्षियों को भी समाज का हिस्सा बनाकर हम उन्हें समाज से जोड़ सकते हैं।