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Asthma Precautions: सांस के रोगियों के लिए तकलीफदेह हैं ठंड व प्रदूषण, रखिए इन बातों का ध्‍यान

Asthma Precautions लखनऊ के केजीएमयू के रेसिपेटरी मेडिसिन विभाग के विभागाध्यक्ष डा. सूर्यकान्त ने बताया कि ठंड तो दिक्कत देगी ही पटाखों से होने वाले प्रदूषण का असर भी लंबे समय तक रहेगा। ऐसे में सांस के रोगियों को बरतनी होगी अतिरिक्त सतर्कता...

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Fri, 05 Nov 2021 10:02 AM (IST)Updated: Fri, 05 Nov 2021 10:03 AM (IST)
Asthma Precautions: सांस के रोगियों के लिए तकलीफदेह हैं ठंड व प्रदूषण, रखिए इन बातों का ध्‍यान
चिकित्सक से परामर्श कर दवाएं और इनहेलर समय से लेते रहें

लखनऊ, फीचर डेस्क। ठंड की शुरुआत हो चुकी है। दीपावली के समय वातावरण में प्रदूषकों की मात्रा 200 फीसद तक बढ़ जाती है, जिसका असर लंबे समय तक रहता है। सर्दी का मौसम सांस के मरीजों के लिए किसी चुनौती से कम नहीं होता है। इस मौसम में निमोनिया, फ्लू, अस्थमा, और सी.ओ.पी.डी. के मरीजों की संख्या बढ़ जाती है। ठंड बढ़ने के कारण सांस की नली सिकुड़ती है, इससे सांस लेने में परेशानी होती है।

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छोटे बच्चों/बुजुर्गों में इम्युनिटी कमजोर होने के कारण सांस संबंधी बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। इसलिए बच्चों, वृद्धों व सांस के रोगियों को सर्दी से बचकर रहना है, क्योंकि सर्दी और वायु प्रदूषण श्वसनतंत्र से जुड़ी कई बीमारियों का कारण बनता है। सर्दी का मौसम कुछ खास विषाणुओं को भी सक्रिय कर देता है। जिससे नाक, गले की एलर्जी व वायरल संक्रमण के मामले भी बढ़ जाते हैं। इसलिए यदि इस तरह की बीमारियों से ग्रसित हैं तो चिकित्सक के संपर्क में रहें।

नाक की एलर्जी: नाक की एलर्जी मौसमी या बारहमासी हो सकती है। इसमें नाक में सूजन, छींक, खुजली, नाक से पानी आना तथा नाक बंद होने की समस्या होती है। इससे साइनस में सूजन आ जाती है, जिसे साइनोसाइटिस कहते हैं। बच्चों में एलर्जी की परेशानी यदि लंबे समय तक बनी रहती है तो कान बहना, कान में दर्द, कम सुनना, बहरापन जैसी परेशानियां भी हो सकती हैं।

इसे जरूर करें

  • धूल, मिट्टी और धुंआ से बचें
  • सुबह की सैर बंद कर दें
  • गर्म पानी से ही नहाएं
  • घर से बाहर जाते वक्त मास्क जरूर लगाएं
  • ठंड के हिसाब से शरीर को ढककर रखें
  • आइसक्रीम व कोल्ड ड्रिंक का सेवन न करें
  • चिकित्सक से परामर्श कर दवाएं और इनहेलर समय से लेते रहें

सी.ओ.पी.डी: क्रानिक आब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज फेफड़े की एक प्रमुख बीमारी है, जिसे क्रानिक ब्रांकाइटिस भी कहते हैं। भारत में लगभग चार करोड़ लोग इस बीमारी से पीड़ित हैं तथा विश्व में होने वाली मौतों का यह तीसरा कारण है। यह बीमारी प्रमुख रूप से धूमपान, धूल, धुआं, गर्दा व प्रदूषण के प्रभाव में रहने वालों को होती है। ग्रामीण क्षेत्रों में जो महिलाएं चूल्हे या अंगीठी पर खाना बनाती हैं, उन्हें भी इस बीमारी का खतरा रहता है।

यह बीमारी 30-40 वर्ष की आयु के बाद प्रारंभ होती है। इसका प्रारंभिक लक्षण सुबह-सुबह खांसी आना है। इसे स्मोकर्स कफ भी कहते हैं। धीरे-धीरे यह खांसी बढ़ने लगती है और इसमें बलगम भी आने लगता है। सर्दी के मौसम में इसमें तकलीफ बढ़ जाती है। धीरे-धीरे रोगी सामान्य कार्य जैसे- नहाना, चलना-फिरना, वाशरूम जाना आदि करने में असमर्थ हो जाता है। कई बार सांस इतनी ज्यादा फूलती है कि रोगी ठीक से बात भी नहीं कर पाता है।

इंफ्लुएंजा: यह समय फ्लू या इंफ्लुएंजा विषाणु के सक्रिय होने का भी है। बच्चे, बुजुर्ग, गर्भवती महिलाएं, एचआईवी संक्रमित और जटिल रोगों जैसे दमा, सी.ओ.पी.डी., डायबिटीज, हृदय रोग से ग्रसित लोगों में इसकी समस्या गंभीर रूप ले सकती है। इन गंभीरताओं में हार्ट-अटैक, मल्टिपल आर्गन फेल्योर जैसी स्थितियां भी शामिल हैं।


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