मातृवेदी के बलिदानी: अशफाक उल्लाह खां को मिलती थी राजाराम से प्रेरणा
मातृवेदी काकाम संभालने वाले राजाराम एक डकैती में थे शामिल इस डकैती से मातृवेदी के कोष में आए थे 10 हजार रुपये।
आशुतोष मिश्र, लखनऊ। देश की आजादी के लिए सर्वोच्च बलिदान करने वाले अशफाक उल्लाह खां को कौन नहीं जानता, मगर उनके प्रेरणा पुरुष के बारे में कम ही लोग जानते होंगे। लखीमपुर के मोहम्मदी में 1898 में जन्मे राजाराम भारतीय ने शाहजहांपुर मिशन स्कूल में 10वीं की पढ़ाई के दौरान सशस्त्र क्रांति की राह चुनी तो सातवीं में पढ़ने वाला एक विद्यार्थी उनके व्यक्तित्व पर फिदा हो गया। यह विद्यार्थी बड़ा हुआ तो अपनी डायरी में उनका जिक्र किया। शहीद-ए-वतन अशफाक की यह डायरी बताती है कि राजाराम भारतीय उनके प्रेरणा पुरुष रहे।
काकोरी कांड के अमर बलिदानी अशफाक उल्लाह खां ने अपनी डायरी में लिखा- ‘मैं इस मामले में मास्टर साहब से पूछने को झुका, मगर मास्टर साहब बताने से डरे। एक लड़के ने कहा कि राजाराम ने कहीं डाका मारा है और कुछ दूसरे लड़के भी गिरफ्तार हुए हैं, अब मुझे राजाराम की फिक्र हुई कि यह लड़का कौन है? क्योंकि राजाराम एक सीधा और खामोश लड़का था। यूं अक्सर तल्बा-ए-स्कूल उससे वाकिफ न थे। दरजे के एक मेरे साथी ने मुझको अलहदा ले जाकर कहा- राजाराम एक खुफिया सोसाइटी का मेंबर है, न डाकू है, न कातिल।’ मातृवेदी के कई सारे काम संभालने वाले राजाराम 23 जून 1918 को हरदोई के परेली गांव की डकैती में शामिल थे। इस राजनीतिक डकैती से मातृवेदी के कोष में 10 हजार रुपये का इजाफा हुआ था। ‘मातृवेदी-बागियों की अमर गाथा’ पुस्तक में शाह आलम ने बताया है कि उन दिनों आयरलैंड और रूस के क्रांतिकारी गुप्त पार्टी के संचालन के लिए ऐसे ही एक्शन को अंजाम देते थे।
मकान से मिले थे 242 पर्चे
मैनपुरी षडयंत्र केस में गिरफ्तार होने के बाद राजाराम भारतीय के मकान से पुलिस ने 242 पर्चे बरामद किए थे। मुकदमे की सुनवाई के दौरान सरकारी गवाह सोमदेव शर्मा ने बताया था कि ये पर्चे देवनारायण का लिखा हुआ है, जो मातृवेदी दल में शिवकृष्ण, गंगा सिंह और रामप्रसाद का छद्म नाम है। इस केस में राजाराम भारतीय को तीन साल कठोर कारावास की सजा हुई। इसके बाद भी वह मिशनरी भाव से देशसेवा में जुटे रहे।
चंद्रधर के कंठ से निकलता था अंग्रेजों के खातिर ‘हलाहल’
एटा के चंद्रधर जौहरी को भी याद किया जाना चाहिए। इनकी आवाज में गजब की ताकत थी। इससे डरकर अंग्रेज जज ने उन्हें पांच साल कठोर कारावास की सजा सुनाई थी। इसके बाद भी इनकी वाणी अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ आग उगलती रही। 30 अक्टूबर 1895 में जन्मे चंद्रधर जौहरी के पिता एटा गवर्मेंट हाईस्कूल में हेडमास्टर थे। पिता की मौत के बाद चंद्रधर मैनपुरी आकर रहने लगे। यहीं अपने छोटे भाई चंद्रभाल जौहरी के साथ मिशन हाईस्कूल में शिक्षा ग्रहण की। इसी दौरान मातृवेदी दल से जुड़ाव हुआ। जौहरी ने कांतिकारियों के द्रोणाचार्य गेंदालाल दीक्षित के साथ मिलकर विभिन्न जिलों में मातृवेदी का विस्तार किया। एक दिन जब चंद्रधर गुप्त बैठक के बाद शिवकृष्ण के साथ बाहर जा रहे थे तभी गिरफ्तार कर लिए गए। जज किश ने कोर्ट में उनके खिलाफ फैसला सुनाते हुए कहा कि इन्होंने राष्ट्रीय गीत गा-गाकर नौजवानों में रक्त का संचार करने का अपराध किया है। लिहाजा इन्हें पांच वर्ष की सख्त सजा दी जाती है।
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