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स्पेशल मैरेज एक्ट में इलाहाबाद हाई कोर्ट का अहम फैसला- शादी से पहले 30 दिन के नोटिस का नियम अनिवार्य नहीं

हाईकोर्ट ने कहा कि यह पाबंदी विवाह करने वाले युगल की आजादी व निजता जैसे मूलभूत अधिकारों का उल्लंघन है। कोर्ट ने पाया कि पर्सनल लॉ में इस प्रकार की कोई पाबंदी नहीं है तो फिर विशेष विवाह अधिनियम में इस प्रकार के प्रविधान का कोई तार्किक कारण नहीं है।

By Umesh Kumar TiwariEdited By: Published: Wed, 13 Jan 2021 09:12 PM (IST)Updated: Thu, 14 Jan 2021 07:56 AM (IST)
स्पेशल मैरेज एक्ट में इलाहाबाद हाई कोर्ट का अहम फैसला- शादी से पहले 30 दिन के नोटिस का नियम अनिवार्य नहीं
स्पेशल मैरेज ऐक्ट में इलाहाबाद हाई कोर्ट का अहम फैसला सुनाया है।

लखनऊ, जेएनएन। एक अहम फैसले में इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ पीठ ने कहा है कि विशेष विवाह अधिनियम 1954 में विवाह से पहले 30 दिन की नोटिस देने का नियम वैकल्पिक है। यदि युगल चाहें तभी इस प्रकार की नोटिस का प्रकाशन किया जाएगा। कोर्ट ने कहा कि जब विवाह अधिकारी के पास ऐसे युगल विवाह करने आएं तो वह पूछेगा तभी नोटिस का प्रकाशन किया जाएगा अन्यथा विवाह तुरंत कराना होगा। हालांकि कोर्ट ने विवाह अधिकारी को स्पष्ट किया कि वह विवाह करने आए युगल के परिचय, आयु, सहमति आदि के बारे में सबूत मांग सकता है।

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यह फैसला जस्टिस विवेक चौधरी की एकल पीठ ने एक बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर पारित किया। दरअसल एक पति अभिषेक कुमार पांडे ने याचिका दायर कर कहा था कि साफिया सुल्ताना ने हिंदू धर्म अपनाकर उससे हिंदू रीति-रिवाज के अनुसार विवाह कर लिया है। दोनों बालिग हैं। उसने अपना नाम भी बदलकर सिमरन कर लिया है। पति ने कहा कि सिमरन के पिता विवाह से खुश नहीं हैं अत: उन्होंने जबरन उसकी पत्नी को कैद कर रखा है। उसने कोर्ट से अपनी पत्नी को आजाद कराने की मांग की। कोर्ट के आदेश पर सिमरन के पिता उसके साथ कोर्ट में हाजिर हुए। सुनवाई के दौरान पांडे और सिमरन ने साथ-साथ रहने की बात कही। अंतत: सिमरन के पिता भी राजी हो गए और उन्होंने कोर्ट में ही दोनों को आशीर्वाद दिया।

सुनवाई के दौरान ही कोर्ट ने पाया कि विशेष विवाह अधिनियम 1954 के तहत अधिकांश युगल विवाह करने से बचते हैं क्योंकि उसमें प्राविधान है कि यदि वह विवाह करना चाहते हैं तो उन्हें 30 दिन की नोटिस का प्रकाशन कराना होगा ताकि यदि किसी को आपत्ति है तो विवाह अधिकारी को बता सके। कोर्ट ने इसका संज्ञान लिया।

जस्टिस चौधरी ने सुप्रीम कोर्ट की कई नजीरों का जिक्र करते हुए कहा कि यह पाबंदी विवाह करने वाले युगल की आजादी व निजता जैसे मूलभूत अधिकारों का उल्लंघन है। कोर्ट ने पाया कि पर्सनल लॉ में इस प्रकार की कोई पाबंदी नहीं है तो फिर विशेष विवाह अधिनियम में इस प्रकार के प्राविधान का कोई तार्किक कारण नहीं है।

कोर्ट ने कहा कि नोटिस का प्राविधान इसलिए है कि यदि कोई युगल अपने साथी के बारे में अधिक जानना चाहता है तो इसका प्रयोग करे। यदि कोई युगल ऐसा नहीं करना चाहता तो इस नियम का आदेशात्मक रूप में नहीं लागू किया जा सकता है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह नियम निर्देशात्मक है आदेशात्मक नहीं।

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